व्हाइट हाउस, फाइट हाउस या ब्लैक हाउस
विनय कुमार पाठक
व्हाइट हाउस को फाइट हाउस कहें या ब्लैक हाउस यह बेचारे लाल समझ नहीं पा रहे हैं। फाइट हाउस तो इस कारण से समझा जा सकता है कि दो राष्ट्रपतियों और एक उपराष्ट्रपति के बीच जिस प्रकार से वार्ता हुई वह हमारे देश की संसद में या टीवी शो में देखने को मिलता है। रूस के राष्ट्रपति ने अमेरिका के राष्ट्रपति के धैर्य की प्रशंसा यह करके कर दी कि उसने यूक्रेन के राष्ट्रपति को थप्पड़ न मार कर बहुत संयम से काम लिया है। वैसे जमाना एआई का है। व्हाइट हाउस में भले ही फाइट न हुई हो पर एआई के प्रेमियों ने अपनी सृजनशीलता का परिचय देते हुए दोनों राष्ट्रपतियों के बीच फाइट करवा ही दी है।
सोशल मीडिया पर एआई की कृपा से उनके बीच लतमपैजार के दृश्य भरे पड़े हैं। एआई का प्रयोग वैसे भी विद्या को अविद्या, अविद्या को विद्या, सच को झूठ, झूठ को सच, झूठा-सच को सच्चा-झूठ और सच्चा-झूठ को झूठा-सच और न जाने क्या-क्या बनाने के लिए किया जा रहा है। वैसे जिसके बल पर कोई व्यक्ति उछलता है उससे फाइट तो नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह फाइट ज्यादा दिन नहीं चलती है। जैसे ही अमेरिका ने यूक्रेन को सहायता बंद की, जनाब के होश ठिकाने आ गए हैं। ये बात हुई व्हाइट हाउस के फाइट हाउस बनाने की।
अब बात करें व्हाइट हाउस के ब्लैक हाउस बनने की। एक दृष्टिकोण से देखें तो अमेरिका यूक्रेन को ब्लैकमेल ही कर रहा है। हमने तुम्हें हथियार दिया तुम मुझे खनिज दो का नारा लगाते हुए ट्रम्प और डेप्युटी ट्रम्प दिख रहे थे। यदि ऐसा नहीं किया तो सहायता बंद कर दी जाएगी। फिर यह धमकी भी दी गई कि गलती चाहे जिसकी हो, तुम अपनी गलती मान लो। तो ब्लैकमेल सदृश इस उच्चस्तरीय वार्ता के कारण व्हाइट हाउस को कुछ लोग ब्लैक हाउस भी मानने लगे हैं। इस ब्लैक मेल का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया है।
बेचारे लाल के पास दोनों विकल्प हैं। व्हाइट हाउस को फाइट हाउस मानने का और ब्लैक हाउस मानने का। पर हैं बेचारे बड़ी ही दुविधा में। अपनी दुविधा दूर करने के लिए वे होशियार प्रसाद के पास गए। उन्होंने बड़ी ही होशियारी का परिचय देते हुए उन्हें बताया कि कुछ भी मानने पर अभी जीएसटी नहीं लगा है देश में। अतः दोनों भी मान लें तो कोई हर्ज नहीं है।