विधि का विधान
एक बार की बात है कि भगवान शंकर व माता पार्वती भ्रमण कर रहे थे। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी शंका के समाधान हेतु प्रश्न किया, ‘प्रभु क्या कारण है कि जो पहले से ही धनवान है आप उसे और अधिक धनवान बनाते हैं।’ शंकर जी ने कहा, ‘यह बात आपको समझ में नहीं आएगी।’ पार्वती जी ने भगवान शंकर से कहा, ‘भला ऐसी कौन-सी बात है, जो मेरे समझ में नहीं आएगी। आप बताइए तो सही।’ मार्ग में एक जगह संयोग से दो कुएं थे। एक पक्का था और दूसरा बहुत पुराना उजड़ा हुआ था। शंकर जी ने पार्वती जी से कहा, ‘चलते-चलते हम लोग थक गए हैं। दो ईंट लाओ, थोड़ी देर आराम कर लें।’ पार्वती जी गई और पुराने कुएं से दो ईंट उठा कर ले आईं। शंकर जी ने प्रश्न किया, ‘पुराने कुएं से ईंट क्यों लाई जो कुआं पक्का बना हुआ था, उससे ले आती।’ पार्वती जी ने कहा, क्या बात करते हैं, ‘वह इतना मजबूत बना हुआ है। भला उसे कैसे तोड़ सकती थी।’ शंकर जी बोले, ‘यही तो विधि का विधान है।’ उत्तर सुनकर पार्वती जी निरुत्तर हो गईं। उन्हें अपनी शंका का समाधान मिल गया था।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा