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राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का रंगोत्सव

04:05 AM Mar 10, 2025 IST
राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम का रंगोत्सव
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ब्रज क्षेत्र में होली का त्योहार राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम का प्रतीक बनकर मनाया जाता है। यहां की होली सिर्फ रंगों और गुलाल से नहीं, बल्कि लड्डू, फूलों और लट्ठ से भी खेली जाती है, जो इसे अद्वितीय बनाती है। फुलेरा दूज से लेकर रंग एकादशी तक, यह उत्सव उल्लास, भक्ति और सांस्कृतिक धरोहर का संगम होता है।

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धीरज बसाक
यूं तो होली का त्योहार पूरे भारत में ही नहीं बल्कि जहां जहां भारतीय लोग बसे हैं, पूरी दुनिया में मनाया जाता है। मगर होली का जो महत्व राधा और कृष्ण की लीलाभूमि ब्रज क्षेत्र में है, होली का वैसा उल्लास, वैसा सांस्कृतिक महत्व कहीं और देखने को नहीं मिलता। ब्रज में सिर्फ रंगों से ही होली नहीं खेली जाती, यहां फूलों, लड्डू और लट्ठ से भी होली खेली जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
वैसे तो ब्रज में होली की शुरुआत वसंत पंचमी से ही हो जाती है, लेकिन होली खेलने की शुरुआत फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से होती है, जिसे आम भाषा में फुलेरा दूज कहते हैं। यह दिन वास्तविक अर्थों में भगवान कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने राधा रानी को अपना प्रेम जताने के लिए फूल अर्पित किए थे और बदले में राधा रानी ने भी भगवान कृष्ण पर फूलों की वर्षा की थी।
इसलिए समूचे ब्रज क्षेत्र के लिए फुलेरा दूज का बहुत ही धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसी दिन से पूरे ब्रज क्षेत्र में फाग उत्सव की शुरुआत होती है। वृंदावन से फाग गाने वालों की टोली बरसाना आती है और फिर बरसाना की टोली और वृंदावन से आये फगहरियों की टोली के बीच खूब फाग गाये जाते हैं। इस दिन फूल, रंग, गुलाल सब कुछ का धमाल होता है और पूरे वेग से ब्रज क्षेत्र में होली का उत्सव शुरू हो जाता है।
शुभ कार्यों की शुरुआत
लेकिन फुलेरा दूज का महत्व सिर्फ होली के उल्लास तक ही नहीं सीमित, धार्मिक मान्यता के मुताबिक यह इतना मंगलकारी दिन होता है कि कोई भी शुभ कार्य जिसका मुहूर्त न निकला हो, वह इस दिन किया जा सकता है। मसलन बिना मुहूर्त के इस दिन विवाह हो सकता है। मुंडन संस्कार हो सकता है। गृह प्रवेश किया जा सकता है। जनेऊ संस्कार होते हैं और संपत्ति की खरीदारी तथा कोई नया बिजनेस शुरू करने के लिए भी यह सर्वाधिक शुभ दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन जो दंपति भगवान कृष्ण और राधा रानी की विधिवत पूजा करते हैं, उनका दांपत्य जीवन खुशियों से भरा होता है।
पूजा और व्रत का महत्व
इस दिन व्रत रखने का विधान है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है और उन्हें सुगंधित रंग, अबीर, गुलाल चढ़ाया जाता है। इस दिन व्रत करने वालों को दिन में एक बार ही और सात्विक भोजन करना चाहिए। घरों और मंदिरों में इस दिन सफाई होती है और मूर्तियों को नये वस्त्र पहनाए जाते हैं। इस दिन को साल का सबसे मंगलकारी मुहूर्त वाला दिन यानी अबूझ मुहूर्त दिन भी कहते हैं।
