लोककला, सूफी संगीत और स्वाद का जादुई संगम
नक्की झील की ठंडी हवा, पहाड़ियों की गोद में बजते ढोल और थिरकती लोकधुनें... माउंट आबू का समर फेस्टिवल हर साल मई में रंगों, सुरों और स्वादों की ऐसी त्रिवेणी रचता है, जहां राजस्थान की मिट्टी की खुशबू लोकजीवन की आत्मा को छू जाती है।
धीरज बसाक
राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में हर साल बुद्ध पूर्णिमा के समय आयोजित होने वाला तीन दिवसीय ‘माउंट आबू समर फेस्टिवल’ लय और ताल की एक ऐसी सरगम रचता है जिसका हिस्सा होकर सारी इंद्रियां तृप्त हो जाती हैं। इस साल यह 10 से 12 मई तक आयोजित होगा।
लोकधर्मी आनंदोत्सव
इस विशेष बहुरंगी कार्निवाल में लोकनृत्य, संगीत, रंग-बिरंगे जुलूस और एक से बढ़कर एक रोमांचक प्रतियोगिताएं देखने को मिलती हैं। इस तीन दिवसीय उत्सव में एक से बढ़कर एक आकर्षण होते हैं जैसे माउंट आबू की गोद में स्थित स्थिर पानी वाली नक्की झील पर नौका दौड़, स्केटिंग रेस, मटका फोड़ प्रतियोगिता, रस्साकशी और रंग-बिरंगे जुलूस के साथ हर शाम समां बांधने वाली शाम-ए-कव्वाली कार्यक्रम। राजस्थानी संस्कृति, आदिवासी रीति-रिवाजों और लोकरंगी परंपराओं के फ्यूजन का जो नजारा माउंट आबू ग्रीष्मोत्सव में दिखता है, वैसा लोकधर्मी आनंदोत्सव शायद ही कहीं और देखने को मिलता हो।
गर्मी की तपिश में शीतल ताज़गी
यह राजस्थान के सबसे मशहूर सांस्कृतिक उत्सवों में से एक है, जो अपने आपमें राजस्थानी लोकसंस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक हैं। मई के महीने में जब राजस्थान ही नहीं बल्कि समूचे उत्तर भारत का मैदानी हिस्सा तप रहा होता है, तब मरु प्रदेश का यह एकमात्र हिल स्टेशन यहां आने वाले सैलानियों को गर्मी की तपिस से जीवंत ताजगी का अनुभव प्रदान करता है। एक तरह से यह ग्रीष्मोत्सव यहां आये सैलानियों को मानसून के पहले कला और संस्कृति की आनंदमय बारिश का सुकून देता है। माउंट आबू में भीगी भीगी तपिस वाली चट्टानें, शांत झीलें, सुखद पृष्ठभूमि का एक ऐसा वातावरण रचती हैं जो इस उत्सव में चार चांद लगा देता है। यह पारंपरिक राजस्थानी संगीत का आनंदोत्सव है, जो अपनी रग-रग में राजस्थान के आदिवासी जीवन और संस्कृति का परिचय देता है।लोकरंगी-परंपराओं का फ्यूजन
हर साल बुद्ध पूर्णिमा के समय आयोजित होने वाला यह फेस्टिवल पहाड़ी क्षेत्र के लोगों की चमक और उनके मेहनत, मशक्कत भरे जीवन में रंग-बिरंगी खुशबुओं का खजाना पेश करता है। युवा इस उत्सव में न सिर्फ खाते-पीते आनंद मनाते हैं बल्कि अपने भावी जीवन के लिए मनपसंद जीवनसाथी की भी तलाश करते हैं। राजस्थान का यह समर फेस्टिवल भले प्रदेश के बहुत सारे ग्रीष्म उत्सवों में से एक हो, लेकिन यह प्रदेश के सम्पूर्ण सांस्कृतिक परिदृश्य की झलक दिखाता है। इस लोकोत्सव में गवरी, घूमर, गेर, डांडिया जैसे खालिस राजस्थानी नृत्य प्रस्तुतियां देखने को मिलती हैं। साथ ही यहां हर शाम सूफी परंपरओं का एक ऐसा नजारा, भजन व कव्वाली के रूप में सामने आता है, जिसकी इस मरुस्थल में होने के पहले शायद कल्पना भी न की जा सके।
आध्यात्मिकता का धवल रंग
राजस्थान की लोकलुभावन चटख संस्कृति से इतर यह कार्यक्रम बिल्कुल एक अलग आध्यात्मिकता के धवल रंग में डूबा माहौल रचता है, जहां लोग भक्ति और अध्यात्म के खास आयाम में पहुंच जाते हैं। माउंट आबू फेस्टिवल राजस्थानी हस्तशिल्प और लोककलाओं का भी नायाब मंच है। इस फेस्टिवल में इस मरुधरा के विभिन्न हिस्सों से आये शिल्पकार अपनी कलाकृतियों के उत्कृष्ट नमूने पेश करते हैं।
चटख जीभ का रंग
जहां आनंद का उत्सव है, वहीं कला का एक विहंगम मंच भी है और हां, राजस्थान के किसी भी दूसरे लोकोत्सव की तरह यहां भी स्वाद की गंगा बहती है। वैसे भी कहा जाता है, जहां राजस्थानी लोकरंग होंगे, वहां सबसे चटख तो जीभ का रंग ही होगा। इसलिए माउंट आबू फेस्टिवल खास तौरपर गट्टे की सब्जी, मिर्ची बड़ा और दाल बाटी चूरमा के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। इस फेस्टिवल में राजस्थान के हर कोने में बनने वाली तीन दर्जन से ज्यादा राजस्थानी मिठाइयां चखने का भी मौका मिलता है, जो अब कुछ रचनात्मक लोगों की वजह से ही बची हैं।
सैलानियों का मिलनोत्सव
यह फेस्टिवल सैलानियों की नजर में इस कदर पैसा वसूल होता है कि जो भी एक बार यहां आता है, अगर संभव हुआ तो हर हाल में वह लौटकर दोबारा कम से कम एक बार तो आता ही है। यही कारण है कि हर गुजरते साल के साथ माउंट आबू महोत्सव देसी-विदेशी सैलानियों का बहुत बड़ा मिलनोत्सव भी बन चुका है। हर साल इस फेस्टिवल में यहां देश-विदेश के कई लाख सैलानी आते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा गुजरात, पंजाब, दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र के लोग होते हैं, वहीं विदेशी सैलानियों में बड़ी तादाद यूरोपीयनों की होती है। साल दर साल विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया के कारण इसकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी है।अतीत और वर्तमान की झलक
तीन दिनों तक चलने वाले इस फेस्टिवल में राजस्थान के सिर्फ अतीत की ही झांकी नहीं दिखाई जाती बल्कि वर्तमान की भी उसकी अनेक उपलब्धियों को बहुत करीने से पेश किया जाता है ताकि यहां आने वाले सैलानी राजस्थान की लोक संस्कृति की ताकत और उसके आकर्षण को महसूस कर सकें। यही कारण है कि लोककला, संगीत, भोजन और शिल्प का यह माउंट आबू ग्रीष्म उत्सव दुनिया के सबसे चटख उत्सवों में से एक बन चुका है। इ.रि.सें.