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रक्तदान को जन आंदोलन बनाने की जरूरत

04:00 AM Jun 14, 2025 IST
रक्तदान को जन आंदोलन बनाने की जरूरत
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देश के लिए जरूरी रक्त का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा अनुपलब्ध रहता है। यह कमी तब अधिक गंभीर हो जाती है, जब एनीमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएं देश की बड़ी आबादी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।

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चेतनादित्य आलोक

रक्त के बिना मानव शरीर हाड़-मांस के एक ढांचे से अधिक नहीं होता। वहीं, शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए पर्याप्त रक्त की जरूरत होती है। यदि शरीर में रक्त का अभाव हो जाए तो व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ जाता है। वहीं, दुर्घटनाओं, जटिल सर्जरी, कैंसर के उपचार, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसे गंभीर रोगों से जूझ रहे रोगियों के लिए रक्त की उपलब्धता जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन जाती है। जाहिर है कि यदि किसी बीमार या जरूरतमंद व्यक्ति को जरूरत के समय रक्त न मिले तो उसकी जान भी जा सकती है।
यह विडंबना ही है कि आज दुनियाभर के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, रक्त की उपलब्धता में एक गंभीर और चिंताजनक असमानता बनी हुई है। गौरतलब है कि रक्त किसी कारखाने में नहीं बनता, बल्कि यह केवल एक स्वस्थ मानव शरीर में ही पैदा होता है। ऐसे में, केवल स्वस्थ व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले रक्तदान से ही रक्त की कमी को पूरा किया जा सकता है। बता दें कि यदि रक्त की कमी को दूर कर लिया जाए तो प्रत्येक वर्ष जो 12000 भारतीय समय पर रक्त नहीं मिलने के कारण मर जाते हैं, उनकी जान बचाई जा सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महान वैज्ञानिक और चिकित्सक कार्ल लैंडस्टाईन के जन्मदिन 14 जून को ‘विश्व रक्तदाता दिवस’ के रूप में मनाए जाने की शुरुआत 1997 में की थी। कार्ल लैंडस्टाइन ने मानव रक्त में उपस्थित एग्ल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्तकणों का ‘ए’, ‘बी’ और ‘ओ’ समूहों में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उनको सन‍् 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। विश्व रक्तदाता दिवस को लेकर डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य दुनियाभर में सौ प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान कार्यक्रम को सफल बनाना था। इसीलिए उसने इस कार्यक्रम में दुनिया के 124 प्रमुख देशों को शामिल कर उनसे स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने की अपील की थी। तब इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित करना तथा रक्तदान से जुड़ी दुनियाभर में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करना था। विश्व रक्तदाता दिवस का वास्तविक उद्देश्य जरूरतमंद लोगों तक रक्त उपलब्ध कराना ही रहा है, ताकि रक्त के अभाव में किसी व्यक्ति की जान न जाए। साथ ही रक्त की आवश्यकता पड़ने पर किसी को रक्त खरीदने की नौबत न आए।
विडंबना है कि कई देशों में आज भी रक्त की खरीद-बिक्री का बाजार गर्म पाया जाता है। दुर्भाग्य से, इस सूची में भारत का नाम भी शामिल है, जबकि ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में लोग बिना पैसे लिए स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। हालांकि, तमाम विसंगतियों के बावजूद, रक्तदान को लेकर विभिन्न संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा विभिन्न स्तरों पर उठाए गए कदमों के कारण भारत में स्वैच्छिक रक्तदान को काफी बढ़ावा मिला है।
चिकित्सकों का स्पष्ट मत है कि 18 वर्ष से अधिक एवं 65 वर्ष से कम उम्र का कोई भी स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। रक्तदान करने वाले व्यक्ति का वजन 45 किलोग्राम से अधिक होना चाहिए। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति को भूल से भी रक्तदान नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति को पूर्व में हेपेटाइटिस-बी या हेपेटाइटिस-सी जैसे रोग हुए हों, तो उसे भी रक्तदान नहीं करना चाहिए। रक्तदान करने से पहले व्यक्ति को प्रोटीनयुक्त आहार लेना चाहिए। साथ ही, शरीर में आयरन की मात्रा भरपूर रखने के लिए रक्तदाता को आयरनयुक्त वस्तुओं यथा किशमिश, पालक आदि का सेवन करना चाहिए।
एक बार के रक्तदान में रक्त की पूर्ति शरीर चौबीस घण्टे के भीतर स्वयं ही कर लेता है, जबकि रक्त की गुणवत्ता की पूर्ति रक्तदान के 21 दिनों के भीतर हो जाती है। जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं, उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम सताती हैं। वहीं, मानव रक्त की संरचना ऐसी होती है कि उसमें मौजूद रहने वाली लाल रक्त कोशिकाएं प्रत्येक तीन महीने में स्वयं ही मर जाती हैं। तात्पर्य यह कि प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति के लिए तीन महीने में एक बार रक्तदान करना लाभप्रद होता है।
भारत में आज भी रक्त की कमी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, जो लाखों जिंदगियों के लिए खतरा साबित होने लगी है। आंकड़ों के अनुसार, देश में सालाना लगभग 1.3 करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है। इसके बावजूद, प्रत्येक वर्ष देशवासियों को लगभग 19 लाख यूनिट रक्त की कमी का सामना करना पड़ता है। तात्पर्य यह कि देश के लिए जरूरी रक्त का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा अनुपलब्ध रहता है। यह कमी तब अधिक गंभीर हो जाती है, जब एनीमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएं देश की बड़ी आबादी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। हालांकि, विडंबना यह भी है कि इस गंभीर कमी के बावजूद, रख-रखाव की कमी, अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियों के कारण दान किए गए रक्त का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है।

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