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मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बढ़ाएगी खपत

04:00 AM Jan 29, 2025 IST
मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बढ़ाएगी खपत
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उपयुक्त कर राहत से एक अच्छा आर्थिक चक्र बन सकता है। निस्संदेह, मध्यम वर्ग पर कर का बोझ कम करने से खपत बढ़ेगी। इससे जीएसटी संग्रह में वृद्धि होगी और कर योग्य आय वालों का आधार बढ़ेगा।

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डॉ. जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों पूरे देश के साथ-साथ मध्यम वर्ग की निगाहें वित्तमंत्री द्वारा एक फरवरी को प्रस्तुत किए जाने वाले केंद्रीय बजट 2025-26 की ओर लगी हुई हैं। दरअसल, देश के विकास का इंजन कहे जाने वाले मध्यम वर्ग की मुट्ठियों में धन की कमी के कारण उनके निजी उपभोग पर होने वाले खर्च में गिरावट से विकास दर प्रभावित हो रही है। उम्मीद है कि वित्तमंत्री आगामी बजट में टैक्स में कटौती और वित्तीय प्रोत्साहनों से आयकरदाता और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाएंगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि वित्तमंत्री नए टैक्स रिजीम के तहत 10 लाख रुपये तक की कमाई को टैक्स फ्री कर सकती हैं। इससे मध्यम वर्ग के हाथ में जो अतिरिक्त धनराशि बचेगी, उससे खपत बढ़ाने में बड़ी मदद मिलेगी।
वस्तुतः मध्यम वर्ग के खर्च और निजी उपभोग का देश की विकास दर की रफ्तार से सीधा संबंध है। कोरोना-19 के बाद से मध्यम वर्ग के पास अपने उपभोग खर्च के बाद निवेश के लिए खर्च में लगातार कमी आ रही है। मध्यम वर्ग की जीवनशैली को बनाए रखने की लागत में अत्यधिक तेज वृद्धि ने इस वर्ग की वित्तीय मजबूती कम की है। बढ़ती हुई, खुदरा महंगाई ने भी मध्यम वर्ग के परिवारों पर वित्तीय दबाव को बढ़ा दिया है। पिछले वर्ष 2024 में खाद्य पदार्थों की खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक के निर्धाऱित मानक से अधिक रही है। स्थिति यह है कि निजी उपभोग में कमी ने निजी पूंजीगत व्यय के चक्र की रफ्तार घटा दी है। कोविड-19 के बाद मध्यम वर्ग की कमाई की रफ्तार में कमी आई है। साथ ही बढ़ती वित्तीय देनदारी और कर्ज की किस्त अदायगी का बोझ बढ़ने से मध्यम वर्ग चिंतित है।
नि:संदेह, सरकार ने विगत वर्षों में जहां गरीब लोगों के लिए ढेर सारी राहतों का ऐलान किया, वहीं कॉर्पोरेट जगत पर भी सरकार ने ध्यान दिया। लेकिन सबसे अधिक टैक्स देने वाला मध्यम वर्ग पीछे छूट गया। पिछले विभिन्न बजटों में मध्यम वर्ग की चिंताओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। इस वर्ग पर लगाए गए कर की तुलना में इस वर्ग को सार्वजनिक सेवाओं के ज़रिए बहुत कम रिटर्न मिला है, ऐसे में यह अपेक्षा की जा रही है कि आगामी बजट सरकार के लिए लक्षित कर सुधारों को आगे बढ़ाने, शहरी उपभोग मांग को बढ़ाने और मध्यम वर्ग को सीधे लाभ पहुंचाने वाली सेवाओं को बढ़ाने वाला बजट होगा। उपयुक्त कर राहत से एक अच्छा आर्थिक चक्र बन सकता है। निस्संदेह, मध्यम वर्ग पर कर का बोझ कम करने से खपत बढ़ेगी। इससे जीएसटी संग्रह में वृद्धि होगी और कर योग्य आय वालों का आधार बढ़ेगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले 10 वर्षों में लगातार आयकर रिटर्न भरने वाले आयकरदाताओं की संख्या और आयकर की प्राप्ति में छलांगें लगाकर वृद्धि हुई है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल से दिसंबर, 2024 तक आयकर सहित प्रत्यक्ष कर संग्रहण करीब 16 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो कि पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 16 फीसदी से भी ज्यादा है। इस परिप्रेक्ष्य में आईसीआरए की रिपोर्ट कहती है कि आगामी बजट में सरकार व्यक्तिगत आयकरदाताओं को राहत दे सकती है, इससे कर संग्रह पर असर पड़ने का खतरा नहीं है। वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान प्रत्यक्ष कर संग्रह में 12 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। इस अनुमान का आधार आय और कॉर्पोरेट कर राजस्व में इजाफा होना है। अप्रत्यक्ष करों में 9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। जीएसटी संग्रह में 10.5 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। सीमा शुल्क में भी 5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।
ऐसे में मध्यम वर्ग के लिए टैक्स में कटौती और टैक्स ढांचे को आसान बनाकर खर्चों और सेविंग्स को बढ़ाने की कोशिश इस बजट में दिखाई दे सकती है। खासतौर से वेतनभोगी वर्ग को लाभान्वित करने के भी विशेष प्रावधान नए बजट में दिखाई दे सकते हैं। नई टैक्स रिजीम के तहत आयकर स्लैब में और बदलाव हो सकता है, ताकि अधिक से अधिक करदाता इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें। 30 प्रतिशत की दर को 20 लाख रुपये से अधिक की आय वालों पर लागू किया जाना अत्यधिक लाभप्रद होगा। नए बजट के तहत आयकर से संबंधित पुराने टैक्स रिजीम के अंतर्गत धारा 80सी के तहत छूट बढ़ाई जा सकती है। नए बजट 2025-26 में पुराने टैक्स रिजीम के तहत भी स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट बढ़ाई जा सकती है। अभी पुरानी व्यवस्था में नौकरीपेशा लोगों और पेंशनधारकों को 50,000 रुपये तक की छूट दी जाती है। नई टैक्स रिजीम के तहत 75,000 रुपये की कटौती का लाभ मिलता है।
वहीं दूसरी ओर अभी आयकर के कर दायरे में इजाफा किए जाने की बड़ी संभावनाएं हैं। बड़ी संख्या में उद्योग-कारोबार सेक्टर में कार्यरत रहते हुए कमाई करने वाले, महंगी आरामदायक व विलासिता की वस्तुओं का उपयोग करने वाले तथा पर्यटन के लिए विदेश यात्राएं करने वालों में से भी बड़ी संख्या में लोग या तो आयकर न देने का प्रयास करते हैं या फिर बहुत कम आयकर देते हैं। स्थिति यह है कि वर्ष 2023-24 में देश के 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 8.09 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किए। इनमें से भी 4.90 करोड़ लोगों ने शून्य कर योग्य आय की सूचना दी। सिर्फ 3.19 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है। ऐसे में देश के सकल घरेलू उत्पाद में आयकर का योगदान बहुत कम बना हुआ है।
वित्तमंत्री आयकर सुधारों के तहत वर्ष 2025-26 के बजट सत्र में नया आयकर कानून पेश कर सकती हैं। इसका मकसद मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट 1961 को आसान, स्पष्ट और समझने योग्य बनाना है। इसके तहत अनावश्यक और अप्रचलित प्रावधानों को हटाया जाएगा। कर विवादों को कम किया जाएगा। टैक्सपेयर्स के लिए अनुपालन को आसान बनाया जाएगा।

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लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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