जीवन में होली की तैयारी
कृषि आधारित जीवन जीने वाले लोग इसी दिन से होली की विधिवत तैयारियां शुरू कर देते हैं। घरों में गुझियां, पापड़ आदि बनने का उपक्रम शुरू हो जाता है। प्राकृतिक तरीके से रंग और गुलाल बनाने की शुरुआत होती है और फुलेरा दूज से शुरू हुआ उल्लास ब्रज क्षेत्र में रंग एकादशी तक अपने चरम पर पहुंच जाता है। गौरतलब है कि ब्रज में सबसे ज्यादा होली का रंगीन उत्सव रंग एकादशी को मनता है, जिसकी शुरुआत फुलेरा दूज पर राधा और कृष्ण को फूल गुलाल अर्पित करने से होती है।
लड्डूमार होली
ब्रज में फाल्गुन का महीना पूरी तरह से उत्सव और उल्लास का महीना होता है। इस महीने में लाखों टन लड्डू होली खेलने में खर्च होते हैं और इस लड्डूमार होली का अलग ही महत्व होता है। देश में बहुत सारे त्योहारों को सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, लेकिन समूचे ब्रज क्षेत्र में जिस उल्लास के साथ होली का उत्सव मनता है, वैसा उल्लास देश में शायद ही किसी दूसरे त्योहार पर कहीं देखा जाता हो। फाल्गुन के महीने में हर ब्रजवासी, हुरियारे (होली खेलने वाले) में बदल जाता है और इस होली का केंद्रीय स्थल वृंदावन और बरसाना होते हैं।
पर्यटक भी सम्मोहित
फाल्गुन के महीने में पूरे समय ब्रज क्षेत्र में कृष्ण लीलाओं का आनंद लिया जाता है। हर साल इस पूरे एक महीने में हजारों विदेशी पर्यटक इस अद्भुत होली उत्सव का आनंद लेने के लिए ब्रज में आते हैं, जिसकी शुरुआत फुलेरा दूज से होती है।
लट्ठों का धमाल
ब्रज में इसी दिन के साथ हर तरफ रसिया गानों की स्वर लहरी गूंजने लगती है। फिजा में राधा कृष्ण के प्रेम के रसिया गीत गूंजने लगते हैं और इन्हीं रसिया गीतों की पृष्ठभूमि में कहीं लड्डुओं से होली की धमाचौकड़ी मची होती है, तो कहीं सुंदरियों के लट्ठ से ब्रज के पुरुष हुरियारे मीठी-मीठी चोट खाकर होली का धमाल कर रहे होते हैं। यह पूरी तरह से हंसी-खुशी और ठिठोली का उत्सव है। इस पूरे महीने ब्रज की फिजा में खूब रंग अबीर उड़ते हैं। बरसाना, नंदगांव, मथुरा और वृंदावन खास तौर पर इस उत्सव के मंच स्थल होते हैं। जहां ब्रज की खास होली की धूम पूरे महीने अलग-अलग रूप रंग में दिखती है।
मंदिरों में उल्लास
आश्चर्य और उल्लास की बात यह है कि ब्रज की इस होली में संत, महंत भी जमकर थिरकते हैं, जमकर आनंद मनाते हैं। पूरे समय फाल्गुन के महीने में ब्रज में ढोल नगाड़ों की थाप गूंजती रहती है। हर तरफ रसिया धुनों पर हुरियारे (पुरुष भी महिलाएं भी) राधा-कृष्ण के प्रेम के नशे में झूमते रहते हैं। तरह-तरह के प्रेम गीतों की इस पूरे महीने बारिश होती रहती है और एक तरह से पूरे ब्रज क्षेत्र के मंदिर भी होली के उल्लास में डूबे रहते हैं।
ब्रज में होरा
माना जाता है कि सबसे पहले राधा रानी ने भगवान कृष्ण के साथ होली खेली थी और इसी दौरान ग्वालबाल भी इस उत्सव में शामिल हो गए थे। तब राधा रानी अपनी गोपियों के साथ ब्रज के ग्वालबालों को लाठियों की मीठी धमक से होली की उमंग में ले जाती हैं। इसलिए माना जाता है कि ब्रज की होली सबसे अलग है। कहा भी जाता है ‘सब जग होरी, ब्रज में होरा’ और इस होरे की शुरुआत फुलेरा दूज से होती है। इ.रि.सें.

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