विराट और उनकी कालजयी विराटता
वह विराट, जो चुनौतियों में फला-फूला था और जिसे तगड़ा मुकाबला पसंद था, आखिरकार उसने खुद को यह समझा लिया कि अब मैदान से हटने और जीवन में आगे बढ़ने का समय आ गया है। जीवन में ‘केवल’ क्रिकेट के अलावा भी बहुत कुछ है।
प्रदीप मैगज़ीन
हर वह चीज़ जिसकी शुरुआत है, उसका अंत भी है, चाहे वह जीवन हो या खिलाड़ी का करियर। इन दो छोरों के बीच, सफलता-असफलता, खुशी-गम, जीत-हार के साथ जीवन संघर्ष अपने आप में एक अप्रत्याशित यात्रा है। खेल की दुनिया में, रिटायरमेंट चाहे मजबूरी में हो या स्वेच्छा से, वह अंतिम मुकाम है, जहां पर खेल-यात्रा खत्म हो जाती है।
टेस्ट क्रिकेट में विराट कोहली की पारी खत्म हो गई है। कई लोगों का मानना है कि यह समय से पहले लिया गया फैसला है, जबकि कोहली का मानना है उनके पास टेस्ट क्रिकेट की कठिन दरकारों में सफल होने के वास्ते जो ऊर्जा, मानसिक शक्ति और कौशल होना चाहिए, खासकर इंग्लैंड जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में, अब पहले जैसा नहीं रहा। यहां तक कि दस हजार टेस्ट रन का मील का पत्थर, जो कि बहुत करीब था, वह भी इंग्लैंड जाने और क्रिकेट के मैदान पर अपनी ज्वलनशील ऊर्जा को बाहर निकालने का पर्याप्त लालच न बन पाया।
कोहली अब 36 वर्ष के हैं, दो बच्चों के पिता हैं। उनकी जीवन संगिनी फिल्म स्टार अनुष्का हैं, जिन्होंने एक व्यक्तित्व के रूप में उनके विकास में बहुत योगदान दिया है। जीवन के बही-खाते में, यह एक ऐसी उम्र है जब पूरी दुनिया आपके आगे होती है, पीछे नहीं। लेकिन एक खिलाड़ी के जीवन में, यह वह उम्र होती है जहां करिअर का अंत सामने नज़र आने लगता है। मन चाहे करे, लेकिन शरीर साथ नहीं देता। हालांकि, कोहली के मामले में इसका उल्टा है। टेस्ट क्रिकेट में उनकी फॉर्म भले ही पहले जितनी न रही हो लेकिन उनकी फिटनेस का स्तर किसी किशोर को भी शर्मिंदा कर सकता है। सफ़ेद गेंद वाले क्रिकेट प्रारूप में उनकी सफलता और आईपीएल की फॉर्म के बूते उनकी प्रतिष्ठा जस की तस है, तथापि उनका मानना है कि अब उन्हें उस प्रारूप को अलविदा कर देना चाहिए जिसे वह सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, जिसे उन्होंने ‘खून, पसीने और आंसू’ से सींचा है। एक ऐसा प्रारूप जिसे वह ‘इश्क’ करते हैं और जिसने उन्हें एक व्यक्ति के रूप में ‘आकार’ दिया।
पारंपरिक ज्ञान यह कहता है कि आप अपने पास वही रखें जो आपको सबसे ज़्यादा पसंद है और जो अधिक महत्त्वपूर्ण न हो और जिसमें सार और अर्थ नहीं है, उसे तज दें। तब क्यों न सफ़ेद टेस्ट क्रिकेट की बजाय सफेद गेंद वाले प्रारूप को छोड़ते? लेकिन! समस्या यहीं पर है। अपनी अपार लोकप्रियता और प्रशंसकों के अलावा, कम ओवर वाले क्रिकेट प्रारूप (आईपीएल) को मानसिक और शारीरिक रूप से इसके लघु प्रारूप यानी टी-20 के मुकाबले संभालना ज्यादा आसान है। शायद यह ‘धंधा’ इस मायने में मजेदार है, जिसमें विफलता बहुत नुकसान नहीं पहुंचाती और न ही सफलता यह महसूस करवाती है कि आप शिखर पर पहुंच गए हैं। और आईपीएल में आप जो करोड़ों कमाते हैं, वह इसे न छोड़ने के लिए एक अतिरिक्त प्रोत्साहन है। यह किसी राष्ट्र के लिए न होकर एक व्यावसायिक उद्यम के लिए प्रतिबद्धता है, जहां विफलता का जोखिम ‘विश्वासघात’ के बराबर नहीं है।
