बेमौसम बरसात से बिगड़े कृषि समीकरण
समय से पहले मानसून का आना मौसम के पैटर्न में एक व्यवधान का संकेत हो सकता है, जो कृषि से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे तक कई क्षेत्रों में अनपेक्षित और नकारात्मक परिणाम पैदा कर सकता है।
पंकज चतुर्वेदी
कहते हैं, जब जेठ तपता है, तब आषाढ़ बरसता है और सावन-भादों में झड़ी लगती है। लेकिन इस वर्ष नौतपा में, जब देश को गर्मी से झुलसना चाहिए था, तब तो जैसे सावन ही आ गया हो— बारिश की झड़ी लग गई। मौसम वैज्ञानिक इसे मानसून-पूर्व वर्षा मानते रहे, परंतु चुपके से कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में मानसून की बयार समय से पहले ही दस्तक दे गई।
हमारे देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना मानसून पर गहराई से निर्भर है। इस वर्ष केरल में मानसून 24 मई को, यानी सामान्य तिथि से आठ दिन पहले पहुंच गया। कर्नाटक और मुंबई में भी 26 मई को मानसून ने समय से पहले ही दस्तक दे दी।
हालांकि इस असामयिक बारिश ने गर्मी से राहत जरूर दी, लेकिन यदि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून यूं ही अनियमित होता रहा, तो देश के कई आर्थिक और कृषि संबंधी समीकरण बिगड़ सकते हैं। भारत में जलवायु की मुख्यतः तीन अवस्थाएं मानी जाती हैं – मानसून-पूर्व, मानसून और मानसून-पश्चात। इसी कारण भारत की जलवायु को ‘मानसूनी जलवायु’ कहा जाता है। देश की खेती, हरियाली और वर्ष भर के जल संसाधनों की व्यवस्था इसी बरसात पर निर्भर करती है।
भारतीय मानसून मुख्यतः गर्मियों के दौरान वायुमंडलीय परिसंचरण में होने वाले परिवर्तनों पर आधारित होता है। जैसे ही गर्मी की शुरुआत होती है, सूर्य उत्तरायण हो जाता है। सूर्य के उत्तरायण के साथ-साथ अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र का भी उत्तर की ओर स्थानांतरण होने लगता है। इसके प्रभाव से पश्चिमी जेट स्ट्रीम हिमालय के उत्तर में प्रवाहित होने लगती है, जिससे मानसून की स्थितियां बनती हैं।
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। सर्दियों में ‘अल-नीनो’ और अन्य मौसमों में ‘ला नीना’ जैसी वैश्विक मौसमी घटनाएं भारत के मानसून-तंत्र को प्रभावित कर रही हैं, जिससे मानसून का समय और स्वरूप दोनों ही अस्थिर हो रहे हैं।
इस साल बहुत पहले और बरसात का प्रमुख कारण समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि माना जा रहा है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाने से मानसून जल्दी शुरू हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में नमी बढ़ती है और बादल जल्दी बनते हैं।
वैश्विक तापमान बढ़ने के चलते यूरेशिया और हिमालय में बर्फ का कम होना और तेजी से पिघलने ने भी जल्दी बरसात को बुलावा दिया है। बर्फ की कमी से जमीन जल्दी गर्म हो जाती है, जिससे कम दबाव का क्षेत्र मजबूत होता है, जो मानसूनी हवाओं को अपनी ओर खींचता है और मानसून को जल्दी ला सकता है।
जल्दी मानसून के कुछ वैश्विक कारक भी हैं। अल नीनो की तरह इनमें से एक मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन हिंद महासागर में बादलों और बारिश को प्रभावित करने वाली एक वैश्विक मौसमी घटना है। इसके अनुकूल चरण (चरण-3 और चरण-4 की शुरुआती गतिविधि) मानसूनी हवाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकते हैं और मानसून को जल्दी ला सकते हैं। एक अन्य कारण वैश्विक कारक सोमाली जेट है। मॉरीशस और मेडागास्कर के पास से निकलने वाली एक प्रमुख निम्न-स्तरीय पवन धारा - मई 2025 में तीव्र हो गई। यह जेट अरब सागर के पार केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र सहित भारत के पश्चिमी तट पर नमी से भरी हवा पहुंचाता है। इस साल इसकी असामान्य ताकत मानवजनित प्रभावों के कारण प्रतीत होती है।
किसानों को अक्सर मानसून के एक निश्चित समय पर आने की उम्मीद होती है। यदि मानसून जल्दी आ जाता है, तो वे खेत तैयार करने, बुवाई करने या सही फसल का चुनाव करने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं। जल्दी मानसून से उनका सामान्य फसल चक्र बाधित हो सकता है। महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में समय से पहले बरसात ने बड़े पैमाने पर फसलों को प्रभावित किया है। आम, अनार, नींबू जैसी बागवानी फसलों के साथ साथ बाजरा, मक्का की फसल भी प्रभावित हुई है। बारिश की सबसे ज्यादा मार प्याज किसानों पर पड़ी है। इसके अलावा सोयाबीन और उड़द एवं मूंग जैसी फसलों के प्रभावित होने की भी आशंका जताई जा रही है। नासिक में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। भारी बारिश के कारण बागवानी के आलावा बाजरा, मक्का जैसी फसलों को भी नुकसान पहुंचा है।
किसानों के मुताबिक सोयाबीन के लिए जुताई और कतार बनाने के मामले में खेत की तैयारी अभी पूरी नहीं हुई है। बारिश ने काम रोक दिया है। बुवाई का काम खेत में पर्याप्त नमी होने के बाद भी शुरू होता है। मूंग और उड़द जैसी फसलों के लिए बुवाई का समय कम होता है, जबकि कपास और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए यह समय लंबा होता है। किसानों को चिंता है कि कहीं यह बारिश बुवाई के दौरान मुश्किल न बन जाए। कोंकण, नासिक, पुणे, कोल्हापुर, छत्रपति संभाजीनगर, लातूर, अमरावती और नागपुर में प्याज उत्पादक क्षेत्रों में बेमौसम बारिश से ज्यादा प्याज की फसल को नुकसान हुआ है।
समय से पहले मानसून का आना मौसम के पैटर्न में एक व्यवधान का संकेत हो सकता है, जो कृषि से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे तक कई क्षेत्रों में अनपेक्षित और नकारात्मक परिणाम पैदा कर सकता है।