मोबाइल शिष्टाचार भी हो
गगन शर्मा
कल मेरे एक मित्र घर आए। मैं लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। उनके आते ही मैंने उसे बंद कर उनका अभिवादन किया। दुआ-सलाम भी ठीक से नहीं हुई थी कि उनका फोन घनघना उठा और वह व्यस्त हो गए। बात खत्म होने के बाद भी वह निरपेक्ष भाव से सिर झुकाए मोबाइल पर कुछ खोजने की मुद्रा में रहे। इधर मैं बात के इंतजार में था। जब वह लगातार व्यस्त दिखे तो मैं भी कंप्यूटर को दोबारा होश में ले आया। हालांकि, मुखातिब उनकी ओर ही रहा। थोड़ी देर में वह बोले, अच्छा चला जाये।
सोचिए आप किसी के घर जाएं। वह अपने दस काम छोड़ आपकी अगवानी करे, और आपका फोन है कि आपको छोड़ ही नहीं रहा। मान लीजिए इसका उल्टा हो जाए। आप किसी के यहां जाएं और वह अपने फोन पर व्यस्त रहे तो...। घर के अलावा हालत यह है कि कुछ लोग ऑफिस पहुंच कर भी अपने फोन से बाहर नहीं निकल पाते। बहुत जरूरी सूचना की तो बात अलग है, लेकिन बेकार के मीम या क्लिप में समय बिताना कितना ठीक है?
जानकारों, मनोवैज्ञानिकों ने इस लत के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। फोन का भी अपना शिष्टाचार होना चाहिए। सबसे पहले तो फोन आने या करने पर अपना स्पष्ट परिचय दें। फोन करते समय सामने वाले का गर्मजोशी और खुशदिली से अभिवादन करें। बात करते समय किसी का भी तेज बोलना या चिल्लाना अच्छा नहीं माना जाता। गलती से गलत नंबर लग जाए तो क्षमा जरूर मांगें। जब भी आपसे कोई आमने-सामने बात कर रहा हो तो मोबाइल पर बेहद जरूरी कॉल को छोड़ न ज्यादा बात करें न ही स्क्रॉल करें। वहीं ड्राइविंग के वक्त, खाने की टेबल पर, बिस्तर या टॉयलेट में तो खासतौर पर मोबाइल न ले जाएं। अपने कार्यस्थल या मीटिंग के दौरान फोन साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखें और मैसेज भी न करें। धार्मिक स्थलों, बैठकों, अस्पतालों, सिनेमाघरों, पुस्तकालयों, अन्त्येष्टि इत्यादि पर बेहतर है कि फोन बंद ही रखा जाए।
कइयों की आदत होती है दूसरों के फोन में ताक-झांक करने की जो कतई उचित नहीं है। बिना वजह कोई भी एसएमएस दूसरों को फारवर्ड न करें, जरूरी नहीं कि जो चीज आपको अच्छी लगे वह दूसरों को भी भाए। ध्यान में रखने की बात यह है कि यदि आधुनिक यंत्रों का आविष्कार हमें सुख-सुविधा प्रदान कर रहा है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमारी सहूलियतें दूसरों की मुसीबत या असुविधा न बन जाएं।
साभार : कुछ अलगसा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम