रील की फील और शादी में ढील
शमीम शर्मा
आज की युवा पीढ़ी शादी से नफरत करती है। नफरत करती है या डरती है, राम जाने। स्वाभाविक-सी बात है कि जब युवा वर्ग को शादी पसंद नहीं है तो बच्चों का जन्म भी खटाई में पड़ जायेगा। कुछ साल पहले तक भी उस लड़की को कोसा जाता था जिसकी शादी 27-28 साल तक नहीं हुआ करती। और जिसके बच्चे नहीं हुआ करते, उसके लिये तो गालियों की पूरी माला है। बांझ स्त्री सिवाय बोझ के कुछ भी नहीं मानी जाती थी। इसी क्रम में एक सवाल यह भी बनता है कि बांझ शब्द का पुल्लिंग क्या होता है। बच्चों को जन्म देने में अशक्त रहे मर्दों को कभी प्रताड़ना का सामना नहीं करना पड़ा। खैर, अब तो दोनों ही रजामंदी से बांझ रहने को तैयार हैं।
कई बातों में समय ने ऐसी पटखनी ली है कि अंगुली खुद दांतों तले आ जाती है। अब लड़के-लड़कियों ने स्वयं ही बांझपन को गले लगा लिया है। बस फर्क इतना-सा है कि वे बेचारे-बेचारी तो चाह कर भी बच्चे पैदा नहीं कर सकते थे और ये आजकल वाले और वालियां बच्चे पैदा करना ही नहीं चाहते। बस करिअर करिअर करिअर।
पति-पत्नी संबंधों को ठोकर मारने वाली आजकल की हमारी बेटियां आजादी और स्वावलंबन के नाम पर चौके-चूल्हे को दुत्कारने लगी हैं। ज्यादा पढ़ी-लिखियों को रोटी चाहे बेलनी न आती हो पर आजकल की लड़कियों ने रील बनाने में रिकाॅर्ड कायम कर दिये हैं। अच्छे अच्छों की वाट लगा रखी है। चिन्ता होती है कि कब ये लड़कियां पढ़ती होंगी और कब विवाह-करिअर के बारे में सोचती होंगी। और जो विवाहित महिलायें इस कर्म में जुटी हैं, अवश्य ही उनके बच्चों को रील पहले और रोटी बाद में मिलती होगी। लड़कों के भी ‘पापा’ बनने के चाव पानी भरने चले गये हैं। पापा ही नहीं बनेगा कोई तो दादा बनने की तो सोच भी नहीं सकता।
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एक बर की बात है अक इम्तहान खतम होये पाच्छै रामप्यारी घरां आई तो उसकी मां बोल्ली- आं ए, तन्नैं कितणी वार हो ली, किसतै बतलाण लाग री है फोन पै? रामप्यारी इतराते होये बोल्ली- मां यो मेरा फरैंड सै। न्यूं सुणते ही वा बोल्ली- डट ज्या, तन्नैं मैं बणाऊ सूं फरैंड। अर न्यूं कहे पाच्छै ठा कै फूंकणी उसनैं रामप्यारी के मंगर लील्ले बणा दिये अर लेकै जूत भटाभट सिर के सारे ढेरे मार दिये। जद काॅलेज शुरू होये तो रामप्यारी का एक कान लाल होरया अर दोन्नूं गाल और मेल के हो रे। उसका फरैंड हाय रामप्यारी कहकै बूज्झण लाग्या- तेरे फेस को क्या हो गया यार? रामप्यारी बोल्ली- घर की पैड़ियां म्हं मेरा पांव रिपट गया था अर मैं फेस के तान गिरगी थी।