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शिवत्व से ही संभव होगा परिवार में स्नेहमयी जुड़ाव

04:05 AM Feb 25, 2025 IST
शिवत्व से ही संभव होगा परिवार में स्नेहमयी जुड़ाव
पारिवारिक जुड़ाव से उपजी खुशी
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सहज, सरल, शांत, समावेशी स्वभाव और स्थिर मन जैसे गुणों को धारण करें तो रिश्ते गहरे-मजबूत बनते हैं। इस दृष्टि से भगवान शिव का जीवन प्रेरक है। वे आराध्य देव हैं, साथ ही योगी और पारिवारिक भी। उनका प्रकृति से जुड़ाव व साधारण जीवनशैली संबंधों में दिखावे से मुक्त रहने की सीख देता है। दरअसल, परिवार-समाज मेें स्नेह भाव जरूरी है। महाशिवरात्रि पर्व स्मरण कराता है कि अपनों-परायों सभी को सहज रूप से अपनाएं।

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डॉ. मोनिका शर्मा
शिव सहज हैं। शिव अपने से हैं। ईश्वरीय अवतार होते हुए भी पूरा शिव परिवार ही अपना सा लगता है। भगवान भोलेनाथ से जुड़ी आम सी बातें हमारे जीवन को भी सहज रूप से सुखी बना सकती हैं। महादेव से जुड़ी कथाएं मन को सार्थक दिशा देती हैं। शिव परिवार का स्नेहमयी जुड़ाव समग्र समाज को एकता का संदेश देता है। यूं भी आस्था के असल मायने तो यही हैं कि अपने आराध्य से जीवन जीने की कला भी सीखी जाए। उन गुणों को जीवन में उतारा जाये जो आस्था की बुनियाद पर सुंदर परिवेश बनाने में भी मददगार बनें। परिवार में मानवीय जुड़ाव को बल दें।
भीतरी आनंद का भाव
महादेव हर परिस्थिति में शांत और धैर्यवान रहने वाले योगी हैं। उनका का यह स्वरूप सिखाता है कि जिंदगी में आनंदित रहने के लिए मन का सुकून जरूरी है। दिलो-दिमाग को स्थिर रखे बिना यह शांति नहीं मिल सकती। आज के दौर में लोगों को छोटी-छोटी बातें विचलित कर जाती हैं। वर्चुअल दुनिया के संवाद तक भीतर एक उथल-पुथल मचा देते हैं। परिवार में टकराव होता रहता है। ऐसे में सभी के लिए एक ठहराव आवश्यक है। अनुकूल परिस्थितियां तो हर किसी के मन को सुखी और आनंदित करती हैं। विपरीत हालात इंसान की परीक्षा लेते हैं। प्रतिकूल समय में शांत मन से डटे रहना आज एक जरूरी लाइफ स्किल है। ध्यान रहे कि यूं खुद को थामे रखना संतुष्टि और आत्मविश्वास भी देता है। भगवान शिव का व्यक्तित्व यही सिखाता है कि मन का शांत रहना सबसे ज्यादा जरूरी है। इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता। आपाधापी में उलझे रहने के बजाय खुद को समझना और जो है उसे सुकून के साथ जीना जरूरी है। यही सोच दूसरे सम्बन्धों के लिए भी संबल बनती है। मीन-मेख निकालने से दूर अपनों का मन समझने के मानवीय भाव को बल मिलता है।
प्रकृति का साथ
आज के समय में हमारे जीवन की बहुत सी परेशानियों का कारण नेचर से दूर होना है। शरीर और मन का बीमार होना हो या व्यवहार की उथल-पुथल, प्रकृति से बढ़ती दूरी भी इनका कारण बन रही है। ऐसे में भगवान शंकर का प्रकृति से जुड़ाव बड़ी सीख लिए है। उनका सहज साधारण जीवन प्रेरणादायी है। अपने परिवेश और प्रकृति से जुड़कर भी आनंदित हुआ जा सकता है, यह शिवजी से सीखा जा सकता है। माटी से जुड़ाव और प्रकृति की गोद में जीने का सुकूनदायी अहसास उनके ईश्वरीय स्वरूप को हर आस्थावान इंसान के लिए और सहज बनाता है। महादेव की स्तुति का एक अहम सन्देश प्रकृति के संरक्षण का ही है। दमघोटू होती हवा और मानवीय गतिविधियों के चलते धरती से विलुप्त होते जीवों- वनस्पतियों की फिक्र के दौर में भोले बाबा से प्रकृति को सहेजने की सीख ली जा सकती है। आक, धतूरे और बेलपत्र से प्रसन्न होने वाले शिव की आराधना कहीं ना कहीं प्रकृति को पूजना ही तो सिखाती है। साथ ही जमीन से जुड़ी जीवनशैली का संदेश भी लिए है। बढ़ती दिखावा प्रवृत्ति के परिवेश में प्रकृति से जुड़ा जीवन ही मन को थाम सकता है। अनगिनत व्याधियों के घेरे में आते लोगों को सहज-संतुलित जीवनशैली की ही दरकार है। सब कुछ जुटाने के फेर में फंसकर अपनों से दूर होने के बजाय स्नेह साथ को जीने का भाव आज सुखी जीवन की पहली शर्त बन बन गया है। ऐसे में प्रकृति पोषक सोच ही हमारी पारिवारिक व्यवस्था को थामने का आधार भी बन सकती है।
स्वभाव की सरलता
बिखरते रिश्तों के इस दौर में भगवान शिव का सरल स्वभाव बहुत बड़ी सीख लिए है। असल में शिव योगी ही नहीं, पारिवारिक भी हैं। महादेव का सौम्य रूप परिवार से जुड़कर रहने का पाठ पढ़ाता है। तांडव करने वाले नटराज और भक्तों के बाबा भोलेनाथ हर हाल में इंसान को उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने की सीख देने वाले हैं। जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए? मन-मस्तिष्क का शांत रहना हर समस्या का हल सुझा देता है। अच्छे और पॉज़िटिव विचारों के धरातल पर रिश्तों की बुनियाद भी मजबूत होती है। समझना जरूरी है कि स्वभाव की सहजता से ही शिवजी देव, दानव, भूत, पिशाच, गण सभी को साथ लेकर चलते हैं। उनके साथ समभाव से जीते हैं। ईश्वरीय स्वरूप के स्वभाव की यह बात आम इंसान के जीवन में बहुत महत्व रखती है। दूसरों के प्रति सहज स्वीकार्यता सिखाती है। शिव पार्वती की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का यह पर्व स्मरण करवाता है कि अपनों-परायों को को भी सहज रूप से अपनाना जरूरी है। उनका पूजनीय दांपत्य जीवन साथी के प्रति भी सरल-स्नेहिल बने रहना ही सिखाता है। आज अधिकतर युवा अपने जीवनसाथी या जीवनसंगिनी की पसंद-नापसंद, रंग रूप और रहन-सहन के ढंग को अपनाने के बजाय कमियां तलाशने में जुटे रहते हैं। मामूली बातों पर वैवाहिक रिश्ते टूट रहे हैं। हर कोई भावनात्मक टूटन और अपराधबोध से ग्रसित है। ऐसे में महाशिवरात्रि का पर्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है। शिव परिवार से सहजता, अपरिग्रह, अपनापन और सहज स्वीकार्यता सीखने का उत्सव है। घर हो या बाहर, आज समभाव से जुड़े इस शिष्टाचार की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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