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शिक्षा में जीवनोपयोगी स्किल्स करें शामिल

04:05 AM Feb 20, 2025 IST
शिक्षा में जीवनोपयोगी स्किल्स करें शामिल
आईटी स्किल्स सीखती छात्राएं
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भारतीय शिक्षा प्रणाली ने लगभग 600 वर्ष गुलामी काल को जिया है। इस दौरान संस्कृत उपेक्षा का शिकार हुई। पहले उर्दू , फिर अंग्रेजी का दबदबा , गुरुकुल की जगह बोर्डिंग स्कूल हमारे आदर्श बन गये। हालांकि नयी शिक्षा नीति में वोकेशनल विषय व भारतीय भाषाओं में अध्ययन जैसे कदम उठाए गये हैं।

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राजेंद्र कुमार शर्मा
हमारी शिक्षा प्रणाली ने समय के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। खासकर मुगल और ब्रिटिश काल में भारतीय शिक्षा पद्धति के साथ ही भारतीय मूल्यों का भी ह्रास हुआ है। मुगल शासन में भू- राजस्व आदि का रिकॉर्ड उर्दू में दर्ज किया जाने लगा और धीरे-धीरे उर्दू जुबान लोगों की जरूरत बन गई। इसका अध्ययन भी अनिवार्य हो गया भले ही वो वैकल्पिक रहा हो। मुगल साम्राज्य खत्म हो गया पर उनकी भाषा का प्रभाव आज भी जीवित है। मुगलों के बाद ब्रिटिश शासनकाल शुरू हुआ, उसके साथ ही अंग्रेजी भाषा ज्ञान के युग की शुरुआत हुई। विद्यालयों में अंग्रेजी ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया। हमारी शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करने की जिम्मेदारी लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले को सौंपी गई। उनके प्रस्ताव “ मैकाले मिनट” के आधार पर अंग्रेज़ी शिक्षा अधिनियम 1835 लागू हुआ। मैकाले भारत में अंग्रेजी शिक्षा के कट्टर पक्षधर थे। उन्होंने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहित किया। मैकाले देशी भाषाओं में शिक्षा देने के ख़िलाफ़ थे। शायद यही वजह है कि हम आज भी अंग्रेजी भाषा जानने वालों को अधिमान देते हैं। विदेशी शासकों ने भारतीयों को शरीर से ही नहीं बल्कि मस्तिष्क से भी गुलाम बनाने में कसर नहीं छोड़ी। भारतीय शिक्षा प्रणाली ने लगभग 600 वर्षों के गुलामी काल को जिया है। भारतीयों की देवभाषा संस्कृत, विदेशी शासन काल में उपेक्षा का शिकार हुई व हाशिए पर पहुंच गई है। शैक्षणिक सफलता का मापदंड अंग्रेजी ज्ञान बनकर रह गया। स्वतंत्रता के बाद हम उस गुलामी से उबर नहीं पाए।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
हमारी वैदिक और सनातन संस्कृति में गुरुकुल आधारित शिक्षा प्रणाली चलन में थी। जिसमें शिष्य को अपने घर का त्याग कर गुरु के सान्निध्य में रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए , शिक्षा के साथ जीवन यापन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान क्या हो , कैसे हो आदि का अध्ययन करता था। युद्ध शिक्षा इसका अभिन्न अंग था।
बोर्डिंग स्कूलों की स्थापना
अंग्रेजों के आने पर हमारी शिक्षा प्रणाली में बड़ा परिवर्तन आया जिसका उद्देश्य भारतीयों को अपना गुलाम बनाने का था। इसीलिए उन्होंने हमारी वैदिक संस्कृति को अंधविश्वास युक्त , अवैज्ञानिक कहकर नकार दिया। ब्रिटिश शासकों ने हमारी गुरुकुल प्रथा को अपना कर इसे “ बोर्डिंग स्कूल” का नाम देकर भारतीयों को भ्रमित करने का काम किया। जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों को माता-पिता और शिक्षकों के चरण स्पर्श करने में शर्म महसूस होती है , महान धार्मिक पात्र और उनकी शिक्षाएं अव्यावहारिक और हास्यास्पद लगती हैं। पवित्र ग्रंथों और शास्त्रों का अध्ययन नहीं करना चाहते। इसीलिए उससे छुटकारा पाने में 70 वर्षों से अधिक का समय लग गया। परंतु आज भी अभिभावक सरस्वती, विवेकानंद और मां शारदे जैसे नामों वाले विद्यालयों से परहेज करते हैं परंतु सेंट जेवियर, सेंट थॉमस , सेंट मेरी जैसे नाम वाले विद्यालयों से उनका अथाह प्रेम उनकी गुलाम मानसिकता का परिचायक है।
भारतीय शिक्षा की दिशा में प्रयास
हाल के सालों में शिक्षा पद्धति में परिवर्तन का एक प्रयास किया गया। भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना, वेद अध्ययन हेतु गुरुकुलों की स्थापना और उन्हें प्रोत्साहित करना, संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कदम उठाना, विश्वविद्यालय स्तर पर इंडियन नॉलेज सिस्टम (आईकेएस) को अनिवार्य करना, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद चिकित्सा के विकास और प्रोत्साहन के लिए योजनाएं, विदेशी आक्रांताओं के महिमा मंडन को समाप्त कर, भारतीय पराक्रमी राजाओं के जीवन को स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना आदि कुछ ऐसे बड़े परिवर्तन हैं जिनके द्वारा हमने मैकाले और मुगलों की गुलाम मानसिकता वाली शिक्षा पद्धति को खत्म करने का एक प्रयास किया है। चिकित्सा की शिक्षा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रदान करने जैसे कदम हमें हमारे मूल से साक्षात्कार करवाने के प्रयासों का ही हिस्सा है।
नयी शिक्षा नीति में स्किल एजुकेशन
गुरुकुल शिक्षा में स्किल एजुकेशन का विशेष महत्व था। इसी शिक्षा प्रणाली की पुनर्स्थापना में नई शिक्षा नीति में स्किल एजुकेशन पर विशेष जोर दिया जा रहा है। माध्यमिक स्तर से ही विद्यार्थियों को एक वोकेशनल विषय लेने की अनिवार्यता की गई है। वोकेशनल सब्जेक्ट्स की एक लंबी सूची उपलब्ध है। यह विषय विद्यार्थी को परीक्षा के लिए नहीं बल्कि जीवन के लिए तैयार करते हैं। स्वयं करके सीखने में विद्यार्थी जीवन उपयोगी विषयों में महारत हासिल कर लेता है। समय आ गया है कि हम अपनी गौरवशाली भारतीय शिक्षा पद्धति की पुनर्स्थापना के साथ ही अपनी परीक्षा प्रणाली और मूल्यांकन पद्धति को भी गुलाम मानसिकता वाली सोच से मुक्ति दिलवाने की दिशा में कदम बढ़ाएं।

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