लालच से हारती कछुए की चाल
के.पी. सिंह
हर वर्ष 23 मई को वर्ल्ड टर्टल डे यानी कछुआ दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत अमेरिकन टॉर्टोइज रेस्क्यू द्वारा की गई थी। इस दिवस की शुरुआत 23 मई, 2000 में एक अमेरिकन टॉर्टोइज रेस्क्यू संस्था द्वारा की गई थी। कैलिफोर्निया के मालिबू शहर में रहने वाली सुसान टेलमेल ने इस दिवस को वर्ल्ड टर्टल डे नाम दिया था। सन् 2000 से इस दिवस को कई देशों में मनाया जाता है। लोगों में कछुओं के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इस दिवस की शुरुआत की गई थी।
कछुआ एक ऐसी प्रजाति है जिसने इस धरती पर 200 मिलियन साल पहले कदम रखा था। लेकिन धीरे-धीरे इसकी कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। आज हालात यह है कि कछुए और मगरमच्छ दुनिया के सबसे लुप्तप्राय जीवों में है, जिनकी अब लगभग आधी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुए एक अध्ययन में जो निष्कर्ष निकलकर सामने आये हैं, उनके अनुसार कछुओं और मगरमच्छों की खपत की दर मुख्य रूप से समुद्री कछुओं जैसे सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली प्रजातियाें को प्रभावित करती हैं। अध्ययन के परिणाम इस ओर भी इशारा करते हैं कि आईयूसीएन में कछुओं और मगरमच्छों की सभी प्रजातियों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में मूल्यांकित किया गया है, जिनमें से विलुप्त होने वाले 13 फीसदी अनोखे जीव गायब हो सकते हैं।
दुनियाभर में कछुओं की प्रजातियों पर मंडराने वाले खतरों में उनके मूल आवास या रहने की जगहों को नुकसान सबसे बड़ा खतरा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी अस्तित्व में पर खतरे मंडरा रहे हैं। मानव द्वारा इनका व्यापार के लिए शिकार भी पूरी दुनिया में इनकी खत्म होती प्रजातियां एक बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहे हैं। गौरतलब है कि कछुएं लंबे समय तक जीवित रहते हैं, लेकिन लोगों द्वारा इसका खाने के लिए उपयोग करने, इनमें बढ़ती बीमारियों और प्रदूषण की वजह से भी ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार कछुए हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। कुछ कछुए बीज फैलाने में उपयोगी होते हैं तो कुछ बिल बनाकर अन्य प्रजातियों के लिए आवास बनाते हैं और यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने में मदद करते हैं।
यूनाइटेड किंगडम स्थित वर्ल्ड वाइड ट्रेड मॉनर्टिंग नेटवर्क ऑफ द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) से जुड़ी संस्था ट्रैफिक इंडिया द्वारा खुलासा किया गया है कि कछुओं की देसी 29 में से 25 प्रजातियों पर इनके अवैध शिकार और गैरकानूनी कार्रवाई की वजह से इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
आईयूसीएन द्वारा ताजे पानी के टर्टल को भारत में रेड लिस्ट में डाला गया है और कई अन्य प्रजातियों को भारतीय संरक्षण कानून शेड्यूल में एक में रखा दिया गया है। शीर्ष पर लाल मुकुटधारी कछुए को गंभीर खतरे वाली श्रेणी में रखा गया है। इ.रि.सें.