रंगों के जरिये जीवन के संदेश
अरुण कुमार कैहरबा
करीब पचास सालों से बाल साहित्य की सेवा में लगे गोविंद शर्मा का हाल ही में प्रकाशित बाल उपन्यास ‘नाचू के रंग’ बच्चों को संस्कारित और शिक्षित करने वाली रोचक कथा है। लेखक की कल्पना और आदर्श के खूबसूरत रंगों से सृजित उपन्यास का मुख्य किरदार नाचू अद्भुत कारनामों से पाठकों का खूब मनोरंजन करता है।
कल्पना के संसार का पात्र होने के बावजूद नाचू यथार्थ के धरातल पर प्रभावशाली बना है। रंग और ब्रश उसके औजार हैं। इनसे वह शरारत भी करता है और डांट भी खाता है। उसके चेहरे पर मुस्कान रहती है। इनके दिखाई देने का विशेष अर्थ है। रंग और ब्रश से उसने एक से बढ़कर एक कमाल किए हैं। पाठक एक किस्से के बाद दूसरे किस्से का इंतजार करता हुआ उत्सुकता से उपन्यास को पढ़ता है और कथा के बहाव के साथ बहते हुए पूरी रचना पढ़कर संतुष्ट हो जाता है। इसके बाद भी रचना पाठकों को बेचैन कर सकती है।
बाल पाठक नाचू के साथ खुद की तुलना करते हैं। नाचू द्वारा स्थापित किए गए मूल्यों की कसौटी पर खुद को कसते हैं और भले ही वे नाचू जैसा न बन पाएं, लेकिन उनमें मन लगाकर पढ़ने, दूसरों का सहयोग करने, अपनी हॉबी को निखारने, बुराई का विरोध करने, स्वच्छता, पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मूल्यों को आत्मसात करने की भावना जागती है। रचना पाठकों के मन में बनावटी सुंदरता और दिखावटी समाज सेवा की आलोचना करने का साहस पैदा करती है।
कृत्रिम रंगों की चित्रकारी प्राकृतिक हरियाली और सौंदर्य की श्रेष्ठता सिद्ध करती है और प्रकृति के संरक्षण के लिए मेहनत करने पर बल देती है। उपन्यास की भाषा सशक्त, सरल, सहज और मजेदार है।
पुस्तक : नाचू के रंग लेखक : गोविंद शर्मा प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 52 मूल्य : रु. 150.