बजट वृद्धि से स्वास्थ्य सेवाओं को संबल
बजट में कई दवाओं की कीमतों में कटौती का प्रस्ताव किया गया है, जिसका सीधा फायदा नागरिक की जेब को होगा। कैंसर, अप्रचलित बीमारियों और अन्य पुराने रोग से पीड़ित मरीजों को राहत देने के लिए 36 जीवन रक्षक दवाओं को मूल सीमा शुल्क से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है।
राकेश कोछड़
केंद्रीय बजट 2025-26 के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए प्रावधानों से चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान, कैंसर के इलाज का सामर्थ्य, अनुबंध कर्मियों को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के अंतर्गत लाने से लेकर चिकित्सा पर्यटन तक को बढ़ावा मिलेगा।
31 जनवरी को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण के मद्देनजर केंद्रीय बजट 2024-25 में भारत के स्वास्थ्य व्यय में 2020-21 में 3.2 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 2025 में 6.1 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है। वर्ष 2022 में भारत का स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.8 प्रतिशत रहा। 2015 और 2022 के बीच, रोगी की जेब से होने वाला खर्च 62.6 प्रतिशत से घटकर 39.4 प्रतिशत हो गया, जिसमें पीएम-जेएवाई ने निर्णायक भूमिका निभाई। सभी नागरिकों को एक समान स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करने की गर्ज से पिछले साल पीएम-जेएवाई योजना के तहत 70 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को शामिल किया गया। सरकार ने अब इस योजना के तहत अनुबंध पर रखे कामगारों को भी शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। यह कदम अनौपचारिक क्षेत्र के अनुमानित एक करोड़ श्रमिकों के लिए वित्तीय और स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जिन्हें पहले कोई भी बीमा सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, इसके लिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नियोक्ता अनुबंधित कारगारों का डाटा साझा करने में पारदर्शी हों।
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए प्रस्तावित आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में 9.7 प्रतिशत बढ़कर 99,858.56 करोड़ रुपये हो गया है, इसमें आयुष्मान भारत बुनियादी मिशन को 26 प्रतिशत की वृद्धि मिली है जबकि पीएम-जेएवाई के बढ़ते दायरे को ध्यान में रखते हुए 28.85 प्रतिशत का इजाफा किया गया है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इंटरनेट सुविधा के प्रावधान का लाभ डिजिटल स्वास्थ्य और टेलीमेडिसिन सेवाओं को विस्तार देने में उठाया जा सकता है। हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को केवल 3.77 प्रतिशत की वृद्धि मिली है।
इसके बावजूद सेहत को मजबूत करने और बीमारी की रोकथाम पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। वित्त मंत्री ने आने वाले वर्ष में मेडिकल कॉलेजों में 10,000 अतिरिक्त सीटें और अगले पांच वर्षों में 75,000 सीटें बढ़ाने की घोषणा की है। पिछले 10 वर्षों में एमबीबीएस और स्नातकोत्तर सीटें दोगुनी से अधिक बढ़कर क्रमशः 1,18,137 और 73,157 हो गई हैं। हालांकि, अभी भी चिकित्सा शिक्षकों की कमी है और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग शिक्षकों की संख्या और अनुभव के मानदंडों को घटाने में लगा है। स्नातक और स्नातकोत्तर सीटों के बीच भारी असमानता बनी हुई है।
