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वैवाहिक संबंधों में निर्ममता से मिटता भरोसा

04:05 AM Jun 15, 2025 IST
वैवाहिक संबंधों में निर्ममता से मिटता भरोसा
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जीवनसाथी को मौत के घाट के उतार देने वाली हालिया भयावह साजिशें स्तब्ध करने वाली हैं। इंदौर के नवविवाहित जोड़े से जुड़ी घटना हो या फिर मेरठ में पति का वीभत्स मर्डर। इससे समाज में वैवाहिक रिश्तों पर भरोसा टूटता है। वजह संवाद की कमी व अवैध संबंध भी हैं। जीवनसाथी की जान लेने की तरकीबें खोजने के बजाय बेहतर है कि युवक-युवतियां आपसी समझ से अनचाहे रिश्ते से बाहर निकलें।

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डॉ. मोनिका शर्मा
भारतीय समाज के ढांचे में वैवाहिक संबंधों की क्रूरता किसी एक व्यक्ति या परिवार का किस्सा नहीं होती। ऐसे वाकये समग्र समाज के लिए बहस व चिंता और चर्चा का विषय बन जाते हैं। साथ ही ढहा देते हैं भरोसे की बुनियाद। जिस समाज में स्त्रियां जीवनसाथी के दुर्व्यवहार और जानलेवा हमलों को झेलती आई हैं, वहां अब पति की जान ले लेने की घटनाएं भी होने लगी हैं। हालिया दिनों में सामने आईं जीवनसाथी को मौत के घाट के उतार देने वाली भयावह योजनाएं स्तब्ध करने वाली रहीं। इंदौर के नवविवाहित जोड़े से जुड़ी घटना का हर पक्ष अब तक आम लोगों को अविश्वसनीय सा लग रहा है।
मेघालय के शिलांग में हनीमून पर गए राजा रघुवंशी हत्याकांड में बहुत से खुलासों के बाद पत्नी सोनम द्वारा पति की हत्या करवाने की बात स्वीकारना कितने ही परिवारों का भरोसा डिगाने वाला है। यहां तक कि सोनम का परिवार भी उसके साथ नहीं है। बीते दिनों मेरठ में भी पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी थी। इस मामले में युवती के माता-पिता ने ही उसके लिए कठोर दंड की मांग की। कर्नाटक के हसन जिले में एक महिला ने अवैध संबंध छिपाने के लिए अपने परिवार को ज़हर देकर मारने की कोशिश की। इन्हीं दिनों फरीदाबाद में पत्नी पर शक के चलते एक व्यक्ति ने अपने चार बच्चों के साथ ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। ऐसे मामलों के बहुत से उलझाऊ पक्ष भी हैं। ऐसी घटनाएं सामाजिक-पारिवारिक विखंडन की बानगी हैं।
भटकाव का चक्रव्यूह
समाज-परिवार वैवाहिक सम्बन्धों में बर्बरता के मामलों में युवक-युवतियों की दिशाहीनता को लेकर चिंतित हैं। जीवनसाथी के साथ वीभत्स कारनामे करने का यह दुस्साहस आखिर कहां से आ रहा है? शादीशुदा जीवन में साथ देने का भाव कहां खो गया है? प्रेम विवाह कर घर बसाने वाले भी साथ निभाने की समझ से दूर हो रहे हैं। इन स्थितियों को दायित्व निर्वहन से भागने की मनःस्थिति से जोड़कर ही देखा जा सकता है। यह पीढ़ी मन ना मिलने पर वैवाहिक रिश्ते में अलगाव का रास्ता चुनने के बजाय अपराध कर बैठने का मार्ग पकड़ रही है। यह सिलसिला पारिवारिक व्यवस्था की नींव ढहाने वाला है।
बर्बरता और असंवेदनशीलता
भयावह यह कि ये घटनाएं आक्रोश भर नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत जीवनसाथी बने व्यक्ति की जान लेने के दुस्साहस को सामने रखती हैं। विवाह व्यवस्था के छीजते हालात को सामने रखती हैं। ध्यातव्य है कि मेरठ जिले में एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को मारने के बाद शव के टुकड़े कर ड्रम में रखकर चिनाई करा दी। योजना पिछले साल से ही बनाई जा रही थी। यह बर्बरता करते हुए अपनी पांच वर्षीय बेटी के भविष्य की भी चिंता नहीं की। वहीं इंदौर की घटना में भी नवविवाहिता ने पति की जान लेने के लिए 20 लाख सुपारी दे डाली। शादी की रस्मों के बीच हत्या की रणनीति बनाती रही। कहीं पति द्वारा पत्नी और कहीं पत्नी द्वारा पति की बर्बर हत्या के मामले अब आम हो चले हैं।
