फिल्म निर्माताओं के लिए सोना बरसाती रही है फिल्मी बरसात
हिंदी सिनेमा में कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जिनका बरसों से अलग-अलग तरीके से उपयोग किया जाता रहा है। उन्हीं में से एक है बरसात। गीतों में, दृश्यों में, बदला लेने के लिए व मन की भावनाओं को दर्शाने को बारिश का सहारा लियाा जाता रहा। प्रेमाग्नि का सुलगना हो, बहकना हो, अकेलापन हो, निराशा हो या फिर कोई खतरा! ऐसे सभी दृश्य फिल्माने में बारिश की भूमिका महत्वपूर्ण रही। राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ के गीत ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन’ से शुरू हुआ बरसात का ये सिलसिला आज भी जारी है।
हेमंत पाल
सावन और सिनेमा का एक खास रिश्ता रहा है। फिल्मकारों ने बरसात को केंद्र में रखकर कई यादगार फ़िल्में बनाई और आज भी बनाई जा रही हैं। बरसात ने ही गीतकारों और फिल्मकारों की कल्पनाशीलता को एक नई उड़ान दी। रोमांस, विरह, चुहलबाजी और मनुहार को दर्शाने के लिए फिल्मकारों ने बरसात को जरिया बनाया। ऐसे में संगीतकारों और गीतकारों ने भी अद्भुत काव्यानुभूति का परिचय देते हुए बरसात के गानों को यादगार बना दिया। बरसात ने फिल्मों में पात्र की तरह भी कमाल दिखाया है। कभी कहानी में ट्विस्ट लाना हो या क्लाइमेक्स रोमांचक बनाना हो, बरसात हिट फार्मूला साबित हुई है। कई फिल्मकारों ने बरसात का उपयोग मौके की नजाकत को उभारने के लिए किया। कुछ फिल्मों में बरसात मधुर मिलन और खुशी की सूत्रधार बनी तो कुछ फिल्मों में नायक-नायिका को जुदा कराने वाली खलनायिका बन बैठी!
मानव मन की भावनाओं जैसे हर्ष, व्यथा, रोमांस, प्रतिशोध, हिंसा को व्यक्त करने के लिए हिंदी फिल्मों में बारिश को सशक्त माध्यम की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा। फिल्मों में नायक-नायिकाओं और अन्य चरित्रों, परिस्थितियों और मनोदशाओं को व्यक्त करने के लिए बारिश का सहारा लिया गया। ‘बरसात की एक रात´ में भारत भूषण को मधुबाला के दीदार कराने का श्रेय बरसात को ही जाता है। कई फिल्मों में हीरो बरसात में बस-स्टॉप पर खड़ी हीरोइन को देखते ही प्यार कर बैठता है। कुछ फिल्मों में बरसात में एक ही जगह फंसे नायक-नायिका कट्टर दुश्मनी होने के बावजूद प्यार करने लगते हैं। ‘हिना’ की कहानी की दिशा बारिश ने ही तो बदली थी। तेज बारिश के चलते ही ऋषि कपूर अपनी मंगेतर के पास जाने की बजाए पाकिस्तान की हिना यानी जेबा बख्तियार के पास पहुंच जाता है।
राज कपूर की फिल्मों में बरसात के प्रसंग
राज कपूर की तो करीब सभी फिल्मों में बरसात के दृश्य देखने को मिलते रहे। ‘बरसात’ के बाद आवारा, ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के बरसाती दृश्य आज भी उस दौर के दर्शकों को याद आते होंगे। राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ में बरसते पानी में छाते के आदान-प्रदान को लेकर गीत ‘प्यार हुआ इकरार हुआ, प्यार से फिर क्यूं डरता है दिल’ फिल्माया गया। राजकपूर और नरगिस ने एक-दूसरे की आंखों में गहराई से झांकते हुए बरसते पानी के बीच एक-दूसरे को छाता देकर बारिश से बचाने का प्रयास किया। किशोर कुमार की फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ भी पुराने दर्शक कैसे भूल सकते हैं। बारिश में भीगी शर्माती मधुबाला को, जो अपनी खराब कार किशोर कुमार के गैरेज में लेकर आती है। इसी दृश्य ने उन्हें ‘एक लड़की भीगी भागी सी’ गीत गाने को प्रेरित किया।
