शिक्षा में नैतिकता और व्यवसाय का संघर्ष
डॉ. जयभगवान शर्मा
साहित्यकार परिवेशजन्य परिस्थितियों की असमंजसता को देखकर उसकी अव्यवस्था, उदात्त मूल्यों के क्षरण अथवा अमानवीय कृत्यों की शर्मनाक घटनाओं को अपनी कृति में चित्रित कर देता है। इसी परिप्रेक्ष्य में उपन्यासकार डॉ. कैलाशचंद शर्मा ‘शंकी’ ने वर्तमान में व्याप्त शिक्षा के क्रय-विक्रय के स्फीत रूप से उद्विग्न होकर ‘आज का द्रोण’ उपन्यास के माध्यम से यथार्थ का परिचय कराया है।
उपन्यासकार का मानना है— ‘समाज में, विशेष रूप से शिक्षा-जगत में, ऐसे आपराधिक कर्मों की प्रक्रिया सतत रूप से चल रही है जो केवल धन अर्जित करने की तीव्र लालसा को प्रकट करती है।’ आज के दौर में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है। जो कल के द्रोणाचार्य थे, उनमें सिद्धांत और आदर्श विद्यमान थे; परंतु विडंबना यह है कि वे द्रोणाचार्य आज आचार्यत्व को त्यागकर केवल द्रोण बनकर रह गए हैं, जिनका कर्म-धर्म केवल शिक्षा बेचना ही रह गया है। यहां डॉ. ‘शंकी’ ने उक्त कुत्सित कृत्य के रहस्य का उद्घाटन किया है। प्राचीन काल की तुलना में आज भौतिकवादी प्रवृत्ति और समाज में विघटित होते नैतिक मूल्यों के प्रसार ने शिक्षा जैसे पावन कार्य को भी व्यवसाय बना दिया है।
उपन्यास में देश, काल और वातावरण का सम्यक रूप से निर्वहन हुआ है। संवाद चुटीले, भावप्रवणतापरक तथा वस्तुस्थिति के अनुरूप हैं। वैविध्यपूर्ण वैचारिक अभिव्यक्ति के माध्यम से पात्रों के विविध क्रियाकलापों को उद्घाटित करने की क्षमता से परिपूर्ण भाषा-शैली है। नि:संदेह ‘आज का द्रोण’ में डॉ. ‘शंकी’ बाजार केंद्रित अर्थव्यवस्था, उपभोक्तावादी संस्कृति, उदारीकरण और वैश्वीकरण की अवधारणाओं से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों को परोक्ष रूप में गहरे घावों की टीस के प्रतीक रूप में चित्रित करने में सफल प्रतीत होते हैं। निश्चित ही, डॉ. कैलाशचंद शर्मा ‘शंकी’ का यह उपन्यास शिक्षक एवं शोधार्थियों को आगाह कर दीपशिखा की भांति उन्हें जीवन-पथ की जटिलताओं में सही राह दिखाएगा।
पुस्तक : आज का द्रोण उपन्यासकार : डॉ. कैलाशचंद शर्मा 'शंकी' प्रकाशक : मोनिका प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 148 मूल्य : रु. 450.