बेबी के भरोसे बड़ी लड़ाई जीतने की उम्मीद
बहरहाल, बेबी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे पार्टी का खोया जनाधार फिर से जुटाया जाए। पार्टी के सिमटते दायरे को कैसे बढ़ाया जाए। चुनौती यह भी है कि केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा का संगठन केरल में लगातार विस्तार कर रहा है।
अरुण नैथानी
पिछले दिनों तमिलनाडु के मदुरै में संपन्न भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी की 24वीं कांग्रेस में पार्टी के समक्ष मौजूदा चुनौतियों को लेकर हुए गहन मंथन के बाद, मरियम अलेक्जेंडर बेबी को नया महासचिव चुना गया। यूं तो सीपीआई कांग्रेस में कई अप्रत्याशित फैसले हुए, लेकिन दशकों तक पार्टी के नीति-नियंता बने रहे दिग्गज नेताओं को मार्गदर्शक मंडल सरीखी भूमिका देना भी ध्यान खींचता है। दरअसल, सीपीआई (एम) के पूर्व महासचिव सीताराम येचुरी के निधन के बाद यह पद खाली था। तब से पूर्व महासचिव प्रकाश करात पार्टी के लिये समन्वयक की भूमिका निभा रहे थे।
निस्संदेह, देश में दक्षिणपंथ के स्वर्णिम काल में वामपंथ के समक्ष चुनौतियां स्वाभाविक हैं। एक समय देश की केंद्रीय सत्ता के निर्णयों को प्रभावित करने तथा पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा आदि राज्यों में शासन करने वाली पार्टी आज सिर्फ केरल में ही सत्ता में बनी हुई है। लेकिन पार्टी पिछले एक दशक में लोकसभा में दहाई के आंकड़े से भी दूर है। ऐसे में एम.ए.बेबी के समक्ष पार्टी के विस्तार व संगठन को गति देने समेत तमाम चुनौतियां हैं। हालांकि, बेबी महासचिव बनने का साफ संकेत है कि पार्टी में केरल का दबदबा बना रहेगा। मगर बेबी के लिये केंद्र की सत्ता की राह दिखाने वाली हिंदी बेल्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना भी जरूरी होगा, जैसा सीताराम येचुरी और प्रकाश करात करने में सफल रहे।
सत्तर बसंत देख चुके मरियम अलेक्जेंडर बेबी का जन्म केरल के कोल्लम जनपद के प्रक्कुलम में हुआ। वे ईएमएस नंबूदरीपाद के बाद पार्टी का नेतृत्व करने वाले केरल के दूसरे नेता हैं। वे वर्ष 2012 में पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य बने थे। वे पोलित ब्यूरो में ईसाई समुदाय का एकमात्र प्रतिनिधि चेहरा हैं। वे छात्र संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाकर राजनीति में कदम रखते हैं। वे स्टूडैंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। साथ ही उन्होंने डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया का अध्यक्ष पद भी संभाला। वे महज 32 साल की उम्र में राज्यसभा में सांसद बने। तब वे देश के सबसे कम उम्र के सांसदों में शामिल थे। वे एक दशक से ज्यादा समय तक राज्यसभा के सदस्य रहे। फिर वर्ष 1999 में पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य बने। कालांतर वर्ष 2006 में उन्होंने केरल की कुंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीता। जिसके बाद उन्हें शिक्षामंत्री बनाया गया। वे दूसरी बार भी कुंदरा सीट से चुनाव जीते थे। लेकिन वर्ष 2014 में उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान कोल्लम सीट से पराजय का मुख देखना पड़ा। साहित्य, संगीत व सिनेमा में दखल रखने वाले बेबी को सीपीआई(एम) का सांस्कृतिक दूत भी माना जाता रहा है।
हकीकत में बेबी को महासचिव के रूप में कांटों का ताज ही मिला है। फिलहाल, पार्टी अपने मुश्किल दौर से गुजर रही है। उसका जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है। वर्ष 2004 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एम) ने सर्वोत्तम सफलता हासिल करते हुए लोकसभा में 43 सांसदों को भेजा था। इसे पार्टी का सुनहरा दौर कहा जाता है क्योंकि लोकसभा में मजबूत स्थिति के साथ ही पार्टी ने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सरकार भी बनायी थी। आज संसद में उसके दस से कम सांसद हैं और राज्यों में केवल केरल में ही सरकार बची है। बताया जाता है कि उन्हें महासचिव बनाये जाने पर पार्टी में आम सहमति नहीं थी। कहा जाता है कि पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष को महासचिव बनाना चाहती थी। लेकिन पार्टी में केरल का दबदबा बेबी के पक्ष में गया। दरअसल, केरल के मुख्यमंत्री विजयन पार्टी में दमदार भूमिका में हैं। वे न केवल बेबी को महासचिव को बनाने में सफल रहे, बल्कि अधिक उम्र होने के बावजूद अपनी तीसरी पारी हेतु पार्टी की मोहर लगवाने में कामयाब हो गए।
बहरहाल, बेबी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे पार्टी का खोया जनाधार फिर से जुटाया जाए। पार्टी के सिमटते दायरे को कैसे बढ़ाया जाए। चुनौती यह भी है कि केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा का संगठन केरल में लगातार विस्तार कर रहा है। यूं तो भाजपा के निशाने पर कांग्रेस गठबंधन वाला यूडीएफ है, लेकिन सीपीआई(एम) के लिये भी यह एक चुनौती है। कभी हिंदी प्रदेश बिहार, झारखंड व पंजाब में दखल रखने वाली भाकपा(म) के सामने इन राज्यों में फिर से संगठन स्थापित करने की चुनौती है। पता पार्टी को भी है कि हिंदी बेल्ट में दमखम रखने वाले येचुरी व करात जैसे व्यापक अपील वाले नेता संगठन में नहीं हैं।
ये आने वाला वक्त बताएगा कि अगले तीन वर्ष के कार्यकाल में बेबी पार्टी संगठन को राष्ट्रव्यापी आधार देने में कितना सफल होते हैं। उन्हें आत्ममंथन करना होगा कि क्यों पार्टी ने लगातार जनाधार खोया है और इसे फिर से कैसे हासिल किया जा सकता है। उनके सामने चुनौती पार्टी की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की भी होगी, क्योंक पार्टी अन्य राजनीतिक दलों की तरह चंदा नहीं जुटाती। पार्टी के साथ युवाओं व छात्रों को भी जोड़ना होगा, क्योंकि विश्वविद्यालयों में वामपंथी छात्र संगठनों की आधारभूमि सिमटी है। भाजपा की तरह बूथ प्रबंधन की कला भी सीखनी होगी।
इसके साथ ही प्रश्न यह भी कि विभिन्न आंदोलनों में डंडे-झंडे के साथ उतरने वाले सक्रिय लोग पार्टी के वोटर क्यों नहीं बन पाते। पार्टी ने केंद्रीय समिति में तीस नये चेहरों को शामिल करके इस दिशा में पहल जरूर की है। पोलित ब्यूरो में भी नये सदस्यों को जगह दी गई है। विश्वास है कि केंद्रीय समिति के आमंत्रित सदस्यों प्रकाश करात, माणिक सरकार और सुभाषिनी अली का उन्हें समर्थन मिलता रहेगा।