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बड़े लक्ष्यों के लिए बहुत कुछ करना बाकी

04:00 AM Jul 04, 2025 IST
बड़े लक्ष्यों के लिए बहुत कुछ करना बाकी
Mumbai: Children from pre-primary during their first day of school, in Mumbai, Monday, June 9, 2025. (PTI Photo/Shashank Parade)(PTI06_09_2025_000132A)
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हिमाचल की एनएएस रैंकिंग में सुधार के पीछे छह ठोस नीतिगत बदलाव रहे। राज्य ने एक हजार से अधिक कम नामांकन वाले स्कूलों का विलय कर शिक्षक नियुक्तियों को व्यावहारिक बनाया और प्रशासनिक खर्च घटाया।

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के.एस. तोमर

हिमाचल प्रदेश ने देश की शिक्षा व्यवस्था में एक नया अध्याय लिखा है, जो न केवल राज्य की उपलब्धि है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। हिमाचल ने वर्ष 2021 के नेशनल अचीवमेंट सर्वे में 21वें स्थान से छलांग लगाकर 2025 में 5वां स्थान प्राप्त किया है। यह बदलाव मात्र आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि उस नीति परिवर्तन का प्रमाण है, जिसे प्रदेश में व्यावहारिक रूप में लागू किया गया है। शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय को ठोस कार्रवाई से जोड़कर एक अनुकरणीय मॉडल बना दिया गया है। इस मॉडल का आधार शिक्षण गुणवत्ता में सुधार, प्रशासनिक दक्षता और प्रमाण-आधारित नीति निर्माण रहा है।
राज्यों की शिक्षा व्यवस्था की रैंकिंग के पीछे कई कारण होते हैं। पंजाब और हरियाणा में बेहतर छात्र-शिक्षक अनुपात, मजबूत स्कूल प्रशासन और सामुदायिक भागीदारी ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक ने प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण और विकेन्द्रित शैक्षणिक योजना का सफलतापूर्वक उपयोग किया है। दूसरी ओर, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य शिक्षकों की अनुपस्थिति, उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात और कमजोर बुनियादी ढांचे की समस्याओं से जूझ रहे हैं। दिल्ली में प्रशासनिक टकराव और प्रवासन के कारण सरकारी स्कूलों में अत्यधिक नामांकन से शिक्षा की गुणवत्ता में विसंगति बनी रहती है। जम्मू-कश्मीर में मौसम और सुरक्षा संबंधी बाधाओं के कारण लॉजिस्टिक समस्याएं बनी रहती हैं। इस प्रकार, प्रशासनिक क्षमता और प्रणालीगत असमानताएं राज्यों की शिक्षा रैंकिंग को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
हिमाचल की बात करें तो 2000 के दशक में इसकी शुरुआत एक मजबूत नींव के साथ हुई थी, लेकिन 2017 तक ठहराव आ गया और फिर कोविड-19 महामारी के बाद 2021 में भारी गिरावट दर्ज की गई। लेकिन वर्ष 2025 में शिक्षा के बुनियादी स्तर पर केंद्रित सुधार, प्रशासनिक पुनर्गठन और प्रमाण-आधारित फैसलों ने एक नई ऊर्जा भर दी। सरकार ने 1,160 गैर-कार्यशील स्कूलों को बंद करने का साहसिक निर्णय लिया, जिनमें 911 प्राथमिक, 220 मिडल, 14 हाई और 15 सीनियर सेकेंडरी स्कूल शामिल थे। इनमें अधिकतर स्कूलों में छात्र संख्या नाममात्र थी या वे संचालन के मानकों का उल्लंघन कर रहे थे। सरकारें इस विषय पर स्थानीय विधायकों और वोट बैंक के दबाव में झुकती रहीं, लेकिन अब शासन ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य के सीमित संसाधनों को केवल जनहित में प्रभावी उपयोग में लाया जाएगा।
हिमाचल की एनएएस रैंकिंग में सुधार के पीछे छह ठोस नीतिगत बदलाव रहे। राज्य ने एक हजार से अधिक कम नामांकन वाले स्कूलों का विलय कर शिक्षक नियुक्तियों को व्यावहारिक बनाया और प्रशासनिक खर्च घटाया। शिक्षा निदेशालय को पूर्व-प्राथमिक से लेकर 12वीं कक्षा तक एकीकृत कर दिया गया जबकि उच्च शिक्षा को अलग कर दिया गया, जिससे जवाबदेही और निगरानी को स्पष्ट दिशा मिली। राज्य ने अंग्रेज़ी को कक्षा-1 से माध्यम बनाकर भाषा सीखने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। यूनिफॉर्म को लेकर छात्रों में भागीदारी और पहचान की भावना को बल दिया गया। साथ ही, योग्य छात्रों और शिक्षकों को अंतर्राष्ट्रीय अनुभव दिलाने के लिए विदेश भेजा गया। जिससे वैश्विक दृष्टिकोण और नवाचार कक्षा में प्रवेश पा सके। स्कूलों को शैक्षणिक क्लस्टर में बांटकर संसाधनों का साझा उपयोग, सहयोगात्मक शिक्षण और निगरानी की प्रणाली सशक्त हुई।
एनएएस 2025 के आंकड़े इस प्रभावी बदलाव को सिद्ध करते हैं। कक्षा-3 के छात्रों ने एनआईपीयूएन भारत मिशन के तहत उल्लेखनीय प्रगति की है। सरकारी स्कूलों ने कई निजी स्कूलों को पीछे छोड़ दिया और ग्रामीण एवं बालिका वर्ग ने राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
हालांकि, चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। केवल 26 प्रतिशत शिक्षकों ने निरंतर पेशेवर विकास कार्यक्रम में भाग लिया है। दिव्यांग छात्रों के लिए केवल 30 प्रतिशत स्कूलों में अनुकूल ढांचा उपलब्ध है और 35 प्रतिशत में ही प्रशिक्षित शिक्षक हैं। व्यावसायिक शिक्षा को लेकर छात्रों में रुचि की कमी भी देखी गई है—45 प्रतिशत स्कूलों में उपलब्धता के बावजूद केवल 41 प्रतिशत छात्र ही कौशल पाठ्यक्रमों का चयन कर रहे हैं।
बहरहाल, अभी भी राज्य को कुछ अहम रणनीतियों पर अमल करना होगा। निपुणता आधारित शिक्षा को संस्थागत बनाना, एनएएस डेटा को स्कूल सुधार योजनाओं से जोड़ना, शिक्षक प्रशिक्षण को डेटा-आधारित और सतत बनाना, सीपीडी को केवल औपचारिकता से निकालकर वास्तविक परिवर्तन का माध्यम बनाना, और व्यावसायिक शिक्षा को उद्योगों से जोड़कर प्रासंगिक बनाना आवश्यक होगा।
पिछले 25 वर्षों में एनएएस ने शिक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2025 का संस्करण दक्षता, समानता और नीति संगत है। इस यात्रा में हिमाचल प्रदेश की भागीदारी लगातार मजबूत हुई है, जिससे वह राष्ट्रीय शिक्षा विमर्श का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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