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बोर होना भी जरूरी है नन्हों का

04:05 AM Jun 03, 2025 IST
बोर होना भी जरूरी है नन्हों का
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घर में खेल-मनोरंजन के साधन होने के बावजूद बच्चे बोरियत की शिकायत करें तो पैरेंट्स को परेशान नहीं होना चाहिये। नयी चीजें देकर उसका मूड ठीक करने की कोशिश न करें। उनको बोरियत एंजॉय करना सिखाएं। मनोवैज्ञानिक मानतें हैं कि बच्चों का बोर होना जरूरी है। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता और क्रियाशीलता बढ़ती है।

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शिखर चंद जैन
ज्यादा नहीं, यही कोई 20-25 साल पहले तक माता-पिता अपनी संतान पर 24 घंटे पहरा नहीं रखते थे। बच्चे घंटों इधर-उधर के पार्क में ,गली में, बिल्डिंग में या पड़ोसी के यहां खेलते रहते थे। खाने के समय उन्हें ढूंढा जाता या वे खुद आ जाते। बच्चे छोटी-छोटी चीजों में ही अपना आनंद खोज लेते थे और बहुत थोड़े से पैसों की ‘जेबखर्ची’ से संतुष्ट रहते थे। तब बच्चों को पता भी नहीं होता था कि ‘बोरियत’ किस चिड़िया का नाम है। लेकिन आज का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। बच्चों को हर वक्त रोमांच चाहिए। लगातार नई चीजें चाहिए। घर में मनोरंजन और खेल की सारी चीजें उपलब्ध होने के बाद बावजूद वे अक्सर माता-पिता से बोरियत की शिकायत करते पाए जाते हैं।
उतावले मम्मा-पापा
जैसे ही मॉडर्न एज मम्मा-डैडी बच्चे के मुंह से बोरियत की बात सुनते हैं वे उसे खुश करने के लिए उतावले हो जाते हैं। उसे अपने स्मार्टफोन से बहलाने की कोशिश करते हैं। नए गैजेट्स, खिलौने दिलाने पर विचार करते हैं और उसे तरह-तरह के उपाय बताने लगते हैं। ताकि बच्चा किसी हालत में ‘बोर’ ना हो।
बढ़ती है बौद्धिक क्षमता
लेकिन बाल व्यवहार विशेषज्ञ ,मनोवैज्ञानिक व समाज शास्त्रियों का मानना है कि बच्चों का बोर होना भी जरूरी है। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता ,सोचने-विचारने की शक्ति और क्रियाशीलता में बढ़ोतरी होती है। बोरियत के दौरान उनमें क्रिएटिविटी डेवलप होती है और वे अपनी राहें खुद तलाशने के उपाय ढूंढते हैं। बोरियत के दौरान ही बच्चे एकांत को एंजॉय करना ,स्थिर होकर बैठना और ख्यालों की दुनिया में खोना भी सीख जाते हैं। जिन बच्चों के माता-पिता ज्यादा उतावले नहीं होते और बच्चों को बोरियत एंजॉय करने की ट्रेनिंग देने में सक्षम होते हैं वे बच्चे अपनी खुशियों के लिए हमेशा बाहरी दुनिया के मोहताज नहीं रहते। दुनिया के ज्यादातर लेखकों, दार्शनिकों, विचारकों और वैज्ञानिकों ने बोरियत के दौरान ही अपने विचारों, रचनाओं या आविष्कारों के सृजन का आइडिया खोजा है।
बोरियत एंजॉय करने की दें ट्रेनिंग
ब्रिटिश दार्शनिक बर्टेंड रसेल ने कहा है, ‘ज्यादा और लगातार रोमांच न सिर्फ सेहत के लिए नुकसानदायक है बल्कि इससे आनंद का असली स्वाद भी जाता रहता है। किसी खुशी को तभी महसूस किया जा सकता है जब आप बोर भी हो चुके हों। यह बात बचपन से ही सिखा देनी चाहिए।’ यह कुछ ऐसा ही है कि भोजन का वास्तविक स्वाद अच्छी भूख लगने पर ही महसूस किया जा सकता है। इसलिए बच्चों को बोरियत एंजॉय करने की ट्रेनिंग दें।
बताएं कि बोरियत नैचुरल है
चिल्ड्रन फर्स्ट और चाइल्ड एंड एडोलिसेंट मेंटल हेल्थ इंस्टीट्यूट,नई दिल्ली में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं फैमिली थैरेपिस्ट डॉ. शैलजा सेन कहती हैं, ‘मैंने अपने बच्चों को बोरियत को हमेशा एंजॉय करने और उसका उपयोग अपनी प्लानिंग के लिए करने की राय दी है। मैंने उन्हें बताया है कि बोरियत ऐसी चीज नहीं जिसे अवॉइड किया जाए।’
उदास चेहरे से न हों परेशान
शैलजा कहती है कि अपने बच्चों का मुंह लटका हुआ या उदास देखकर ओवररिएक्ट न करें। बच्चे 24 घंटे हंस-खेल या मुस्कुरा नहीं सकते। बच्चा आपको अपनी किसी बात को मनवाने या कोई नई चीज खरीदने के लिए भी ऐसा कर सकता है। वह आपसे बार्गेन कर सकता है, गुस्सा हो सकता है और रो-रो कर अपना बुरा हाल भी कर सकता है। लेकिन आपको दृढ़ता और धैर्य से पेश आना चाहिए ताकि वह बोरियत को हथियार बनाने की आदत न बना ले।
बताएं क्रिएटिव तरीका
बच्चा बोरियत की शिकायत करे या उदास नजर आए तो उसे महंगे नहीं, क्रिएटिव तरीके सुझाएं। एक चार्ट पेपर, कुछ कलर्स, रबड़-पेंसिल आदि दें और ड्राइंग करने को कहें। उसे कोई अच्छी मोटिवेशनल, फिक्शनल या जनरल नॉलेज बढ़ाने वाली पुस्तक या पत्रिका पढ़ने को दें। कोई नई चीज बनाने के लिए उसे सामग्री दें। नए आइडिया लिखने को कहें। कोई स्टोरी या अपनी दिनचर्या के बारे में लिखने को कहें।
खुद उदाहरण बनें
बच्चे अपने माता-पिता के उपदेश से जितना नहीं सीखते, उससे ज्यादा उनके आचरण से सीखते हैं। इसलिए आप स्वयं 24 घंटे स्मार्टफोन, टीवी या आईपॉड से चिपके रहने की आदत छोड़ दें। कभी बैठी रहें तो कुछ क्रिएटिव करें। नई डिश बनाएं, ड्राइंग करें ,उनके साथ इनडोर-आउटडोर गेम खेलें या उन्हें अपनी बनाई हुई चीजें दिखाएं। उन्हें अपने बचपन की बातें बताएं और उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताएं।

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