यारी साइकिल की सवारी से
ज्ञाानदत्त पाण्डेय
सुबह-सुबह पहुंचे नगरा। उत्तर प्रदेश से आगे निकले प्रेमसागर। चंदौली जाना था संतोष मिश्र जी के यहां। चंदौली, बकौल उनके 131 किमी दूर था। बताया कि घंटे भर में 10-12 किमी की रफ्तार से साइकिल चलती है। इस हिसाब से बारह घंटे नॉन स्टॉप चलानी होती उन्हें साइकिल। प्रेमसागर पूरी तरह गणना कर नहीं चलते। पुरानी आदत छोड़ नहीं पाये। साइकिल से ही चलना है। स्पीड का पता नहीं। बाकी साइकिल की सवारी से ही है यारी। वह चंदौली नहीं पंहुचे। उसके लिये गंगा पार करते हैं। वह पहुंचे सैदपुर। करीब 100 किमी साइकिल चलाई। रास्ते के आधा दर्जन फोटो मेरे पास ठेले उन्होंने। नदी, रास्ते और पुलों के फोटो। उनसे कोई स्टोरी नहीं बनती। ट्रैवलॉग में कोई रंग नहीं आता सिवाय बदरंग के। साइकिल यात्रा इतनी नीरस होती है? शायद मैं उनसे दिन में चार-पांच बार बात कर उनसे अनुभव उगलवाता तो कुछ कथा कहानी निकलती। यूं असम्पृक्त-सा नहीं चलेगा लिखना।
बीच में तमसा नदी मिली। नदी क्या एक मझोली आकार की नहर-सी लगती है जिसके किनारे कच्चे हों। तमसा में पानी है पर एक नदी की तरह वह प्रसन्न नहीं करती। नदी माने गंगा या सरयू। यूं गोमती या सई भी बजबजाती मरी सी दीखती हैं। तमसा भी बीमार सी लगी मुझे। उसका पुल सिधारगढ़ घाट या पुल है नक्शे में पर प्रेमसागर ने लिख भेजा है। सिधाकर घाट गाजीपुर बलिया। प्रेमसागर स्थानों के नामों को वह इज्जत नहीं देते जो उनका ड्यू है। रात में वह सुरेश कुमार बरनवाल जी के घर डेरा किये। बरनवाल जी उनके देवरिया के संजय बरनवाल संपर्क से मिले, ‘भईया, सैदपुर पंहुच कर हम कोई मंजिल तलाश रहे थे रात गुजारने के लिये। इतने में संजय जी का फोन आया। उन्होने अपने जीजा सुरेश जी को मेरे पास भेजा।
सुरेश जी को आने में दो मिनट भर लगा होगा।’ प्रेमसागर सुरेश जी से पहले मिल चुके हैं देवरिया में। साइकिल यात्रा अभी तक प्रेमसागर के पुराने सम्पर्कों के माध्यम से चल रही है। कल वह वाया बनारस मेरे घर तक पंहुचेंगे। प्रयाग में संगम पर माघ मेला लगना है। अभी समय है वहां पहुंचने के लिये। दो दिन की साइकिल यात्रा से प्रेमसागर का मन लहकने लगा है। अब योजना बना रहे हैं साइकिल से बारहों ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करने की।
प्रेमसागर ने कहा, ‘इसमें तो समय भी कम लगेगा और रुकने की जगहें भी कम तलाशनी होंगी।’ मैं सोच नहीं पा रहा कि प्रेमसागर और उनकी साइकिल को कितनी तवज्जो दी जाये। पर उनके साथ यह वर्चुअल ट्रैवलॉग इतना प्लेन-वनीला-आइसक्रीम जैसा तो नहीं चल सकता। मुझे अपनी कल्पनाशीलता इसमें डालनी होगी।
साभार : ज्ञानदत्त डॉट कॉम