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शादी की मिठाई और हनीमून की खटाई

04:00 AM Jun 11, 2025 IST
शादी की मिठाई और हनीमून की खटाई
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राकेश सोहम‍्

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जनकलाल आंखों के आगे अखबार ताने हुए बड़बड़ा रहे थे। चाय सुड़कते हुए मैंने पूछ लिया, ‘क्या हुआ जनकलाल जी?’ वे बोले, ‘भैया! अपनी शादी उन दिनों हुई जब विवाह के बाद घूमने का अंग्रेजी संस्करण हनीमून शुरुआती दौर में था। हम दोनों भी हनीमून मनाने गए थे, दक्षिण की पहाड़ी वादियों में। उन दिनों मोबाइल और फोन नहीं थे। सो दीगर झंझटें थीं। होटल कम थे। थे भी तो ऐसे कामचलाऊ टाइप। होटल का आरक्षण तो दूर की बात थी। वहीं पहुंचकर होटल तलाशना पड़ता था।’
‘जी... और वो हनीमून वाली बात?’ औचक उतावलेपन से मैंने पूछा। वे बोले, ‘बड़ी मुश्किल से एक होटल में साधारण-सा कमरा मिला और हम उसी के हो लिए। सुबह नींद खुली तो देखा हमारा सारा सामान गायब। सूटकेस और हैंगर पर टंगे कपड़े भी नदारद हैं। शादी में मिली जोड़ीदार हाथ की घड़ियां उतारकर टेबल पर रख दी थीं वो भी वहां नहीं थीं।’ मैं जनकलाल को हनीमून में उलझाए रखना चाहता था सो बोला, ‘और वो आपका हनीमून?’
जनकलाल बोले, ‘वही तो। श्रीमती जी के बदन पर गाउन और मेरे बदन पर बनियान और पायजामा बस बचा था। पैसे हैंगर पर टंगी पेंट में थे। बड़ी मुश्किल में जान फंस गई। मैं घबरा गया। बिना पैसों के क्या करेंगे?’ मुझे रोचक लगा था सो बोला, ‘आपके पास कपड़े भी तो नहीं थे।’ जनकलाल थोड़ा गर्वभरी आवाज में बोले, ‘तब हमारी श्रीमती जी ने ढाढ़स बंधाया और बोली कि मैंने मेरी एक पेंट-शर्ट और एक साड़ी बिस्तर के गद्दे के नीचे बिछाकर दबा दिए थे। मुड़-तुड़े कपड़ों से सिलवटें निकालने के लिए उन्होंने ऐसा किया था, ताकि सुबह कपड़े पहनें तो प्रेस किए हुए लगें।’
‘आपका हनीमून तो खटाई में पड़ गया बिना पैसों के!’ मैंने उन्हें फिर हनीमून पर खींचना चाहा। वे मुस्कुराकर बोले, ‘हम हनीमून मनाकर ही लौटे। श्रीमती जी ने सोने की चेन मेरे हाथ पर रख दी। और कसम दी कि मैं मना नहीं करूंगा। उसे बेचकर जो पैसे मिलेंगे उससे हनीमून पूरा करेंगे। उसकी भोली आंखों में लहराते प्रेम को देखकर मैं बह गया।’ गुस्से से अखबार का मुख-पृष्ठ मेरी ओर घुमाते हुए जनकलाल चीखे, ‘और ये देखो! हनीमून मनाने गई लड़की ने क्या किया? एक-दूसरे पर भरोसे की वैवाहिक परम्परा पर दाग लगा दिया। विवाह पूर्व संबंधों और लिव इन रिलेशनशिप की हवा में विवाह की शान घट रही है। बदले के लिए शादी, टीवी धारावाहिकों का प्रिय विषय बन गया है।’ जनकलाल की आंखों में अब भी रोष झलक रहा था।

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