विकास के नाम पर नष्ट की सारी ऐतिहासिक चीजें
सुभाष पौलस्त्य/निस
पिहोवा,10 जून
तीर्थ स्थल पिहोवा, जिसकी ब्रह्मा जी ने सृष्टि की शुरुआत के साथ ही रचना की थी। सृष्टि की रचना करते समय इसी तीर्थ स्थल पर ही वेदों की रचनाएं लिखी गईं। पिहोवा जिसका प्राचीन नाम पृथूदक है, भगवान विष्णु के नवम अंश महाराज पृथू ने यहां पर अपने पितरों को उदक यानी जल दिया। पृथू और उदक के मेल से ही पृथूदक शब्द की उत्पत्ति हुई। महाराज पृथू के नाम से ही इस धरा को पृथ्वी कहा गया। पिहोवा तीर्थ में त्रेता युग में भगवान श्री राम भी आए, द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण भी इस भूमि पर आए।
कहते हैं कि पिहोवा की ओर से ही पांडव कुरुक्षेत्र, थानेसर की ओर गए तथा यहां से 12 किलोमीटर दूर ज्योतिसर में कौरवों की सेना से उनका आमना-सामना हुआ। ज्योतिसर में ही भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। सतयुग, द्वापर, त्रेता के साथ-साथ अब कलयुग में भी विख्यात यह पिहोवा तीर्थ आधुनिकता की भेंट चढ़ गया। आधुनिकता व नवीनता तथा विकास के नाम पर यहां से हजारों वर्ष पुराने सभी ऐतिहासिक चिन्ह नष्ट कर दिए गए।
ऐतिहासिकता को नष्ट करने की चपेट में सबसे अधिक सरस्वती तीर्थ आया। जिस सरस्वती नदी को ऋषि विश्वामित्र के शाप से खून और मवाद की होकर बहना पड़ा था। जिसे दोबारा जल की बनाने के लिए ऋषियों ने यज्ञ किया। अरुण, वरुण नदियों के संगम स्थल पर यज्ञ किया। उसी सरस्वती को आधुनिकता के नाम पर नष्ट कर दिया गया।
90 के दशक में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने आधुनिकता व विकास के नाम पर हजारों वर्ष पुरानी सरस्वती नदी में स्नान के लिए बनी हुई सीढ़ियों को तोड़ डाला। तीर्थ स्थलों के प्रमाण देने वाली बुर्जियों को भी नष्ट कर दिया। जिन बुर्जियों पर बैठकर कभी ऋषि, महर्षियों ने तप किए थे, यज्ञ किए थे, उन्हें पूरी तरह से नष्ट करके तीर्थ स्थल के किनारों को समतल बना दिया तथा उस पर नयी सीढ़ियों का निर्माण कर दिया, जिस कारण हजारों वर्ष पुरानी ऐतिहासिक चीजें नष्ट हो गई।
पुरानी सीढ़ियों को उल्टी-सीधी पुरानी ईटों से बनाया गया था, जिस पर पानी में कभी पैर नहीं फिसलता था। नयी सीढ़ियां बनाने व बुर्जियों को खत्म करने के साथ ही वह तीर्थ स्थल भी नष्ट हो गया, जहां पर राजा ययाति ने यज्ञ किए थे। बुर्जियां तोड़ने के कारण देवगुरु बृहस्पति के तपस्थली के चिन्ह भी नष्ट हो गए। भगवान शंकर पार्वती व गणेश के गाथा सुनाने वाले वह तीर्थ भी खत्म हो गया, जिसे पापतक तीर्थ कहते थे।
महाभारत युद्ध से पहले कौरव दुर्योधन के शब्दों से आहत होकर एक ब्राह्मण ने अपने शरीर के अंगों को काटकर कौरवों के राज्य को नष्ट करने के लिए यज्ञ किया था, वह अबकिरण तीर्थ भी पूरी तरह नष्ट हो गया। वर्तमान में इन तीर्थ स्थलों के बारे किसी को भी कोई ज्ञान नहीं है। यह तीर्थ केवल वामन पुराण सहित अन्य पुराणों के बीच में ही दब कर रह गये।
एक तरफ सरकार ऐतिहासिक चीजों को सहेजने, संवारने और सुरक्षित रखने के लिए कार्य कर रही है। वहीं, दूसरी ओर पिहोवा के सरस्वती तीर्थ की सभी ऐतिहासिक चीज़ नष्ट कर दी गई। रह गई तो केवल सैकड़ों वर्ष पुराने चित्रों में उनकी यादें। कुल मिलाकर आधुनिकता, नवीनता व विकास, सरस्वती तीर्थ की ऐतिहासिकता के लिए बना विनाश। इस आधुनिकता की दौड़ में सब कुछ नष्ट हो गया।