बाज़ार का हथियार पर अपनों से लाचार
इस सच्चाई को भी स्वीकार करना चाहिए कि हिंदी की दुर्दशा में हिंदी भाषी लोगों का कोई कम योगदान नहीं है। जैसे ही हम किसी बड़े पद पर पहुंचते हैं, हिंदी हमारे शब्दकोश से गायब हो जाती है। हम हिंदी बोलने वाले, उसे बरतने वाले नहीं दिखना चाहते।
क्षमा शर्मा
पिछले दिनों दस जनवरी को मनाए जाने वाले विश्व हिंदी दिवस के मौके पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में दुनियाभर में फैलती हिंदी, बाजार की भाषा बनती हिंदी, विश्व के डेढ़ सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली हिंदी के विभिन्न पहलुओं पर मंथन हुआ। वक्ताओं का कहना था कि अगर हिंदी और उसकी बहन उर्दू को जोड़ लिया जाए, तो यह विश्व की तीसरे नम्बर की भाषा होगी। यह भी कि यू-ट्यूब पर भी हिंदी दुनिया की चौथे नम्बर की भाषा है।
विडंबना है कि अपने देश में हिंदी और उसके बोलने वालों की भारी उपेक्षा है। हिंदी को हमेशा दोयम दर्ज की भाषा माना जाता है। अगर अंगरेजी नहीं आती, तो आप सफल नहीं हो सकते। नौकरी पाने के लिए यह अपने देश की सच्चाई है। जबकि अपने देश में साठ करोड़ के आसपास लोग हिंदी बोलते, समझते, लिख-पढ़ सकते हैं। जब नेतागण एक-एक वोट का हिसाब लगाते हैं, तो ये साठ करोड़ लोग क्यों नहीं दिखते। क्या इनके वोट की कोई कीमत नहीं। लोकसभा में आधी से अधिक सीटें हिंदी भाषी क्षेत्रों से आती हैं। लोकसभा की कार्यवाहियों का हिंदी में लाइव प्रसारण भी होता है। बड़े विज्ञापनदाता अपने –अपने उत्पाद का विज्ञापन हिंदी में कराना चाहते हैं। सारे बड़े चैनल्स हिंदी में हैं। तमाम दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी में डब की जाती हैं और भारी मुनाफा और दर्शक जुटाती हैं। दक्षिण की तमाम हीरोइंस –हीरो हिंदी फिल्मों में काम करना चाहते हैं।
लेकिन दक्षिण की राजनीति देखिए कि हिंदी के नाम पर हिंदी भाषी लोगों को चाहे जब खदेड़ दिया जाता है। हिंदी साम्राज्यवादी है, यह कहकर हजारों लोगों के रोजगार छीनकर, उन्हें रातोंरात भगा दिया जाता है। अफसोस मीडिया में, साहित्य में इन के विस्थापन के विरोध में एक शब्द सुनाई नहीं देता है। आखिर क्यों। एक बार मशहूर बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने कहा था कि जब उनकी पुस्तकों का अनुवाद हिंदी में हुआ, तब उन्हें पूरे भारत भर में प्रसिद्धि मिली। पहले हिंदी फिल्मों में काम करने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियां हिंदी बोलना अपनी हैसियत से नीचा समझते थे। लेकिन अब ऩई पीढी के अभिनेता-अभिनेत्रियां, अपनी हिंदी सुधारने के लिए विशेष ट्रेनिंग ले रहे हैं। सारा अली खान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि हिंदी फिल्मों में आने के लिए सबसे पहले मैंने अपनी हिंदी को सुधारा। जिन अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कहा जाता है , वह हिंदी बोलने में गौरव महसूस करते हैं। एक बार सैफ अली खान ने कहा था कि उन्हें अमिताभ बच्चन की हिंदी से रश्क होता है।
लेखिका की घरेलू सहायिका तमिलनाडु की है। वह अरसे से दिल्ली में रहती है। कई साल पहले, उसने बारहवीं पास कराकर अपनी लड़की की शादी तमिलनाडु के दूर-दराज गांव में कर दी। कुछ ही महीने बाद उसने बताया कि उसकी लड़की की गांव के स्कूल में नौकरी लग गई है। यह आश्चर्य की बात थी, आखिर इन दिनों बारहवीं पास को कहां नौकरी मिलती है। पूछने पर उसने कहा कि लड़की स्कूल में हिंदी पढ़ाती है। हिंदी, क्या वहां लोग हिंदी सीखना चाहते हैं। उसने कहा –हां। क्योंकि दक्षिण में रोजगार नहीं है। वे हिंदी भाषी क्षेत्रों में आना चाहते हैं। इसलिए माता-पिता अपने बच्चों को हिंदी सिखाना चाहते हैं। फिर अगले किसी साल उसने खुश होते हुए बताया कि पहले तो उसकी लड़की को पांच हजार रुपये ही मिलते थे, मगर अब दस हजार कमाने लगी है और बहुत खुश है। लेकिन जब भी चुनाव आते हैं, हिंदी विरोध का झंडा उठा लिया जाता है। एक बार मैसूर के एक कलेक्टर ने सड़कों पर हिंदी में भी नाम लिखवा दिए थे, जिससे हिंदी भाषी लोग जब इन इलाकों में जाएं, तो सुविधा हो सके। इस बात का यह कहकर भारी विरोध किया गया था कि कर्नाटक के लोगों पर हिंदी लादी जा रही है। एक बार चेन्नई से पांडिचेरी तक टैक्सी से गई थी। रास्ते भर सड़क के किनारे हर उस जगह पर कालिख पोती गई थी, जहां हिंदी में कुछ भी लिखा था। गांव का नाम या कुछ और।
कुछ साल पहले एक और खबर पर नजर पड़ी थी कि बांग्ला भाषी काम-काजी लोग, जब दक्षिण में कम-काज के सिलसिले में जाते हैं, तो वे वहां हिंदी बोलते हैं, क्योंकि वहां लोग हिंदी समझते हैं।
लेकिन यहां इस सच्चाई को भी स्वीकार करना चाहिए कि हिंदी की दुर्दशा में हिंदी भाषी लोगों का कोई कम योगदान नहीं है। जैसे ही हम किसी बड़े पद पर पहुंचते हैं, हिंदी हमारे शब्दकोश से गायब हो जाती है। हम हिंदी बोलने वाले, उसे बरतने वाले नहीं दिखना चाहते। आखिर हिंदी भाषी लोग यह कहकर कि उनकी हिंदी अच्छी नहीं है, कि वे हिंदी नहीं जानते, इसमें इतना गौरव क्यों महसूस करते हैं।
यदि आप विदेश जाते हैं, तो यह आपकी समस्या है कि आपको उनकी भाषा नहीं आती। आप उसे सीखें, तभी वहां काम कर सकते हैं। मगर हम हिंदी के लोग इसी बात में शर्मिंदा होते हैं कि हाय लोग क्या कहेंगे।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।