प्रतिबद्धता, अनुशासन और एकाग्रता का प्रतीक विराट, प्रतिद्वंद्वियों का ध्यान अपने शारीरिक हाव-भावों से भंग करने वाली खूबी रखने के साथ खेल के लघु संस्करण में प्रतिद्वंद्वियों को चबाने की ताब रखते हैं। वह बल्लेबाजी, दौड़ने और मानसिक दृढ़ता में उन्हें मात दे सकते हैं। वे अब क्रिकेट के सबसे कठिन प्रारूप यानी टेस्ट क्रिकेट में ऐसा नहीं कर सकते। उनके पास अपने खेल में रिस चुकी तकनीकी कमियों से पार पाने और पूरे पांच दिनों तक विस्फोटक स्तर को बनाए रखने के लिए पहले जितनी ऊर्जा और ताकत नहीं रही।
सही मायने में विराट वीरता का सबसे बढ़िया मूर्त रूप हैं। वह निडर योद्धा, जो अपने विरोधियों को छकाने करने के लिए खुद को महामानव-सी ऊर्जा से भर लेता है। दुनिया के क्रिकेट इतिहास में दुर्लभ और भारत में भी इससे पहले ऐसा कोई नहीं हुआ जिसकी आक्रामकता, यहां तक कि अपनी तीव्र और कठोर अभिव्यक्ति में, ज़ैन मुनियों जैसी एकाग्रता के साथ शानदार प्रदर्शन करने से लैस हो। उनकी कप्तानी का रिकॉर्ड इसी कारण से शानदार है कि उन्होंने मैदान में टीम को बिजली के करंट जैसी ऊर्जा से भर दिया, जिसने उन्हें टेस्ट क्रिकेट का ‘पोस्टर ब्वॉय’ बना दिया। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि इस काम ने उन्हें थका दिया है। जैसे-जैसे समय बीतता गया, उन्हें खुद अपने कुछ पहलू नहीं भाए, फिर भी वे अपनी ही छवि के कैदी बने रहे। उन्हें न चाहते हुए भी ‘प्रदर्शन’ करना पड़ा। एक बल्लेबाज के रूप में उनकी गिरती सफलता दर के साथ, उन्हें ‘अवसाद’ का सामना करना पड़ा और इससे पार पाने का रास्ता तलाशने के लिए बेताब रहे। वे अपने भीतर के ‘दानव’ का सामना करना चाहते हैं और अपने दिमाग को ‘धोकर’ स्वच्छ करना चाहते हैं। वे हमेशा बदलने, आत्मनिरीक्षण करने और अपने भीतर के ‘नकारात्मक पक्ष’ का सामना करने के लिए तत्पर रहने वाले इंसान हैं और आध्यात्मिकता की ओर उनका रुख यह दर्शाता है कि वे ‘आंतरिक शांति’ पाने की तलाश में हैं।
उनकी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा एक ऐसे युवा लड़के के रूप में शुरू हुई थी, जिसे इस बात की जरा परवाह नहीं हो कि दुनिया उसके बारे में क्या सोचती है। उसने भारत को अंडर-19 विश्वकप में जीत दिलाई। अनुशासन और कड़ी ट्रेनिंग में दुनिया की बेहतरीन चीजों का लुत्फ उठाने की इच्छा बलि चढ़ गई। उन्हें समय रहते अहसास हो गया कि उनका खेल बिगड़ रहा है और उन्हें बदलाव की जरूरत है। इसके वास्ते कठोर अनुशासन और आहार में बदलाव अपनाए, जिसने तराश कर वह विराट कोहली तैयार किया, जिसको दुनिया जानती है और प्रशंसा करती है।
डेढ़ दशक में विराट ने वह सब हासिल कर लिया है जिसकी चाहना तमाम खिलाड़ियों को होती है, लेकिन हासिल बहुत कम कर पाते हैं : एक ‘लीजेंड’ का दर्जा। टेस्ट क्रिकेट का शुभंकर, बल्लेबाज़ी की लासानी प्रतिभा और एक बेहतरीन कप्तान। खेलना जारी रखूं या नहीं, यही सवाल उनके दिमाग को परेशान और रातों को बेचैन कर रहा होगा।
वह विराट, जो चुनौतियों में फला-फूला था और जिसे तगड़ा मुकाबला पसंद था, आखिरकार उसने खुद को यह समझा लिया कि अब मैदान से हटने और जीवन में आगे बढ़ने का समय आ गया है। जीवन में ‘केवल’ क्रिकेट के अलावा भी बहुत कुछ है।
लेखक वरिष्ठ खेल समीक्षक हैं।