मांग लाये थे डुबकी लगाने को चार दिन
राकेश सोहम्
समापन पर है डुबकियों का मौसम। चहुंओर डुबकियों की चर्चा रही। करोड़ों करोड़ लोग डुबकी लगाते रहे। धन-दौलत में डुबकी... ऊंह गोता लगाने वालों की भी कमी नहीं है। पाप की गठरी ढोने वाले बहुतेरे हैं। पाप से मुक्ति के लिए डुबकियों का विधान है- डुबकियों का, डुबकियों के लिए, डुबकियों के द्वारा। अस्तु डुबकियों का भारी महत्व है, डुबकियों के लिए त्रिवेणी संगम उत्तम है।
हालांकि, हज़ारों साल से लोग डुबकी लगाते आ रहे हैं। डुबकी एक प्राचीन परंपरा है। इसके लिए प्रचार प्रसार जरूरी नहीं रहा। नियत तिथि और समय पर डुबकी सुनिश्चित कर ली जाती थी। डुबकी हमारी संस्कृति में रची-बसी है। नदियों, तालाबों और पोखरों में डुबकी लगाने की व्यवस्था रही है। घरों में पानी संचयन के अभाव में डुबकी-स्नान की युक्ति अस्तित्व में आई होगी कि गए और डुबकी लगा ली। ज्यादा समय नहीं हुआ जब ब्याह बारातों के लिए नदी, तालाब या जलाशय के किनारे डुबकी की व्यवस्था की जाती थी। कालांतर में साधनों की उपलब्धता के चलते डुबकी की जगह स्नान ने ले ली और घरों में स्नानागार जुड़ गए।
लोग अब भी नदियों और तालाबों में डुबकियों के आनंद को नहीं भूले हैं। भरपूर पानी की उपलब्धता, गंदगी धोने की सुविधा और बेसाख्ता नहाने की स्वच्छंदता और कहां? संभ्रांत लोगों ने सार्वजनिक स्विमिंग पूलों की सुविधाएं जुटा ली हैं। निजी-इनडोर-स्विमिंग-पूल और बाथ-टब से डुबकी की स्वच्छंदता में नए आयाम जुड़ गए हैं। मज़े की बात ये है कि स्वीमिंग पूलों के बाथ टब से शरीर तो धुलता है, लेकिन पाप नहीं धुलते। पापों की गठरी हल्की नहीं होती। पाप को धोने के लिए स्थान और समय निश्चित है।
स्वच्छता और पवित्रता की परिभाषा बड़ी जटिल जान पड़ती है। लोग उलझन में हैं। डुबकी लगाकर स्वच्छ हो लें या कि पवित्र? वे पवित्रता के फेर में नदियों की स्वच्छता को ताक में रख देते हैं। चोर, बेईमान, व्यसनी नेता, अधिकारी और व्यापारी डुबकी लगाने के बाद भी, पाप की गठरी से मुक्त नहीं रह पाएंगे। गठरी ढोने की आदत जो है। वे उसे फिर भरेंगे। बहरहाल, बिला नागा स्नान करने वाले जनकलाल पिछले दिनों डुबकी लगाने से चूक गए। चार दिन बाद बिना नहाए धोए लौटना पड़ा। समागम के समापन पर शायराना अंदाज में बोले—
डुबकी लगाने मांग के, लाए थे चार दिन
दो ट्रैफ़िक-जाम में कट गए, दो रील बनाने में।