नि:संदेह, विभिन्न विशेषज्ञताओं में सीटों की संख्या के लिए एक गतिशील नीति होनी चाहिए। उदाहरणार्थ, भारत को आने वाले वर्षों में कार्डियक सर्जनों की कम और ऑनकोलॉजिस्ट, इंटेंसिविस्ट और ट्रॉमा विशेषज्ञों की अधिक आवश्यकता पड़ेगी। देश को अधिक कुशलता वाली नर्सें, तकनीशियन जैसी अन्य सहायक जनशक्ति की भी आवश्यकता पड़ेगी। सरकार ने कैंसर मरीजों की मदद के वास्ते बड़ी पहल करने की योजना बनाई है। राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम रिपोर्ट-2020 के अनुसार, नौ में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना है। सरकार अगले तीन वर्षों में सभी जिला अस्पतालों में डे-केयर कैंसर केंद्र स्थापित करना चाहती है, जिसमें 2025-26 में 200 केंद्र स्थापित किए जाएंगे। ऐसे केंद्रों का उपयोग आमतौर पर कीमोथेरैपी के लिए किया जाता है। यह सुविधा कैंसर उपचार तक रोगी की पहुंच आसान करने में सहायक होगी, जो फिलहाल केवल बड़े अस्पतालों या मेडिकल कॉलेज जैसे उच्च केंद्रों पर उपलब्ध है। इस पहल के लिए पीपीपी मोड का उपयोग करने का प्रस्ताव है। हालांकि, प्रशिक्षित जनशक्ति, उन्नत इमेजिंग और कैंसर डायग्नोस्टिक्स जैसे बुनियादी ढांचे की कमी है।
बजट में कई दवाओं की कीमतों में कटौती का प्रस्ताव किया गया है, जिसका सीधा फायदा नागरिक की जेब को होगा। कैंसर, अप्रचलित बीमारियों और अन्य पुराने रोग से पीड़ित मरीजों को राहत देने के लिए 36 जीवन रक्षक दवाओं को मूल सीमा शुल्क से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। छह अतिरिक्त जीवन रक्षक दवाओं पर अब 5 प्रतिशत का रियायती सीमा शुल्क लगेगा। स्थानीय कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए उपरोक्त श्रेणियों की दवाओं के थोक निर्माताओं को भी रियायत दी जाएगी।
प्रस्तावित एक अन्य प्रमुख क्षेत्र चिकित्सा पर्यटन है। देश में विशेषज्ञ चिकित्सा पेशेवरों और बुनियादी ढांचे की उपलब्धता के साथ, भारत के कई निजी अस्पतालों में पहले से ही दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया से रोगी इलाज के वास्ते आ रहे हैं। अनुमान है कि दुनिया में हर साल तकरीबन 1.4 करोड़ लोग बेहतर चिकित्सा उपचार के लिए दूसरे देशों को जाते हैं। भारत में 35 से अधिक वैश्विक मामलों वाले अस्पताल जेसीआई (संयुक्त आयोग अंतर्राष्ट्रीय) द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।
सरकार ने 2022 में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक चिकित्सा पर्यटन पहल, ‘हील इन इंडिया’ का प्रस्ताव रखा था। लेकिन यह योजना विशेष आगे बढ़ नहीं पाई।
बजट प्रस्तावों में सूक्ष्म, लघु एवं मध्य इकाइयों के लिए प्रस्तावित आवंटन से दवा उत्पादन के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। सरकार ने दवा उत्पादन से जुड़े उद्योगों के प्रोत्साहन मद के वास्ते 2,445 करोड़ रुपये रखे हैं। क्षेत्र-विशेष में निजी संस्थानों द्वारा संचालित अनुसंधान, विकास और नवाचार के लिए 20,000 करोड़ रुपये की पर्याप्त राशि निर्धारित की गई है। जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया था, दवा की खोज और उत्पादन के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों के निर्माण को भी स्वदेशी बनाने की आवश्यकता है। भारत को सटीक चिकित्सा, जीन थेरैपी और नूतन जैव विज्ञान पर जोर देते हुए चिकित्सा नवाचार को अगले स्तर पर जाने की जरूरत है।
अन्य उल्लेखनीय प्रस्तावों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए धन आवंटन और बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को पोषण प्रदान करने पर जोर देना शामिल है। चिकित्सा अनुसंधान के लिए आवंटन में 18.14 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी देना एक स्वागत योग्य कदम है। हालांकि, निवारक स्वास्थ्य जांच के लिए कर छूट में बढ़ोतरी, बीमा पैकेज में आउट पेशेंट डायग्नोस्टिक्स को शामिल करना और स्वास्थ्य सेवा में जीएसटी को तर्कसंगत बनाना वे उपाय हैं, जिनकी जरूरत है। बजट प्रस्तावों में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका की परिकल्पना की गई है। स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की शिक्षा और कौशल विकास पर अधिक चर्चा होनी चाहिए। डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड, टेलीमेडिसिन और एआई की पूरी क्षमता का अहसास होना चाहिए।
लेखक पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष एवं प्रोफेसर रह चुके हैं।