विवाहिताओं के लिए सौभाग्य और श्रद्धा का पर्व
इस दिन चंद्रदेव अपनी पूरी चमक के साथ पूर्ण कलाओं में दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इस तिथि को प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
चेतनादित्य आलोक
हिन्दू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि किसी भी महीने के अंतिम दिन को होती है। तात्पर्य यह कि हिंदी के प्रायः सभी महीनों का अंत पूर्णिमा तिथि पर ही होता है। इस प्रकार, प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। पूर्णिमा तिथि की यह विशेषता होती है कि इस तिथि को जिस नक्षत्र का प्रभाव रहता है, उसी नक्षत्र के आधार पर हिंदी के उस महीने का नाम भी होता है। उदाहरण के लिए, ‘ज्येष्ठ पूर्णिमा’ के दिन ‘ज्येष्ठा नक्षत्र’ होने के कारण इस महीने का नामकरण ‘ज्येष्ठ’ किया गया है।
प्रकाश-ऊर्जा का प्रतीक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा तिथि चंद्रदेव की पूजा के लिए सबसे शुभ होती है, क्योंकि इस दिन चंद्रदेव अपनी पूरी चमक के साथ पूर्ण कलाओं में दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इस तिथि को प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पूर्णिमा तिथि की कुछ अन्य विशेषताएं भी हैं, जो वास्तव में इस तिथि को अधिक महत्वपूर्ण बनाने का कार्य करती हैं, यथा- पूर्णिमा को गंगा, यमुना, अलकनंदा, नर्मदा, शिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। हालांकि, जो लोग नदी में स्नान नहीं कर पाते हैं, उन्हें घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। साथ ही, स्नान करते समय पवित्र नदियों और तीर्थों का ध्यान करना चाहिए। इससे व्यक्ति को उन पवित्र नदियों का पुण्य प्राप्त होता है। पूर्णिमा को दिन की शुरुआत सूर्य पूजा के साथ करनी चाहिए। इस अवसर पर श्री सूर्यनारायण भगवान को तांबे के लोटे से अर्घ्य देना चाहिए।
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि
पंचांग गणना के अनुसार, इस वर्ष ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि 10 जून मंगलवार को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर प्रारंभ होकर अगले दिन 11 जून को दोपहर 01 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस बार पूर्णिमा का व्रत 10 जून मंगलवार को रखा जाएगा। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 10 जून को दिन में हो रहा है और यह पूरी रात तक रहेगी, जिससे चंद्र दर्शन और पूजन आसानी से हो सकेगा। वहीं, स्नान-दान और अन्य पुण्य कर्म 11 जून को किए जाएंगे।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में ज्येष्ठ पूर्णिमा का बड़ा महत्व होता है। इस दिन से श्रद्धालु गंगाजल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए निकलते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सनातन धर्म में भगवान श्रीहरि विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और चंद्रदेव की पूजा-आराधना करने का विधान है। इससे जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि का न केवल आगमन, बल्कि वास भी होता है। वैसे, इस दिन गंगा स्नान करने का अत्यंत विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है। साथ ही, इससे मन और जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार भी होता है। इस दिन वट (बड़) वृक्ष की पूजा करने एवं श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने और सुनाने की भी परंपरा है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन अपना ध्यान सात्विक कार्यों में लगाना चाहिए। इस अवसर पर तामसिक खाद्य पदार्थों से सर्वथा दूर रहना चाहिए।
एक व्रत, कई नाम
ज्येष्ठ पूर्णिमा को ‘ज्येष्ठा पूर्णिमा’, ‘देव स्नान पूर्णिमा’ और ‘व्रत पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कई स्थानों पर यह ‘वट पूर्णिमा’, ‘सावित्री पूर्णिमा’ एवं ‘वट सावित्री पूर्णिमा’ के नाम से भी विख्यात है, विशेषकर पश्चिमी भारत (गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि) में इसे ‘वट सावित्री पूर्णिमा’ अथवा ‘वट सावित्री व्रत’ के रूप में जाना जाता है।
प्रेम और सौभाग्य के लिए
गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में विवाहित महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं, ताकि उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौभाग्य बना रहे। इस व्रत से सास-ससुर के साथ संबंध भी मधुर होते हैं और घर में खुशियों का वातावरण बना रहता है।
स्नान-दान का महत्व
मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्नान एवं दान करना अत्यंत शुभ होता है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को उपयोग की जाने वाली वस्तुओं का दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन यदि पवित्र हृदय एवं निर्मल मन से योग्य लोगों को दान किया जाए तो दानकर्ता के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
चंद्र-आराधना से मानसिक शांति
शास्त्रों में बताया गया है कि यदि ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रदेव को अर्घ्य दिया जाए, तो साधक को मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर चंद्रदेव की पूजा करने से चंद्र दोषों से मुक्ति मिलती है। वहीं, ज्येष्ठ पूर्णिमा को चंद्रदेव को नमस्कार करने के भी बहुत लाभ होते हैं। इसके अतिरिक्त, ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रदेव की ओर मुख करके आसन पर बैठकर इस चंद्र-मंत्र का जाप करना चाहिए।