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मातृत्व संग बोनस है खुशनुमा लंबी जिंदगी

04:05 AM Apr 22, 2025 IST
मातृत्व संग बोनस है खुशनुमा लंबी जिंदगी
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कैरियर, आरामदायक जिंदगी को प्राथमिकता देने के चलते आजकल युवतियां संतान नहीं चाहतीं। ऐसे में वे मातृत्व सुख से वंचित रहती हैं। शोधों के मुताबिक, मातृत्व के बाद मानसिक स्थिति अच्छी रहती है। मांओं की उत्पादकता बेहतर हो जाती है व ज्यादा खुश रहती हैं। गर्भावस्था व ब्रेस्ट फीडिंग से गंभीर बीमारियों का जोखिम कम हो जाता है व उम्र लंबी होती है।

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शिखर चंद जैन
नई पीढ़ी की लड़कियां विवाह को कम महत्व दे रही हैं। जो विवाह करना चाहती हैं वे कैरियर को तवज्जो देने के कारण या तो बहुत देर से विवाह करती हैं या फिर मां नहीं बनना चाहतीं। इससे उन्हें अपनी आरामदायक जिंदगी में खलल पड़ने और फिगर खराब होने का डर सताता है। लेकिन एक स्त्री तभी संपूर्ण होती है जब वह मातृत्व सुख को भोगती है। विज्ञान भी मानता है कि मां बनने के कई शारीरिक व मानसिक लाभ हैं।
कैलिफोर्निया में स्त्रीरोग प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. फेलिस गेर्श कहती हैं, ‘गर्भावस्था किसी महिला शरीर के कार्डियोमेटाबोलिक सिस्टम पर होने वाले सबसे बड़े ‘तनाव परीक्षणों’ में से एक है। जिन महिलाओं ने बच्चे को जन्म दिया है, वे जीवन भर कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकती हैं, जिसमें कुछ प्रकार के कैंसर का कम जोखिम भी शामिल है।’ वाशिंगटन डीसी स्थित मनोचिकित्सक रूथी आर्बिट के अनुसार मातृत्व के कई मनोवैज्ञानिक लाभ भी हैं।
कैंसर का कम जोखिम
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार हर बच्चे के जन्म देने के साथ ही किसी भी महिला में डिम्बग्रंथि के कैंसर का खतरा कम होता है। गर्भावस्था नौ महीने तक ओवुलेशन को रोकती है। वहीं डॉ. फेलिस गेर्श के अनुसार, ‘जो महिलाएं अधिक उम्र में बच्चे पैदा करती हैं, उनमें डिम्बग्रंथि के कैंसर के विकसित होने का जोखिम काफ़ी कम हो जाता है।’
शिशु को ब्रेस्टफीड करने के लाभ
अध्ययनों से पता चलता है कि बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का कम जोखिम कम पाया गया। ब्रेस्ट फीडिंग का एक और लाभ यह है कि इससे रजोनिवृत्ति के बाद के वर्षों में स्ट्रोक का जोखिम कम होता है। जितने लंबे समय तक महिला स्तनपान कराती है, उसका जोखिम उतना ही कम होता है। स्तनपान से टाइप 2 मधुमेह,उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी समस्याएं विकसित होने का खतरा कम हो सकता है। क्लीवलैंड क्लिनिक की रिपोर्ट है कि एंडोमेट्रियोसिस या दर्दनाक मासिक धर्म के इतिहास वाली महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद पहले आसान और कम सताने वाला मासिक धर्म होता है।
बढ़ती है आयु
स्वीडिश शोधकर्ताओं ने 1911 और 1925 के बीच पैदा हुए लगभग 1.5 मिलियन पुरुषों और महिलाओं पर नज़र रखी और पाया कि माता-पिता बनने से जीवन में लंबे समय तक जीने की संभावना बढ़ सकती है। जर्नल ऑफ़ एपिडेमियोलॉजी एंड कम्युनिटी हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि 60 वर्ष की आयु की माताएं बिना बच्चों वाली माताओं की तुलना में डेढ़ साल तक अधिक जीवित रह सकती हैं।
उत्पादकता में वृद्धि
कई अध्ययनों में पता चला है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाएं अधिक उत्पादक हो जाती हैं। साल 2014 में शैक्षिक अर्थशास्त्रियों के एक अत्यंत विशिष्ट अध्ययन में पाया गया कि इस क्षेत्र में कार्यरत माताएं और पिता, दोनों ही अपने निःसंतान समकक्षों की तुलना में अधिक उत्पादक थे- और माताओं के जितने अधिक बच्चे थे, वे उतनी ही अधिक कुशल साबित हुईं। अध्ययन में बताया गया कि कम से कम दो बच्चों की माताएं औसतन एक बच्चे की माताओं की तुलना में अधिक उत्पादक होती हैं।
मां होती है बुद्धिमान
कई अध्ययनों के मुताबिक, बच्चे के जन्म के 4 महीने बाद मां के ब्रेन में ग्रे मैटर की मात्रा बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के ब्रेन में तरह-तरह के हार्मोन का उत्सर्जन होता है इसी का नतीजा है कि बच्चे के जन्म के 4 माह बाद मां के ब्रेन में ग्रे मैटर बढ़ जाता है और वह पहले से ज्यादा बुद्धिमान हो जाती है। वहीं मातृत्व आपको प्राथमिकताएं निर्धारित करने में मदद कर सकता है।
उदासी में कमी
जो महिलाएं अतीत में अपने शरीर और आकर्षण के प्रति आलोचनात्मक और सशंकित रहती हैं, उनके लिए गर्भावस्था, प्रसव, स्तनपान और सामान्यतः मातृत्व, इन विचारों और भावनाओं को सुलझाने या पुनः परिभाषित करने का अवसर हो सकता है। बच्चे के जन्म के बाद वे इन चीजों की परवाह करना बंद कर देती हैं। साथ ही वे पहले की तुलना में फ्लेक्सिबल भी हो जाती हैं।
मधुमेह का खतरा कम
30 साल के अमेरिकी अध्ययन में पाया गया कि जो माताएं छह महीने तक स्तनपान कराती हैं, उनमें टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का जोखिम 47 प्रतिशत तक कम हो सकता है। शोधकर्ताओं का मानना था कि स्तनपान में शामिल हार्मोन उन कोशिकाओं पर प्रभाव डाल सकते हैं जो इंसुलिन और रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करती हैं।
सीखने की क्षमता में इजाफा
शोध से पता चलता है कि गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान आपके मस्तिष्क में न्यूरॉन्स और न्यूरोनल कनेक्शन की संख्या दोगुनी हो जाती है। इससे मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ सकती है और कार्य बेहतर होता है। इसके अलावा, गर्भावस्था से प्रेरित हार्मोन (एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और ऑक्सीटोसिन) सीखने और याद्दाश्त को बढ़ावा देते हैं।

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