वर्तमान परिदृश्य में नेहरू की प्रासंगिकता
ज्ञानचंद्र शर्मा
पंकज चतुर्वेदी द्वारा लिखित पुस्तक ‘जवाहरलाल हाज़िर हो’ में पंडित नेहरू की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की गई जेल यात्राओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। नेहरू जी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नौ बार जेल गए और लगभग आठ वर्ष से अधिक समय उन्होंने देश की विभिन्न जेलों में बिताया। अंग्रेजों की ‘मेहमानदारी’ में बिताया गया यह समय उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों की सर्वोच्च बलिदान कथाओं के समकक्ष, बल्कि कई बार उनसे भी अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है।
पुस्तक के समर्पण में यह बलिदान केवल ‘किसान-मज़दूरों और गांधी के अनुयायियों’ तक सीमित कर दिया गया है। वस्तुतः स्वतंत्रता प्राप्ति का श्रेय एक वर्ग विशेष, एक व्यक्ति विशेष और एक राजनीतिक दल विशेष तक सीमित करने का प्रयास किया गया है, और यह धारणा दीर्घकाल तक प्रचलित भी रही।
इस पुस्तक में नेहरू जी की प्रासंगिकता पर केंद्रित एक लघु आलेख भी सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में किसी न किसी रूप में प्रासंगिक होता है, किंतु जो समय की कसौटी पर खरा उतरता है, वही चिर-प्रासंगिक कहलाता है।
नेहरू जी अपने समय में भारतीय राजनीति के पटल पर सर्वाधिक प्रासंगिक व्यक्तित्व थे। देश की प्रत्येक बड़ी घटना किसी न किसी रूप में उनसे जुड़ी रही। उन्हें गांधी जी का सशक्त संरक्षण प्राप्त था, जिसे गांधी जी ने मोतीलाल नेहरू के प्रति अपनी एक प्रतिज्ञा के निर्वहन स्वरूप निभाया। इसी प्रतिज्ञा के परिणामस्वरूप सन् 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष पद हेतु तेरह में से बारह मत प्राप्त करने वाले सरदार पटेल को दरकिनार कर, शून्य मत प्राप्त करने वाले नेहरू जी को अध्यक्ष नियुक्त किया गया, ताकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वही देश के प्रधानमंत्री बन सकें — और वे बने भी।
भारत के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात नेहरू जी का आभामंडल धीरे-धीरे मंद पड़ने लगा। राजनीतिक विवाद के अनेक प्रकरण उजागर होने लगे, जिन पर वे प्रभावी नियंत्रण नहीं रख सके।
सशस्त्र सेनाओं हेतु जीप क्रय घोटाला, जिसमें नेहरू जी के निकट सहयोगी वी.के. कृष्ण मेनन संलिप्त बताए जाते थे, इसी काल की एक प्रमुख घटना है। जो जीपें मंगाई गईं, वे पूर्णतः अनुपयोगी निकलीं — एक भी जीप एक दिन के लिए भी उपयोग में नहीं आ सकी। जांच हुई, परंतु उसकी रिपोर्ट को अज्ञातवास में डाल दिया गया। यह मामला केवल आर्थिक अनियमितता तक सीमित नहीं था, यह देश की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ था।
नेहरू जी द्वारा प्रतिपादित पंचशील सिद्धांत और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे को नकारते हुए चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया, सैकड़ों जवानों का बलिदान हुआ, हत्या की और बड़े भूभाग पर अधिकार कर लिया। यह घटना नेहरू जी के लिए एक गहन मोहभंग सिद्ध हुई, जिससे वे कभी पूरी तरह उबर नहीं सके — और एक युग का पटाक्षेप हो गया। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नेहरू जी की प्रासंगिकता कुछ हद तक हाशिए पर चली गई है। उनके व्यक्तित्व और कार्यों को लेकर जो नये तथ्य सामने आए हैं, उनसे उनकी छवि को पर्याप्त संबल नहीं मिलता। भविष्य में उनकी भूमिका को कैसे आंका जाएगा, यह कहना कठिन है।
पुस्तक : जवाहरलाल हाज़िर हो लेखक : पंकज चतुर्वेदी प्रकाशक : पेंग्विन स्वदेश, गुरुग्राम पृष्ठ : 186 मूल्य : रु. 299.