मौलिक अधिकारों संग गरिमापूर्ण जीवन का लक्ष्य
विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 का संदेश यही है—हर व्यक्ति को गरिमा, समानता और न्याय मिले, ताकि हम एक बेहतर और संतुलित समाज की नींव रख सकें।
प्रो. आरके जैन ‘अरिजीत’
समाज की असली शक्ति उसकी न्यायप्रियता, समता और गरिमा में निहित होती है। जब कोई वर्ग शोषण का शिकार होता है, श्रमिकों को उनके परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलता, जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किया जाता है, तब सभ्यता का आधार हिलने लगता है। विश्व सामाजिक न्याय दिवस मात्र एक तिथि नहीं, बल्कि एक सशक्त संकल्प है—ऐसे समाज के निर्माण का, जहां अन्याय की बेड़ियां तोड़ी जाएं और हर व्यक्ति को उसका हक मिले। यह दिवस जिम्मेदारी का अहसास कराता है कि हम न केवल अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें, बल्कि हर उस व्यक्ति की आवाज बनें, जिसे व्यवस्था ने हाशिए पर धकेल दिया है।
सामाजिक न्याय का अर्थ केवल कानूनी संरचनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर, गरिमा और अधिकार प्राप्त हों। यह केवल संविधान की किताबों में दर्ज कोई सिद्धांत नहीं, बल्कि एक जीवंत विचारधारा है, जो हर इंसान को बराबरी का हक दिलाने की वकालत करती है। समाज में जातीय भेदभाव, लैंगिक असमानता, बाल श्रम, मानव तस्करी, शोषणकारी मजदूरी और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच जैसी समस्याएं गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। यदि इन विषमताओं का अंत करना है तो सामाजिक न्याय को केवल एक आदर्श न मानकर, उसे क्रियान्वित करना होगा।
इस वर्ष, विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 की थीम है— ‘एक स्थायी भविष्य के लिए एक न्यायसंगत परिवर्तन को मजबूत करना।’ यानी समाज में होने वाले बदलाव—विशेष रूप से रोजगार, जलवायु परिवर्तन नीतियों और आर्थिक संरचनाओं में—निष्पक्ष और समावेशी हों, ताकि कोई भी पीछे न छूटे। आज, दुनिया तेजी से बदल रही है, लेकिन यह बदलाव तभी सार्थक होगा जब इसका लाभ हर व्यक्ति तक समान रूप से पहुंचे। श्रमिकों को उनका अधिकार मिले, पर्यावरणीय नीतियां गरीब और पिछड़े वर्गों को नुकसान पहुंचाने के बजाय उन्हें लाभ दें, और आर्थिक सुधार ऐसे हों, जो समाज के सभी तबकों को सशक्त करें। यह थीम हमें समावेशी और न्यायपूर्ण विकास की ओर प्रेरित करती है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यही रखा है कि हर व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकार मिले और वह गरिमापूर्ण जीवन जी सके। यह समस्या किसी एक देश तक सीमित नहीं है; पूरी दुनिया में गरीबों और शोषितों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है। विकसित देशों में भी श्रमिकों का शोषण होता है, महिलाएं समान अवसरों से वंचित रहती हैं और धार्मिक व जातिगत भेदभाव अभी भी कायम है। सामाजिक न्याय के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा श्रमिक अधिकारों की रक्षा हेतु बनाए गए कानून, सामाजिक कल्याण योजनाएं और संवैधानिक सुधार शामिल हैं।
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में सामाजिक न्याय की अवधारणा और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। भारतीय संविधान ने समानता, आरक्षण नीति, श्रमिक कल्याण, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के अधिकार जैसे कई उपाय किए हैं, ताकि समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके। डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी और अन्य समाज सुधारकों ने सामाजिक न्याय की मजबूत नींव रखी, जिसे हमें और अधिक सुदृढ़ करना है।
सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए सबसे प्रभावी साधन शिक्षा और जागरूकता हैं। जब हर नागरिक शिक्षित होगा, तभी वह अपने अधिकारों के प्रति सजग हो पाएगा। सरकार को ऐसी नीतियां लागू करनी चाहिए, जो गरीब और वंचित वर्गों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करे। न्यूनतम मजदूरी का पालन, श्रमिकों के हितों की रक्षा, महिलाओं के लिए समान कार्यस्थल नीति, बच्चों के लिए शिक्षा का अनिवार्य प्रावधान—ये सभी कदम सामाजिक न्याय की दिशा में मजबूत आधार तैयार कर सकते हैं।
आज की डिजिटल क्रांति ने अवसरों के नए द्वार खोले हैं, लेकिन इसके साथ ही डिजिटल असमानता भी बढ़ी है। गरीब और पिछड़े वर्गों के पास तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण वे इस दौड़ में पीछे छूट रहे हैं। डिजिटल समावेशन अब सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण पहलू बन चुका है। तकनीकी संसाधनों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित किए बिना, समान अवसरों की बात अधूरी रह जाएगी।
सामाजिक न्याय केवल सरकारों और संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है। सभी का कर्तव्य है कि हम अपने समाज में समानता, निष्पक्षता और न्याय को बढ़ावा दें। हमें हर प्रकार के भेदभाव के खिलाफ खड़े होना होगा, हाशिए पर खड़े लोगों की मदद करनी होगी और एक समावेशी समाज बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। जब तक समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर, अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक सामाजिक न्याय का सपना अधूरा रहेगा। केवल कानून बनाने से नहीं, बल्कि समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने से ही इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 का संदेश यही है—हर व्यक्ति को गरिमा, समानता और न्याय मिले, ताकि हम एक बेहतर और संतुलित समाज की नींव रख सकें।