रहस्यों व मिथकों के बीच एक अद्भुत स्थापत्य कला
कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा का एक अद्वितीय स्थापत्य चमत्कार, सूर्य देवता को समर्पित है और अपनी भव्यता तथा रहस्यमयी कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का रचना सूर्य के रथ के रूप में की गई है, जिसमें 12 जोड़ी पहिए और सात शक्तिशाली घोड़े हैं। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त, यह मंदिर अपनी रहस्यमयी कहानियों और स्थापत्य सौंदर्य के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है।
अलका ‘सोनी’
एक मंदिर जहां विशाल देव प्रतिमाओं के होने के बावजूद पूजा करने की मनाही है! दूसरी तरफ मंदिर के प्राचीर पर बनी प्रतिमाएं कुछ और ही कहानी कहती दिख पड़ती हैं। स्थापत्य कला ऐसी कि आंखें ठहर जाएं। साथ ही रहस्य की ढेरों कथाएं समेटे सदियों से वो अपनी जगह खड़ा है। उसकी संरचना और विशिष्टताओं के कारण यूनेस्को ने उसे विश्व धरोहरों में शामिल किया है।
हम बात कर रहे हैं उड़ीसा के सबसे खूबसूरत मंदिर ‘कोणार्क’ की। कोण यानी कोना, और अर्क यानी सूर्य। दोनों शब्दों को मिला दें तो बनता है ‘सूर्य का कोना’। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और इसकी संरचना भी सूर्य के रथ के समान है। जिसके हर कोण से सूर्य और उसकी किरणों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। सूर्य की किरणें तो लुकाछिपी करती दिखती हैं। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। जिससे 700 साल से कई कहानियां जुड़ी हैं। जो हमें अपनी ओर आकर्षित करती रहतीं हैं। इस मंदिर ने समय के साथ बदलाव, शहरों और साम्राज्यों का उत्थान और पतन, पहचानों का मिट जाना, सब देखा है। कोणार्क सूर्य मंदिर के रहस्य रोचक मिथकों और लोककथाओं से घिरा है, जो सुलझे और अनसुलझे दोनों हैं। मंदिर के बंद प्रवेश द्वार के पीछे नर्तकियों की कथाओं और रहस्यों का घर है।
कोणार्क, ओडिशा राज्य के पुरी ज़िले में स्थित एक नगर है। यहां का सूर्य मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। जितनी सुंदर कल्पना है, रचना भी उतनी ही भव्य है। मंदिर अपनी विशालता, निर्माण सौष्ठव, वास्तु और मूर्तिकला के समन्वय के लिये अद्वितीय है।
मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
कोणार्क मंदिर अपनी कलात्मक भव्यता और इंजीनियरिंग कौशल के लिए प्रसिद्ध है। विशेषज्ञों के अनुसार, सूरज की पहली किरण का, मुख्य द्वार से स्वागत करने के लिए इसे डिज़ाइन किया गया था। आज भी, सूर्य की किरणें पहियों पर पड़ती हैं। जो सूर्यघड़ी के रूप में काम करती हैं और समय बताने के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं।
इसकी ऐतिहासिकता के बारे में अकबर के प्रसिद्ध दरबारी इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा राजवंश के शासक नरसिंहदेव प्रथम ने करवाया था। इस मंदिर के मुख्य वास्तुकार बिसु महाराणा थे। हालांकि यह मंदिर अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और इसकी संरचना का अधिकांश भाग ख़राब हो चुका है, फिर भी यह भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। संरचना का निर्माण काले ग्रेनाइट से किया गया था और इसे पूरा होने में 12 साल लगे थे।
यह सच है कि मंदिर का अधिकांश भाग अब खंडहर हो चुका है। कई लोगों का मानना है कि मंदिर प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षतिग्रस्त हुआ था, जबकि कुछ का मानना है कि भारत में शासन करते समय विधर्मियों ने उन्हें नष्ट कर दिया था। लेकिन कारण अभी भी अज्ञात है।
जुड़ी हैं कई कहानियां
कोणार्क मंदिर से कई ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियां भी जुड़ी हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों को अपने सम्मोहन से बांध लेती हैं। सुनने वालों को आश्चर्य से भर देती है। कोणार्क सूर्य मंदिर की पूजा नहीं की जाती है क्योंकि राजा नरसिंहदेव ने मंदिर के निर्माण के लिए एक समय सीमा तय की थी, इसे कारीगर पूरा नहीं कर पाए थे, जिससे 1200 श्रमिकों और मुख्य वास्तुकार बिशु महाराणा की जान खतरे में पड़ गई। उन सबको फांसी की सजा दी जाने वाली थी।
