वर्कप्लेस पर फायदे सभ्य संवाद के
सामाजिक जीवन के साथ ही कार्यस्थल पर भी सभ्य बोलचाल बहुत मायने रखती है। कामकाज के साथ ही सहकर्मियों से संयत व्यवहार आपका व्यक्तित्व और छवि निर्मित करता है। ऐसे में शब्दों का अनुशासन रखना बहुत जरूरी है। संवाद में संजीदगी वर्कप्लेस पर आपके बेहतर भविष्य से भी जुड़ी है।
डॉ. मोनिका शर्मा
वर्चुअल दुनिया में परोसे गए कंटेन्ट की अमर्यादित भाषा को लेकर चल रही बहस के बीच सभ्य शब्दों का महत्व आवश्यक है। आभासी संसार से कहीं ज्यादा असली दुनिया में सधी संतुलित अभिव्यक्ति जरूरी है। खासकर कूल बनने और कमाल का व्यक्तित्व हो जाने की भूलभुलैया के इस दौर में युवाओं को यह बात समझनी ही होगी। जरूरी है कि अपने वर्कप्लेस पर भी शब्दों की सभ्यता का दामन थामे रहें। सधी छवि और सफल भविष्य के लिए वर्कप्लेस पर सभ्य भाषा बहुत मायने रखती है।
शब्दों से जुड़ा सम्मान
कामकाजी संसार में किसी भी तरह के लिखित या मौखिक कम्युनिकेशन में असभ्य शब्दों का इस्तेमाल करने से बचें। असभ्य शब्द बिल्कुल न बोलें। आपके शब्दों से स्वयं का सम्मान भी जुड़ा है। दूसरों के मन और मान को ठेस पहुंचाने वाले शब्दों के इस्तेमाल से कभी खुद इज्जत को नहीं मिल सकती। दफ्तर में भी ह्यूमर के नाम पर किसी सहकर्मी या सहायक स्टाफ की हंसी उड़ाने की गलती बहुत से लोग करते हैं। इस तरह के असामान्य और कुंठाग्रस्त व्यवहार के घेरे में आने से बचने के लिए पहले ही कदम पर सजगता जरूरी है। वरना जाने-अनजाने कुछ भी कह-सुना देने की आदत बन जाती है। आदत बनने पर बिना सोचे-समझे मुंह से अभद्र शब्द निकलने लगते हैं। कैरियर को नुकसान पहुंचाने वाली यह आदत खुद आपको भी एक कुंठित व्यक्तित्व ही देती है। कामकाजी दुनिया में अनुशासित रहना बहुत आवश्यक है। अच्छी भाषा भी इसी अनुशासन का हिस्सा है। युवाओं को समझना चाहिए कि किसी के भी असभ्य संवाद करने से पहले याद रखें कि ये शब्द स्वयं आपके सम्मान से भी जुड़े हैं।
अच्छी छवि का आधार
बातचीत में इस्तेमाल होने वाले अभद्र शब्द इंसान की बॉडी लैंग्वेज भी बिगाड़ देते है। हाव-भाव को नेगेटिव रंगत में ढाल देते हैं। शब्दों पर कंट्रोल ना करना आपकी बॉडी लैंग्वेज को भी अजीबोगरीब बना देता है। समझना मुश्किल नहीं कि ऐसी सभी बातें इंसान के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। जो सीधे-सीधे वर्कप्लेस पर आपकी इमेज बिगाड़ने वाली बातें हैं। वहीं सोच-समझकर बोलना न केवल आपका फर्स्ट इंप्रेशन पॉजिटिव बनाता है बल्कि आगे भी आपकी सकारात्मक छवि को कायम रखता है। सामाजिक जीवन हो या प्रोफेशनल मोर्चा, सोशल एटिकेट्स हमेशा मायने रखते हैं। आप समझ ही नहीं पाते कि बातचीत में गलत शब्दों का चुनाव आपको असहयोगी और अकड़ू व्यक्ति का तमगा देने वाला साबित होता है। चर्चित शोधकर्ता अल्बर्ट मेहराबियन द्वारा दिया गया 55-38-7 का फॉर्मूला समझाता है कि कम्युनिकेशन 55 फीसदी नॉन वर्बल, 38 प्रतिशत मुखर होता है। सिर्फ 7 फीसदी हिस्सा ही यह लिए होता है कि आप वास्तव में क्या कहते हैं। ऐसे में मजाक हो या प्रतिक्रिया देना, गलत शब्दों का इस्तेमाल आपकी अभिव्यक्ति की पूरी शृंखला ही बिगाड़ देता है।
खुलेंगी बेहतरी की राहें
कामकाजी दुनिया में आपके सीनियर हो या जूनियर, सही सोच और अच्छे मैनर्स से सबका दिल जीता जा सकता है। स्पष्ट है कि इससे कैरियर में आगे बढ़ने में मदद मिलती है। बेहतर प्रोजेक्ट्स आपके हिस्से आते हैं। इतना ही नहीं, सभ्य भाषा का बर्ताव कई बार आपको किसी तकलीफ से भी बचा लेता है। सहकर्मियों से किया सधा संवाद कामकाज का पॉज़िटिव परिवेश बनाता है। जिसके चलते लोगों का दिल जीतने के साथ-साथ कामयाबी भी आपके हिस्से आती है। मन जीतने के इन सभी मोर्चों पर अच्छी भाषा सबसे ज्यादा मायने रखती है। असल में देखा जाए तो सकारात्मक शब्दों और सभ्य बोलचाल के प्रभाव का यह सिलसिला इंटरव्यू से ही शुरू हो जाता है। बावजूद इसके युवाओं की अजीबो-गरीब भाषा शैली आज चिंता का विषय बन गई है।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों में भी सामने आया है कि आमतौर पर युवा बेझिझक अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इस बर्ताव के पीछे मौजूद साइकोलॉजिकल कारण बताते हैं कि आज की युवा पीढ़ी बोलने या करने से पहले कुछ नहीं सोचती। साथ ही वे इस बात से भी प्रभावित नहीं होते कि कोई उनके बारे में क्या सोचेगा? या उनके बोले शब्दों का किसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? जबकि जीवन का कोई पक्ष असभ्य शब्दों के नकारात्मक असर से नहीं बच पाता। जरूरी है कि युवा आज के दौर में विस्तार पाती वर्बल अभद्रता की संस्कृति से बचें। दफ्तर में भावों, विचारों और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हुए संयत और सभ्य शब्दों का चुनाव करें। सधे व्यक्तित्व की सौगात देने वाला यह व्यवहार आपके लिए बेहतरी के मार्ग खोलने वाला साबित होगा।