रेखा के हवाले दिल्ली
ढाई दशक बाद भाजपा के दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के उपरांत ग्यारह दिन की गोपनीयता के बाद बुधवार को नये मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता के नाम का खुलासा हुआ। बृहस्पतिवार को तमाम तामझाम के साथ रामलीला मैदान में उनका राज्याभिषेक भी हो गया। प्रधानमंत्री तथा केंद्रीय मंत्रियों, राजग के घटक दलों के नेताओं और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों व उप मुख्यमंत्रियों तथा भाजपा के दिग्गजों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री के अलावा छह मंत्रियों ने शपथ ली। शपथ लेने के बाद रेखा गुप्ता ने दिल्ली को संपन्न,विकसित, आत्मनिर्भर बनाकर राज्य की जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का संकल्प जताया। वे सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित व आतिशी के बाद चौथी महिला मुख्यमंत्री बनी हैं। यह संयोग ही है कि वे भी दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह वैश्य बिरादरी से ताल्लुक रखती हैं और हरियाणा मूल की हैं। वे हरियाणा मूल की तीसरी मुख्यमंत्री हैं। निस्संदेह, हाल के वर्षों में महिला वोटरों ने राजनीतिक परिदृश्य बदलने में निर्णायक भूमिका निभाई है। फलत: राजनीतिक दलों ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिये लुभावनी योजनाएं घोषित की हैं। ऐसी योजनाओं का असर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड के हालिया चुनावों में देखने को भी मिला है। ऐसे में रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने महिला मतदाताओं को यह संदेश देने का प्रयास भी किया है कि महिलाएं उसकी राजनीतिक प्राथमिकताओं में शामिल हैं। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने महिलाओं को हर माह पच्चीस सौ रुपये देने का वायदा इसी मकसद से किया था। वैसे ऐसी ही घोषणाएं कांग्रेस व आप ने भी की थी। उल्लेखनीय तथ्य है कि भाजपा शासित राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में रेखा गुप्ता पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। वहीं दूसरी ओर एक बार उनके चयन से भाजपा ने फिर साबित किया कि संघ व उसके आनुषंगिक संगठनों से आये नेताओं को ही शीर्ष पदों के चयन में वरीयता दी जाती है।
वहीं रेखा गुप्ता इस मायने में भाग्यशाली हैं कि वे पहली बार विधायक बनने के बावजूद मुख्यमंत्री का ताज हासिल करने में सफल रही हैं। हालांकि, वह भाजपा के विभिन्न संगठनों में पिछले तीन दशकों से सक्रिय रही हैं और तीन बार दिल्ली नगर निगम पार्षद भी रही हैं। हालांकि, इससे पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाये जाने को लेकर खूब चर्चा रही। इसकी वजह उनकी राजनीतिक विरासत के अलावा, उनका आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को हराना भी था। जनता ने भी उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की टक्कर का मानकर जिताया। कयास लगाये जा रहे थे कि कई कारणों से नाराज जाट समुदाय को मनाने की कोशिश में उन्हें यह पद मिल सकता है। लेकिन जैसा कि भाजपा की रणनीति रही है, वह राजनीति में परिवारवाद के तमगे से बचने का प्रयास करती रही है। राष्ट्रीय स्तर पर परिवारवाद का विरोध भाजपा का मुख्य एजेंडा भी रहा है। कुछ विवाद भी प्रवेश वर्मा की बयानबाजी को लेकर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक मर्यादा को लांघने वाले रेखा गुप्ता के पुराने ट्वीट भी सोशल मीडिया पर खासे वायरल हो रहे हैं। वैसे तो भाजपा कह सकती है कि डबल इंजन की सरकार दिल्ली के विकास को नई दिशा देगी। लेकिन नई मुख्यमंत्री को आप सरकार के शैक्षिक सुधारों, मुफ्त बिजली-पानी, मोहल्ला क्लीनिक व अन्य लोककल्याण के कार्यक्रमों के बड़े विकल्प देने होंगे। दिल्ली की जनता लगातार प्रदूषण, जल भराव, विकास, कूड़े के ढेरों तथा ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रही है। पूर्व मुख्य मंत्रियों व एलजी से टकराव के चलते दिल्ली के विकास की गति थम सी गई थी। एक महिला मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें बेटियों की सु्रक्षा की अतिरिक्त जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि फिर दिल्ली में निर्भया कांड जैसे हादसे न हों। वहीं चुनाव के दौरान भाजपा के प्रमुख एजेंडे में शामिल रही यमुना की सफाई को भी उन्हें अपनी प्राथमिकता बनानी होगी। वहीं उन्हें ध्यान रखना होगा कि भले की आम आदमी पार्टी सत्ता से बाहर हुई हो,लेकिन अच्छे-खासे विधायकों के साथ वह एक मजबूत प्रतिरोधी विपक्ष के रूप में विधानसभा में मौजूद है।