विस्तार पाते अवैध रिश्ते
ऐसे अधिकतर मामलों के पीछे अवैध संबंध, लालच या साथी से छुटकारा पाने जैसे कारण हैं। अब युवतियां भी भटकाव का शिकार हो रही है। बिखराव भरा मानस न केवल पारिवारिक सम्बन्धों से जुड़े दायित्व बोध से दूर कर रहा है बल्कि स्वयं को संभालने की सोच भी नदारद है। सशक्त होने की गलतफहमी में दूसरों पर भावनात्मक निर्भरता बढ़ रही है। शिक्षित-सजग और तकनीकी दुनिया में हर जानकारी जुटा लेने वाली युवतियां अपने ज्ञान का इस्तेमाल अपनों ही नहीं, कानून को भी गुमराह करने में कर रही हैं। हालिया योजनागत आपराधिक घटनाएं नकारात्मक सोच की अति का उदाहरण हैं। विफल विवाह से विषाक्त हुई मनःस्थिति की बानगी हैं, वहीं सम्बन्धों में अव्यावहारिकता की भी तस्दीक करते हैं। ऐसे मामले विशेषकर अवैध रिश्तों के चलते साझे साथ में आत्मीय जुड़ाव खत्म हो जाने का परिणाम हैं। वैश्विक डेटा एजेंसी बेडबाइबल रिसर्च सेंटर 2023 की रिपोर्ट कहती है कि 23 फीसदी लोग किसी न किसी रूप में अपने साथी को धोखा दे रहे हैं व 60 प्रतिशत मामले किसी नजदीकी मित्र या सहकर्मी से शुरू होते हैं। भारत समेत एशियाई-यूरोपीय देशों जुड़े इस अध्ययन में सामने आया है कि शादी के 7 साल बाद महिलाएं पति के प्रति और विवाह के 3 साल बाद पति अपनी पत्नी के साथ धोखेबाजी की सोच रखने लगते हैं। आखिर क्यों साझी यात्रा में अविश्वास जगह बना लेते हैं ? किसी की जान लेने की युक्तियां खोजने वाले युवा कानूनी ढंग से अपने रास्ते अलग करने की समझ नहीं जुटा पाते। एक उलझाऊ रिश्ते से निकलने के बजाय दूसरे दिशाहीन करने वाले सम्बन्धों में उलझते जाते हैं। तलाक, आत्महत्या के ऐसे मामले भी तेज़ी से बढ़े हैं, जिनकी वजह रिश्ते में शक का जगह बना लेना है।
जिंदगी को रील समझने की नासमझी
जिंदगी के वास्तविक सच को समझने-स्वीकारने का भाव ही नदारद है। वर्चुअल दुनिया में गुम युवाओं ने मानो जिंदगी को भी रील ही समझ लिया। युवा पीढ़ी यह भूल रही है कि रिश्तों में निबाह के लिए समर्पण का भाव आवश्यक है, भरोसे के भाव को पोषण मिलना जरूरी है। कुछ समय पहले उच्चत्तम न्यायालय द्वारा कहा गया था कि सहनशीलता और सम्मान शादी की बुनियाद है। शादी में दायित्वों का भान और भरोसा ना हो वैवाहिक संबंध डगमगाने लगता है। छोटी-छोटी बातों पर पति-पत्नी अपनी राहें अलग कर रहे हैं। ऐसे में साथ, संवाद और संवेदनाएं ही अहम हैं। ऐसा न होने पर वैवाहिक रिश्ते में बंधे पति-पत्नी को समझना चाहिए कि नकारात्मक गतिविधि को अंजाम देने से बेहतर अलग होने की सही राह चुन लें। दुखद है कि उलझते रिश्तों के अधिकतर मामलों में आपसी समझ से कोई रास्ता नहीं निकल पाता है। कानूनी दबाव तो ऐसे संबंधों को पुनर्जीवन दे ही नहीं सकता। खासकर विवाहेत्तर सम्बंधों का परिणाम तो भयावह अपराध रूप में ही होता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2017 के बीच प्रेम सम्बंध और विवाहेतर सम्बंध हत्याओं के पीछे दूसरा सबसे बड़ा कारण रहे। वर्चुअल माध्यमों ने भ्रमित करते इन सम्बन्धों को पोषण दिया है। कुछ वर्ष पहले हुए एक सर्वे के अनुसार एक्स्ट्रा-मैरिटल डेटिंग एप ग्लीडेन पर करीब 8 लाख भारतीयों ने पंजीकरण कराया था। ऐसे में साथी की जान लेने की योजनाएं बनाने के बजाय व्यावहारिक समझ रखते हुए अलग हो जाना दोनों ही पक्षों के जीवन को सहज बना सकता है।

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