शिक्षा की नहीं जरूरत, टैरिफ से कमाएंगे
सहीराम
देखो जी, सीखना तो आखिर ट्रंप साहब को भी हमीं से है। जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री ने बहुत पहले ही यह सीख दे दी थी, एकदम कविताई-सी करते हुए कि हम हार्वर्ड वाले नहीं, हार्ड वर्क वाले हैं। अपने यहां जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है और वह अक्सर होती ही रहती हैं, और विपक्ष वाले जब हमारे रेल मंत्री को रील मंत्री बताने लगते हैं तब वे भी यही जवाब देते हैं कि हम काम करने वाले लोग हैं। बात भी सच है-इतने हार्डवर्क के बिना इतनी रेल दुर्घटनाएं कैसे हो सकती हैं। खैर, इस सीख से हो सकता है कि सुब्रहमण्यम स्वामी को थोड़ा बुरा लगा हो क्योंकि बताते हैं कि वे हार्वर्ड वाले हैं। अलबत्ता देखे वे अक्सर अदालतों में ही जाते हैं किसी न किसी के खिलाफ और अक्सर तो गांधी परिवार के खिलाफ ही पिटिशन लगाते हुए।
लेकिन जी, ट्रंप साहब को हमारे प्रधानमंत्री जी की यह सीख अब जाकर समझ में आयी है और इसलिए उन्होंने हार्वर्ड को दी जाने वाली कोई सत्रह हजार करोड़ रुपये की ग्रांट रोक दी। पहले उन्होंने अमेरिका का शिक्षा विभाग बंद किया। बोले इसकी क्या जरूरत है। उनके पूर्ववर्तियों को चिंता रहती थी कि भारत के बच्चे गणित बड़ा अच्छा जानते हैं। लेकिन ट्रंप साहब का कहना है कि मैं अमेरिका को बड़े अच्छे से जानता हूं। पढ़ने-लिखने की क्या जरूरत है। हम अपना टैरिफ से ही खा कमा लेंगे। सो उन्होंने शिक्षा विभाग ही बंद कर दिया।
जब शिक्षा विभाग को ही बंद कर दिया तो यूनिवर्सिटी की क्या जरूरत है। वैसे भी वहां बड़े विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं। अब बताओ जब ट्रंप साहब गज़ा को अपना रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट बनाने पर आमादा हैं, तब वहां फलस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। ट्रंप साहब को यह कैसे गवारा होगा। उन्होंने कहा कि इसे बंद करो। यूनिवर्सिटी ने कहा कि हम तो लोकतंत्र वाले हैं, हम कैसे बंद करें तो ट्रंप साहब ने यूनिवर्सिटी की ग्रांट ही बंद कर दी। हमारे यहां भी जेएनयू में ऐसी फालतू की चीजें होती रहती हैं। इसलिए भक्त लोग अक्सर वहां कचरे से कंडोम बीनते हुए उसे बंद करने की सलाह देते रहते हैं।
वे कहते हैं रिसर्च-विसर्च सब फालतू की बातें हैं। अरे रिसर्च ही करनी है तो दो-चार दस महीने में निपटाओ। बल्कि इस मामले में तो खुद सुब्रहमण्यम स्वामी की भी सहमति रहती है-जेएनयू को सचमुच बंद कर देना चाहिए। यहां लेफ्ट वाले ही पलते हैं। किसी ने कहा कि हार्वर्ड ने अमेरिका को आठ-आठ राष्ट्रपति दिए हैं। तो जेएनयू ने भी तो लेफ्ट के नेताओं को छोड़ो, देश के वित्त मंत्री से लेकर विदेश मंत्री तक दिए हैं। इससे क्या होता है। इधर ज्ञान भक्तों के पास बहुत है और उधर ट्रंप साहब के पास बहुत है। वे यूनिवर्सिटी का क्या करेंगे। बंद करो।