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रील की बजाय रीयल जिंदगी जीने की दें सीख

04:05 AM Mar 25, 2025 IST
रील की बजाय रीयल जिंदगी जीने की दें सीख
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बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए रील्स से थोड़ी दूरी रखना जरूरी है। हालांकि ऐसा भी नहीं कि यह एकदम से बंद किया जाये। दरअसल इसके सकारात्मक इस्तेमाल से बच्चे बहुत कुछ सीखते भी हैं। लेकिन रील आदि देखना सब अभिभावकों के मार्गदर्शन और नियंत्रण में हो तो बेहतर है। यदि आपने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो बच्चा गलत रास्ते पर भी चल सकता है।

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दीप्ति अंगरीश
फोन हाथ में आया नहीं कि छोटे-बड़े रील्स को देखना शुरू कर देते हैं। यह देखना लगातार जारी रहता है। कोई भी एक-दो देखने के बाद नहीं रुकता। इन्हें खीझ तब आती है जब समय की सुई आगे भागती है। बेवजह सही कामों में लगने वाला समय ज़ाया हो जाता है। दरअसल आजकल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर रील्स एक प्रमुख ट्रेंड बन गया है। ये शॉर्ट वीडियो बच्चों को आकर्षित करते हैं, लेकिन इनका मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
डावांडोल होती है मानसिक स्थिति
अधिकांश रील्स में अक्सर ऐसी सामग्री होती है, जो आदर्शवादी, काल्पनिक या अत्यधिक उत्तेजक होती है, जो बच्चों की मानसिक स्थिति पर असर डाल सकती है। इसे एकदम से बंद नहीं करें। बेहतर है अपनी देख-रेख में बच्चे को रील्स देखने दें।
डगमगाता है आत्मविश्वास
अधिकांश रील्स में जो जीवनशैली दिखाई जाती है, वह बच्चों को अपनी वास्तविकता से असंतुष्ट कर सकती है। वे महसूस कर सकते हैं कि उनके पास जो है वह न तो आकर्षक और न ही महत्वपूर्ण। इसका असर उनकी संवेदनाओं और आत्म-विश्वास पर पड़ता है।
बढ़ता है अवसाद
जब बच्चे रील्स में दूसरों को शानदार जीवन जीते हुए देखते हैं, तो वे अपने जीवन को असंतोषजनक महसूस करने लगते हैं। दरअसल, वे रील और रियल के बीच का सूक्ष्म भेद नहीं जान पाते हैं। इससे बच्चों व किशोरों की मानसिक स्थिति पर असर पड़ता है और उनमें चिंता, अवसाद और तनाव जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
उड़ती है नींद
स्कूल से घर आते ही बच्चे फोन में रील्स देखते हैं। रात में जब सब सोने जाते हैं, तब फोन को लेकर चिपक जाते हैं। यह समय की बर्बादी हैं। उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता। इस आदत से उनका नींद का पैटर्न भी बिगड़ जाता है। नतीजतन बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं और उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
आई साइट पर असर
आपका बच्चा भी दिन-रात फोन में रील्स देखता है, तो उसे ऐसा नहीं करने दें। लगातार ऐसा करने से दृष्टि संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। लगातार मोबाइल या टैबलेट की स्क्रीन पर नजरें रखने से आंखों में थकावट, जलन और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
खेलकूद जैसी एक्टीविटीज में कमी
हर पल रील्स देखने से बच्चों की शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। कारण यह कि बच्चा एक जगह बैठकर सिर्फ फोन में रील्स ही देखता है। ऐसे में बच्चे खेलों से दूर हो जाते हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
कम होती संवेदनशीलता
रील्स में दिखाए गए हास्य और चुटकुलों की वजह से बच्चों में दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी हो सकती है। वे यह समझने में असमर्थ हो सकते हैं कि मजाक या टिप्पणियों का किसी के मन पर क्या असर हो सकता है।
सामाजिक दबाव
रील्स में दिखाए गए ट्रेंड्स और लाइफस्टाइल के कारण बच्चों पर एक सामाजिक दबाव महसूस हो सकता है। वे यह महसूस कर सकते हैं कि अगर वे इन ट्रेंड्स का पालन नहीं करेंगे तो वे समाज से बाहर हो जाएंगे, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक असर हो सकता है।
फोकस का गड़बड़ाना
रील्स का निरंतर सेवन बच्चों की एकाग्रता की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। छोटे-छोटे वीडियो देखने की आदत से उनका ध्यान भटकता रहता है, जिससे वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते।
समय की बर्बादी
बच्चों का अधिक समय रील्स देखने में बर्बाद हो जाता है, जिससे वे अन्य महत्वपूर्ण और रचनात्मक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाते, जैसे किताबें पढ़ना, नई चीजें सीखना या खेलों में भाग लेना। यहां तक कि दोस्तों से मिलना-जुलना भी कम हो जाता है।

दिखाए गये ब्रांड का प्रभाव

रील्स में दिखाए गए ब्रांड्स और उत्पादों को देखकर बच्चों को लगता है कि खुश रहने के लिए महंगे सामान की आवश्यकता होती है। इससे उनकी वास्तविकता और पैसे के महत्व को समझने में कमी आ सकती है। बच्चे यह सोच सकते हैं कि अगर उनके पास ये महंगे उत्पाद नहीं हैं, तो वे दूसरों से कमतर हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि रील्स पूरी तरह से बच्चों के जीवन से हटा दें। उन्हें रील्स देखने भी दें और बनाने भी दें। लेकिन इसकी समय सीमा तय आप करें। बच्चों के स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें, ताकि वे अधिक समय रील्स देखने में न गंवाएं, जो भी देखें कंटेंट सकारात्मक, प्रेरणादायक, शैक्षिक और सकारात्मक हो। बच्चों को शारीरिक गतिविधियों और आउटडोर खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास स्वस्थ होगा। सबसे जरूरी है कि बच्चों के साथ नियमित संवाद करें, ताकि वे सोशल मीडिया के प्रभावों को समझ सकें और किसी भी नकारात्मक असर के बारे में आपके साथ बात कर सकें।

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