मुक्ति की आकांक्षा और स्नानं रीलम् समर्पयामि
राकेश सोहम्
आदमी स्नान करे या न करे उसकी मर्जी। वह नित्य स्नान करे या हफ्ते में एक बार। इससे किसी को क्या लेना-देना? सुविधा है तो आदमी दिन में दस बार भी स्नान कर सकता है! कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी से स्नान करे या फिर कौवा स्नान से ही काम निपटा ले! भीषण गर्मी में गर्म पानी से स्नान करता फिरे, यह उसकी ख़ुशी है। आमतौर पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? होनी भी नहीं चाहिए। स्नान व्यक्ति का एकदम निजी मामला है। निजी मामलों में दखलंदाजी ठीक नहीं। स्नान को देखना और दिखाना दोनों ही अपराध की श्रेणी में माने गए हैं। फिल्म ‘दृश्यम्’ के एक किरदार को इस हरकत के लिए जान से हाथ धोना पड़ा था और उसकी खोज में पूरी की पूरी फिल्म हिट रही।
स्नान को देखने और दिखाने की छूट केवल सिनेमाई हस्तियों के पास हुआ करती है। वे स्नानागार में, नदिया के धारे में, झरने के नीचे, झील की वादियों में, समंदर के किनारे या फिर जाम से भरे गिलास में स्नान करती बालाओं को देख और दिखा सकते हैं। उसकी रील बनाकर दर्शकों को परोस सकते हैं। पर्दों के पीछे के स्नान को पर्दे पर दिखाने की अनुमति भी उन्हीं को मुहैया थी। आम आदमी बड़े चाव से निहारते हुए गुनगुना लेता था– हे पुतरा... ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए... गाना आए या न आए गाना चाहिए।
कालांतर में स्नान को देखने और दिखाने की सुविधा आम हो गई लगती है। मोबाइल धारक जब चाहे, जैसे चाहे स्नान की रील बना सकते हैं। अब तो मर्जी-बेमर्जी स्नान की रील बनाना भी आम हो चला है। वायरल होने का यह आसान उपाय है। लोगों में स्नान की रील वायरल होने का दंभ और भय दोनों दिखाई देता है। अक्सर दंभ, भय को भुनाने की कोशिश करता हुआ भी देखा गया है। लोग तो महाकुंभ में भी स्नान की रील बना रहे हैं और दिखा भी रहे हैं।
बहरहाल, कुंभ का समागम आमतौर पर स्नान का मेला ही तो है। करोड़ों करोड़ लोग स्नान के लिए जा रहे हैं। वहां स्नान से पाप धुल जाते हैं। पाप को धोने की प्रबल इच्छा उन्हें कुंभ के समागम में खींचे ला रही है। हालांकि, कई लोगों में रीलें देखकर भी स्नान की इच्छा प्रबल हुई होगी। शास्त्रानुसार इच्छाएं ही पाप का कारण होती हैं। इनका निवारण जरूरी है। हजारों हज़ार लोग निवारण की होड़ में घायल हो रहे हैं। पाप धो रहे हैं। रील बना रहे हैं। गो कि पाप धोते हुए देखना रील में अमर हो जाना है - स्नानं रीलम् समर्पयामि।