नायक-नायिका और रोमांस की बरसात
1969 में आई ‘आराधना’ में ‘रूप तेरा मस्ताना’ गीत गाते नायक-नायिका का मिलन होता है। साल 1973 की फिल्म ‘जैसे को तैसा’ में ‘अब के सावन में जी डरे’ गीत के दौरान नायक-नायिका की मुद्राएं आज भी याद हैं। सन 1974 की मनोज कुमार की फिल्म ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ में नायिका ‘हाय हाय ये मजबूरी’ गीत गाते हुए नायक को दो टकिया की नौकरी का ताना देती है। साल 2007 में प्रदर्शित फिल्म ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ में नायक-नायिका के बीच रोमांस इसी बारिश के मौसम में परवान चढ़ता है। ‘बरसात की रात’ (1960) का सदाबहार गीत ‘जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’ वाले दृश्य के जरिए नायक-नायिका को कभी विस्मृत न करने की भावना शिद्दत से दर्शाता है।
हिंदी फिल्मों के ऐसे दृश्यों की भरमार है, जिनमें नायक-नायिकाओं के मनोभाव प्रकट करने के लिए इसी बारिश का सहारा लिया गया है। 1989 की फिल्म ‘चांदनी’ में विनोद खन्ना अपनी दिवंगत पत्नी की याद में जो गीत गाता है उसके लिए बारिश की पृष्ठभूमि उपयुक्त लगती है। 1984 की फिल्म ‘मशाल’ में ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार अपनी घायल पत्नी की मदद के लिए भीगी रात में ही गुहार लगाते हैं। ‘कंपनी’ (2002) और ‘जॉनी गद्दार’ (2007) के दृश्यों में खून-खराबा फिल्माने के लिए बारिश का सहारा लिया।
प्रसंग अलग पर बरसात एक ही
आमिर खान अपनी फिल्म ‘लगान’ (2001) में सूखा पीड़ित गांव में भगवान से पानी बरसाने की प्रार्थना के लिए ‘घनन घनन घिर आए रे बदरा’ गाता है। देवानंद की 1965 में आई ‘गाइड’ में भी सूखाग्रस्त गांव में पानी बरसाने के लिए सन्यासी से प्रार्थना की जाती है। वहीं 1964 की फिल्म ‘वो कौन थी’ में बरसात के बीच रहस्यमयी मुद्रा में साधना पर फिल्माया गीत ‘नैना बरसें रिमझिम रिमझिम’ कौन भूल सकता है। दुराचार के दृश्यों को भी बरसात में फिल्माकर कई बार वीभत्स रूप दिया गया। 1985 में आई ‘अर्जुन’ में छतरियों की भीड़ में मारपीट दृश्य फिल्माया गया। अमिताभ पर भी ‘आज रपट जाए’ फिल्माया गया।
फिल्मों के नाम में ‘बरसात’ और ‘सावन’
कुछ फिल्मों के शीर्षक भी बरसात पर आधारित रहे। पहली फिल्म ‘बरसात’ 1949 में राज कपूर की आई, 1995 में बॉबी देओल ने भी ‘बरसात’ में काम किया, 2005 में फिर बॉबी देओल की फिल्म ‘बरसात’ नाम से आई। ‘बरसात की रात (1960) व बरसात की एक रात (1981) फिल्में आई। कई फिल्मों में बरसात के प्रतीक सावन को भी महत्व दिया गया। सावन की घटा, आया सावन झूम के, सावन को आने दो, प्यासा सावन ऐसी ही कुछ फिल्में हैं, परंतु उनके कथानक से बारिश का लेना-देना नहीं था। मीरा नायर की ‘मानसून वेडिंग’ में जरूर वर्षा का कुछ महत्व था।
ऑस्कर के लिए नामित आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ की कहानी में बदलाव बरसात की वजह से ही आया है। बरसात नहीं आती, किसान खेती नहीं कर पाते और लगान देने में असमर्थ होते हैं। भुवन (आमिर खान) अंग्रेजी साम्राज्य से लोहा लेने के लिए प्रेरित होता है। फिल्मकारों के लिए बरसात सिर्फ गाने या क्लाइमेक्स की सिचुएशन ही नहीं है, महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट भी है।