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रुपये-रुपये करके थके तो बने बहुरूपिये

04:00 AM May 14, 2025 IST
रुपये रुपये करके थके तो बने बहुरूपिये
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डॉ. हेमंत कुमार पारीक

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कभी-कभी इंसान की अतृप्त आत्मा उसे उकसाती है। उसे विशेष हरकत करने को विवश करती है। नसीब से कुछ मिल जाता है तो आदमी सोचता है मैं ये भी बन जाऊं वो भी बन जाऊं। ऐसा काम पहले बहुरूपिया करते थे। हालांकि शौकिया। थोड़ा-बहुत कमा लेते थे। कभी मां काली का भेष धर लेते, कभी गले में आला डालकर डॉक्टर बन जाते, कभी हाथ में छड़ी लिए सिर पर टोप लगाए चोगा धारण कर जादूगर तो कभी धोती-कुर्ते में सिर पर टोपी लगाए और हाथ में सोंटा लिए मास्टर। उनका असली चेहरा सामने न आता। पर लोग पता लगा ही लेते हैं। लेकिन अब बहुरूपियों के जमाने न रहे। वरना तो कभी ईस्ट इण्डिया कम्पनी व्यापारी का भेष धरकर आई थी और पूरे देश की मालिक बन बैठी। अब तो बिना रूप बदले ही बहुरूपिये मिल जाते हैं।
फिलहाल दादाभाई ने पुरानी कला को पुनर्जीवित करने का काम किया है। सोचा नहीं था कि अमेरिका जैसे देश का रहनुमा लगभग मर चुकी एक कला में प्राण फूंक देगा। सो दादाभाई को पोप फ्रांसिस के भेष में देखकर कई सवाल खड़े होते हैं। उन्हें देश का प्रेसिडेंट माने या संत बनने के लिए लाइन में लगा केंडिडेट। पर हां, इस कलाकारी ने खुद उनके लिए नये-नये रास्ते खोल दिए हैं। कुछ भी बन सकते हैं। मसलन पुतिन या गैलेक्सी वगैरा। पर ध्यान रहे कुछ भी बन सकने में वह अपना असली किरदार न भूल जाएं। टैरिफ का गुणा-भाग न भूल जाएं। कल को कहीं अपने को ईश्वर का अवतार मानने लगें तो क्या होगा?
दरअसल, बहुरूपिये कभी भी अपने असली किरदार में नजर नहीं आते। मगर गांव का बहुरूपिया मातादीन स्वांग उतारकर अगले दिन स्कूल का घंटा बजाता था। मतलब चपड़ासी था। अगर कोई पूछता कि कल तो तुम्हारे एक हाथ में खोपड़ी थी और दूसरे में तलवार। तो हंसते हुए कहता, राई को भाव रातें गयो! मतलब यह कि अब वह चपड़ासी है। उसे इसी रूप में देखें।
दादाभाई की पोप के भेष में एआई फोटो देखकर दुनिया के तमाम महामहिम इसके डिप्लोमेटिक अर्थ निकाल रहे होंगे। कारण कि हाउडी-हाउडी चिल्लाने वाला अचानक संत के भेष में क्रास हिलाने लगे तो? पता नहीं आने वाले दिनों में वह शी जिनपिंग या किम जोंग आदि के भेष में नजर आए। बहुरूपिये ऐसे ही होते हैं। पड़ोसी देश को देख लो। खाड़ी देशों में जियारत के लिए जाते हैं लोग और बहुरूपिये बन जाते हैं और फिर भिखारी के भेष में भीख मांगने लगते हैं। हमारे यहां तो बाबाओं के भेष में बहुरूपियों की कमी नहीं है। सैकड़ों हैं। मसलन कम्प्यूटर वाले बाबा, मोबाइल और लेपटॉप वाले आदि।

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