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बस इंतज़ार

04:00 AM Jan 19, 2025 IST
बस इंतज़ार
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शाम से शहर में कुछ
गूंज रहा हो जैसे,
तुमने धीमे से कोई
बात कही हो जैसे।
अब तो लगता है कि
मौसम बदलने वाला है,
बादलों ने बरस कर
रात करी हो जैसे।
वो इत्मीनान जो
अपनी गली में आता था,
उसकी एक घर में
कोई खिड़की खुली हो जैसे।
एक बरगद जो अंगनाई में लहराता था,
उसकी टहनी में कोई
पतंग फंसी हो जैसे।
मैं तो बस इंतजार
करता रहा, तू पूछोगे
मेरे होंठों पे गुजारिश
सी हुई हो जैसे।
संग ही चलता रहा,
हरेक मोड़ पर सोचा,
रुक के पूछोगे कोई बात
नई हो जैसे।
राजेंद्र कुमार कनोजिया

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