बांस की सीख
एक संत अपने शिष्य के साथ जंगल में जा रहे थे। अचानक शिष्य का पैर फिसल गया और वह तेज़ी से नीचे की ओर लुढ़कने लगा। तभी उसने बांस के पौधे को मजबूती से पकड़ लिया और खाई में गिरने से बच गया। बांस धनुष की तरह झुक तो गया, लेकिन न तो वह उखड़ा और न ही टूटा। कुछ देर बाद संत वहां पहुंचे और शिष्य को खींचकर ऊपर ले आए। राह में संत ने शिष्य से कहा, ‘जान बचाने वाले बांस ने तुमसे कुछ कहा, तुमने सुना क्या?’ शिष्य ने जवाब दिया, ‘नहीं गुरुजी, मुझे तो पेड़-पौधों की भाषा नहीं आती।’ गुरु मुस्कुराए और बोले, ‘बांस ने तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण संदेश दिया है।’ गुरु ने फिर रास्ते में खड़े एक बांस के पौधे को खींचकर छोड़ दिया। बांस लचककर अपनी जगह पर वापस लौट आया। गुरु ने कहा, ‘हमेशा याद रखना, बांस की तरह हमें भी लचीला होना चाहिए। जब भी जीवन में कठिनाइयाँ आएं, तो थोड़ा झुककर विनम्र बन जाएं, लेकिन टूटें नहीं। बांस की तरह हमें अपनी जड़ों में मजबूत रहना चाहिए। बांस के झुरमुट को तेज हवाएं हिलाती हैं, लेकिन बांस कभी टूटता नहीं। वह अपनी लचीलापन और शक्ति से हर संकट को पार कर लेता है। जीवन में भी हमें अपने संघर्षों को सहन करते हुए उन्हें अपनी ताकत बनाना चाहिए।’
प्रस्तुति : नरेंदर कुमार मेहता