तभी अचानक, धर्मपद नाम का एक छोटा लड़का प्रकट हुआ,जिसने बिशु महाराणा के बेटा होने का दावा किया और 1200 श्रमिकों की जान बचाने के लिए तथा राजा के अहंकार को तोड़ने के लिए मंदिर की चोटी से चंद्रभागा नदी में छलांग लगा दी थी। लोगों का मानना है कि वह बालक स्वयं सूर्य देवता थे, और तब से कोणार्क मंदिर में पूजा अनुष्ठान नहीं होते।
एक और कहानी के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने एक बार नारद मुनि के साथ दुर्व्यवहार किया था। जिससे नारद जी क्रोधित हो गए और उन्हें कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। साम्ब ने श्रापमुक्ति हेतु मित्रवन में चंद्रभागा नदी के संगम पर भगवान सूर्य की कठोर तपस्या की। भगवान सूर्य को चिकित्सक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान सूर्य की पूजा करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। अत: साम्ब ने भी कठिन आराधना करके सूर्य देव को प्रसन्न किया। उस समय भगवान सूर्यदेव प्रसन्न हुए और साम्ब को ठीक कर दिया। इसके बाद साम्ब ने कोणार्क में सूर्य देव का मंदिर बनाने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि जब साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तो उन्हें सूर्य देव की एक मूर्ति भी मिली थी, जिसका निर्माण वास्तु विशेषज्ञ विश्वकर्मा जी ने किया था। बाद में साम्ब ने मित्रवन में सूर्य मन्दिर बनवाया।
हर कोण से अद्भुत
कोणार्क दर्शन के बिना ओडिशा की यात्रा अधूरी मानी जाती है और ऐसा हो भी क्यों नहीं!! कोणार्क का स्थापत्य और वास्तु है ही इतना अद्भुत। जिसे सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया है।
रथ को खींचने हेतु लगे पहिए आज भी समय बताने का काम करते हैं। ये 12 जोड़ी पहिए साल के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंदिर के तल पर पाए जाने वाले ये पहिये समय को भी दर्शाते हैं। पहिए की तीलियां एक धूपघड़ी का आकार बनाती हैं। पहियों द्वारा डाली गई छाया को देखकर दिन के सही समय की गणना की जा सकती है। जोड़ी के दो पहिये एक महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को परिभाषित करते हैं।
इस मंदिर को बनाने के लिए जिन पत्थरों (क्लोराइट, लेटराइट और खोंडालाइट) का इस्तेमाल किया गया है, वे भारत के बाहर से लाए गए थे। संभवत: अन्य देशों से पत्थर लाने के लिए समुद्री मार्ग का उपयोग किया जाता था। इससे पता चलता है कि तब भी भारत के दूसरे देशों से व्यापारिक संबंध थे।
साथ ही आप प्रवेश द्वार के दोनों ओर दो शेर देख सकते हैं, जो एक-एक हाथी को कुचलते हुए दिखाई दे रहे हैं। यहां शेर शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और हाथी धन का प्रतिनिधित्व करता है।
कैसे पहुंचे
तटीय शहर होने के कारण कोणार्क जाने का उपयुक्त मौसम सर्दियां है। इसलिए, यहां घूमने के लिए सबसे उपयुक्त समय सितंबर से मार्च तक यानी सर्दियों का है। क्योंकि कोणार्क में गर्मियां असाधारण रूप से गर्म और आर्द्र होती हैं। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग 316 ए गुज़रता है। यह जगन्नाथ मन्दिर से 21 मील उत्तर-पूर्व समुद्रतट पर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है। यह ट्रेन, बस और टैक्सियों द्वारा भुवनेश्वर और पुरी से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
भुवनेश्वर में बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 65 किमी दूर है और लगभग एक घंटे की ड्राइव है। पहुंचने पर, आप अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए भुवनेश्वर हवाई अड्डे की टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
सड़क द्वारा
अगर आप मंदिर तक सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं, तो आप कोणार्क में कैब या बस सुविधा बुक करके अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं।
रेल द्वारा
पुरी रेलवे स्टेशन कोणार्क मंदिर से सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 30 किमी दूर है। आप भुवनेश्वर से पुरी तक ट्रेन ले सकते हैं और फिर मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी बुक कर सकते हैं।