रंगभरे कैनवस पर रची गयी फिल्में
होली के मस्ती भरे माहौल का बॉलीवुड के फिल्मकारों ने बहुत फायदा उठाया है। रंग-गुलाल के बीच किसी संवाद, या दृश्य कहानी को मोड़ देने या फिर आगे बढ़ाने के लिए अकसर इस्तेमाल किया जाता रहा। कई कालजयी होली गीत भी इसी मकसद को लेकर फिल्माए गये।
कैलाश सिंह
साल का यह समय वह है, जब फ़िज़ा में लाल, गुलाबी, पीले व हरे रंग बिखरे हुए हैं। इसके लिए होली का शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है। रंगों के इस उत्सव का भारतीय संस्कृति में ज़बरदस्त महत्व है और इस अवसर की मौज-मस्ती का बॉलीवुड फिल्मकारों ने भरपूर फायदा उठाया है। रोमांस, ड्रामा व जज्बाती उतार-चढ़ाव की कहानियों को पेंट करने के लिए होली का इस्तेमाल कैनवस के रूप में किया गया। अनेक फिल्मों में कहानी आगे बढ़ाने के लिए होली पृष्ठभूमि के तौरपर प्रयोग की गयी।
होली कब है?...
होली कब है? इस डायलॉग को गब्बर सिंह (अमजद खान) ने बोला था ताकि वह होली के अवसर पर रामगढ़ पर हमला कर सके। इस तरह कहानी को दिशा देने के लिए फिल्म में होली की उमंग व पृष्ठभूमि का प्रयोग किया गया। यही नहीं, रंगों का यह उत्सव वीरू (धर्मेंद्र) व बसंती (हेमा मालनी) के बीच प्रेम की पींगें बढ़ाने के लिए भी प्रयोग किया गया और इस अवसर पर जो गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ गाया गया वह तो होली प्लेलिस्ट का हिस्सा बन गया है।
‘रंग बरसे’ की भूमिका
यश चोपड़ा की फिल्म ‘सिलसिला’ में होली का सीन और चर्चित गीत ‘रंग बरसे’ भी है, जो कहानी को महत्वपूर्ण मोड़ देने में भूमिका निभाता है। जैसे ही होली की तरंग सिर चढ़कर बोलती है वैसे ही अमित (अमिताभ बच्चन) और चांदनी (रेखा) अपनी शर्म, संकोच को भूल जाते हैं। उनका प्रेम जगज़ाहिर हो जाता है और अमित की पत्नी शोभा (जया बच्चन) और चांदनी का पति डॉ. आनंद (संजीव कुमार) इस प्रेम लीला को देखते रहते हैं। यहीं से फिल्म के किरदारों में तनाव उत्पन्न होने लगता है।
‘मोहब्बतें’ में होली का प्रयोग
फिल्म ‘मोहब्बतें’ में होली उत्प्रेरक का काम करती है, जिससे रीति-रिवाजों पर प्रेम को विजय हासिल करने का अवसर मिल जाता है। विद्रोही राज आर्यन मल्होत्रा (शाहरुख़ खान) एहतियात को ताक पर रखकर अपने छात्रों को होली का जश्न मनाने के लिए ले जाता है। छात्र नाचते-गाते हुए प्रेम में गिरफ्तार हो जाते हैं और यह बात गुरुकुल के प्रधानाचार्य नारायण शंकर (अमिताभ बच्चन) को पसंद नहीं आती है। लेकिन तब तक होली की वजह से गुरुकुल में विद्रोह का बिगुल बज चुका होता है।
‘बलम पिचकारी’ की धुन
अयान मुख़र्जी की फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ में बन्नी (रणबीर कपूर) और नैना (दीपिका पादुकोण) के जीवन में नया मोड़ आता है। नैना को बन्नी गंभीर व पढ़ाकू समझता था, लेकिन जब होली जश्न में वह नैना को बिंदास, मस्त रूप में देखता है तो उसका नैना के प्रति नज़रिया बदल जाता है। हमें दोस्ती और मस्ती के पल ‘बलम पिचकारी’ की धुन पर देखने को मिलते हैं। इसी तरह ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ फिल्म में जब राम (रणवीर सिंह) और लीला (दीपिका पादुकोण) रंगों के बादलों में फ़्लर्ट करते हैं, तो उनमें प्यार खिलने का अवसर मिल जाता है।
दामिनी का होली सीन
फिल्म ‘दामिनी’ की कहानी का आधार ही होली पर हुई घटना थी। एक गरीब घर की दामिनी (मीनाक्षी शेषाद्री) को एक रईस लड़का (ऋषि कपूर) नाचते हुए देखता है। अपने परिवार का विरोध करते हुए भी उससे शादी कर लेता है। लड़की उस खोखले समाज में अपने को मिसफिट पाती है, पर बर्दाश्त करती रहती है। लेकिन उसके सब्र का बांध उस समय टूट जाता है, जब होली पर उसके पति का छोटा भाई दोस्तों के साथ मिलकर घर की नौकरानी से सामूहिक बलात्कार करता है, और बाद में हत्या भी, जिसे दामिनी देख लेती है और अदालत से दोषियों को सज़ा दिलाती है।
...तो होली न सिर्फ रंगों व मस्ती का त्योहार है बल्कि प्रेम व्यक्त करने का अवसर भी। ज़ाहिर है ऐसी सिचुएशंस फिल्म वालों को बहुत पसंद आती हैं, इसलिए बहुत सी फिल्मों की कहानियों का ताना-बाना होली के इर्दगिर्द बुना गया और होली पर फ़िल्मी गानों की तो एक लम्बी सूची है। हालांकि फिल्मों में अब होली गाने न के बराबर हो गये हैं। हालांकि पहले की हिंदी फिल्मों में ऐसे बहुत ही कम वर्ष हैं कि जिस साल कोई न कोई हिट गीत होली पर न आया हो। हिंदी फिल्मों में होली के गीत देने का ट्रेंड महबूब खान की फिल्म ‘औरत’ (1940) से शुरू हुआ, जिसमें होली के एक नहीं बल्कि दो गीत थे। पहला गीत था ‘जमुना तट श्याम खेले होरी’ और दूसरा था ‘आज होली खेलेंगे साजन के संग’। -इ.रि.सें.