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शीतकाल में भी जहां अनवरत होती है पूजा

04:05 AM Feb 21, 2025 IST
शीतकाल में भी जहां अनवरत होती है पूजा
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उत्तराखंड के चार धामों की शीतकालीन पूजा स्थलों में धार्मिक परंपराओं का पालन करते हुए, भक्तों को वही पुण्य मिलता है जो ग्रीष्मकाल में धामों के दर्शन से होता है। ये स्थल आध्यात्मिक यात्रा के महत्वपूर्ण केंद्र बनकर, भक्तों को शांति और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

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डॉ. बृजेश सती
उत्तराखंड स्थित चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ एवं बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं, जिनके अब खुलने का वक्त आ रहा है। दरअसल, कपाट बंद के पीछे की मुख्य वजह विषम भौगोलिक परिस्थितियां एवं प्राचीन स्थापित पौराणिक परंपराएं हैं। जन सामान्य में अवधारणा बन गई है कि इन धामों में मंदिरों के कपाट बंद होने के बाद पूजा नहीं होती है। हालांकि, शीतकालीन पूजा स्थलों में निरंतर पूजा-अर्चना होती रहती है, केवल स्थान परिवर्तन होता है। अनादि काल से चली आ रही परंपराएं अक्षुण्ण हैं। ऐसी मान्यता है कि शीतकालीन पूजा स्थलों के दर्शन एवं पूजन से वही पुण्य प्राप्त होता है, जो ग्रीष्मकाल में धामों के दर्शन से होते हैं।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड स्थित चार धामों की यात्रा का क्रम वामावर्त है। सबसे पहले यमुनोत्री में मां यमुना के दर्शन, फिर गंगोत्री में मां गंगा, इसके बाद केदारनाथ और अंत में बदरी विशाल के दर्शन का माहात्म्य है। इसलिए शीतकालीन पूजा स्थलों का दर्शन यमुनोत्री धाम से होता है। ऐसा कहा जाता है कि मां यमुना के दर्शन से भक्ति, मां गंगा के दर्शन से ज्ञान, केदारेश्वर महादेव के दर्शन से वैराग्य और बदरी विशाल के दर्शन से मोक्ष मिलता है।
मां यमुना और गंगा की भोग मूर्ति शीतकालीन पूजा स्थल खुशीमठ और मुखीमठ परंपरानुसार लाई जाती है। भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह मूर्ति ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में और बदरीनाथ की शीतकालीन पूजा ज्योतिर्मठ स्थित नृसिंह मंदिर में की जाती है। उद्धव एवं कुबेर की शीतकालीन पूजा योग ध्यान मंदिर पांडुकेश्वर में की जाती है। जानते हैं, चार धामों की शीतकालीन पूजा कहां होती है।
खुशीमठ में यमुना पूजा
यमुनोत्री मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होने के बाद मां यमुना जी की भोग मूर्ति को शीतकालीन पूजा स्थल खुशी मठ जो खरसाली के नाम से प्रचलित है, लाया जाता है। यहां 6 माह तक विधि-विधान के अनुसार मां यमुना की पूजा की जाती है।
अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री मंदिर के कपाट ग्रीष्मकल के लिए श्रद्धालुओं के दर्शन खोले जाते हैं। खरसाली गांव में प्राचीन शनिदेव का मंदिर है। पांच मंजिला यह प्राचीन भवन दर्शनीय है।

मुखीमठ में गंगा पूजा
मुखवा गांव में मां गंगा का शीतकालीन पूजा स्थल है। इसे मुखीमठ कहा जाता है। पूर्व में इसे मुख्य मठ के नाम से जाना जाता था। यह गांव श्रीमुख पर्वत की तलहटी में बसा है। यह गांव महर्षि मतंग की तपस्थली है। इसी कारण से इसका नाम मुख्य मठ पड़ा।
यहां पर भीम नदी, देऊगाढ़ और ककोडा गाढ़ आदि छोटी-छोटी नदियां हैं। गांव से पूर्व दिशा की ओर ऋषि मार्कण्डेय की तपस्थली मार्कण्डेय पुरी है।
गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के दिन मुहूर्त के अनुसार श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाते हैं।

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ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ
ओंकारेश्वर मंदिर जनपद रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ में स्थित है। यह स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जब केदारनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं तो भगवान की पंचमुखी चल विग्रह मूर्ति इसी मंदिर में लाई जाती है। जहां छह माह तक भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। ओंकारेश्वर मंदिर पंच केदारों की पूजा भी है। इसके अलावा यह उषा और अनिरुद्ध की विवाह स्थली भी है। शिवरात्रि के अवसर पर केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि तय की जाती है।

नृसिंह मंदिर ज्योतिर्मठ
बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद उद्धव और कुबेर की चल विग्रह मूर्तियां योग ध्यान मंदिर पांडुकेश्वर आती हैं। आदिगुरु शंकराचार्य गद्दी और गरुड़ भगवान नृसिंह मंदिर ज्योतिर्मठ में विराजमान होते हैं। भगवान बदरी विशाल की पूजा-अर्चना नृसिंह मंदिर में की जाती है। वसंत पंचमी के पावन पर्व के दिन नरेन्द्र नगर स्थित टिहरी दरबार में बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि घोषित की जाती है।

पहुंच मार्ग
उत्तराखंड स्थित चार धामों के शीतकालीन पूजा स्थलों तक सड़क मार्ग या वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यमुना के शीतकालीन पूजा-स्थल खरसाली गांव और गंगा के शीतकालीन पूजा-स्थल मुखवा तक सड़क मार्ग उपलब्ध है। इसके अलावा, ओंकारेश्वर मंदिर और नृसिंह मंदिर भी सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। इन सभी स्थलों पर यात्रियों के रुकने की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन चारों स्थलों तक हवाई मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। सभी चित्र लेखक

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