राजनीति का मचान और उफ से उपजा स्नान
मुकेश राठौर
मोहन जोदड़ो में महास्नानागार मिलने के बावजूद यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि नहाने की विधिवत शुरुअात कब हुई और कौन इसका जन्मदाता है? जो भी हो, इतना तो साफ समझ आता है कि नहाने का उद्देश्य तन के मैल को धोने से रहा होगा। मैला होगा पहला स्नानार्थी, उफ़ से उपजा होगा स्नान।
खुद पर पानी डालो या खुद को पानी में, एक जैसी बात है, फिर भी दोनों में बहुत अंतर है। एक इनडोर एक्टिविटी है तो दूसरी आउटडोर। एक एकल है तो दूसरा प्रायः सामूहिक होता है। एक में मैल छूटता है तो दूसरे में मैल पानी से जा मिलता है। एक को नहाना तो दूसरे को स्नान की संज्ञा दी गई है। स्नान अहा! कितना पवित्र शब्द है। कई बार घर में नहाने से मैल न छूटता देख आदमी बाहर स्नान का मन बनाता है। खासकर मन का मैल। ये बात और है कि मन का मैल धोने के लिए तन को रगड़ने के खटकरम हो रहे हैं। मान्यता है कि नदियों में स्नान से जातक के सारे पाप धुल जाते हैं। यह स्नान अवसर विशेष पर ही किया जाए तब तो समझो सौ प्रतिशत संपूर्ण स्नान। आप कहेंगे तब तो नदी गंदी हो जाती होगी, नहीं वह क्यों गंदी होने लगी, वह गंदगी सागर में ले जाकर छोड़ देती है। आप फिर पूछेंगे, तो सागर गंदा हो जाता होगा! नहीं, सागर ठहरा महासागर उसे कौन गंदा कहेगा? दुनियाभर की गंदगी अपने में समेटे महासागर सदा से प्रणम्य रहे हैं और रहेंगे।
राजनीति और धर्म में स्नान का बड़ा महत्व है। तन और मन का मैल धोने बड़ी संख्या में लोग इस ओर भागे जा रहे हैं। नदी घाटों पर स्नान करने वालों को देखते ही बनता है। इनके शाही स्नान में राही फंसे तो फंस जाएं। सही पार्टी और पंथ पकड़ लिया तो उद्धार सुनिश्चित है। चुनाव जीते तब तो समझो गंगा नहाए। चुनाव न भी जीते और सरकारी ठेकेदार बन जाए तो भी बहुत कुछ पुण्य कमाया जा सकता है। दूसरी ओर कोई जातक जिसने दुनियादारी के हाथ जोड़ते थक-हारकर धर्म की डोर पकड़ ली तो यही दुनिया एक दिन उसके पैर छूने लगती है। पैर छुआने का अपना महत्व है। अगर ऐसा न होता तो आसमान छूते आईआईटीयंस और बॉलीवुड स्टार बाबा क्यों बनते?
पहले के लोग सिर्फ पानी से नहाकर तरोताजा हो लिया करते थे, लेकिन अब नहाने के लिए पानी के साथ साबुन, शैंपू आदि की भी जरूरत पड़ती है। नहाने का अर्थ अब केवल तन की सफाई नहीं बल्कि जग दिखाई और सुंघाई भी हो गया है ताकि बाजू से गुजरो तो लोग कह उठें ‘तुम सबसे हसीं, तुम सबसे जवां’। आज नहाते लोगों की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट दिखाना चैनल वाले अपना परमोधर्म समझ रहे हैं। घर और घाट छोड़ जल बीच लंगोट में खड़े थर-थर कांपते आदमी की इज्जत का क्या, उन्हें अपनी टीआरपी से मतलब है।
बहरहाल, जाती सर्दी में कुंभ स्नान के लिए क्या आम और क्या खास, लोग आते ही जा रहे हैं।