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फिल्मों की सफलता और गानों की हिस्सेदारी

04:05 AM May 10, 2025 IST
फिल्मों की सफलता और गानों की हिस्सेदारी
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हिट फिल्म का फार्मूला आज तक कोई फ़िल्मकार नहीं गढ़ सका। कई बार बड़े बजट की फ़िल्में पानी नहीं मांगती और कम बजट की फ़िल्में एक गाने की वजह से सफलता की सीढ़ियां चढ़ जाती हैं। इसलिए कि फिल्मों में सिर्फ कथानक और अभिनय ही नहीं होता, इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा होता है, जो कहानी में इस तरह घुल-मिल जाता है कि न तो नजर आता है और न समझ। ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिनकी कामयाबी में एक गाने का हाथ रहा। किंतु, बिना गानों की फिल्म जब हिट होती है, तो यह सवाल छोड़ जाती है कि आखिर फिल्म गानों से सफल होती है या बिना गानों के! यह सवाल भी कि कथानक में गानों की जगह है या नहीं!

हेमंत पाल
फिल्मों की दुनिया बड़ी अजीब है। यह ऐसी अबूझ पहेली है, जिसे आज तक कोई समझ नहीं सका। दर्शकों की पसंद पर फिल्म का कौनसा पक्ष खरा उतरेगा, ये कोई नहीं जानता। फिल्म की कहानी का नयापन, अनोखा निर्देशन, एक्शन सीन, कॉमेडी, सस्पेंस में से दर्शक किससे रीझेंगे कोई नहीं जानता। सबसे अलग बात तो यह कि कई बार फिल्म के गाने भी उसके हिट होने की वजह बन जाते हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं, जब फिल्म का कोई एक गाना लोगों को इतना भाया कि वह फिल्म के हिट होने का कारण बन गया। कुछ कलाकार तो फिल्म के गानों पर अपनी डांसिंग स्टाइल से ही हिट हो गए। गानों के बगैर फिल्मों के बारे में सोचना भी मुश्किल है। लेकिन, ऐसी भी फ़िल्में हैं, जो गानों की वजह से लोकप्रिय तो हो गई, पर बॉक्स ऑफिस पर उनकी दाल नहीं गली। जहां तक राज कपूर, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, जितेंद्र और राजेश खन्ना जैसे कलाकारों की बात है, तो इन्होंने परदे पर गाने गाते हुए झूमकर ही अपनी पहचान बनाई। कुछ फिल्में ऐसी भी हैं, जो केवल एक गाने के कारण बॉक्स ऑफिस पर भीड़ जुटाने में कामयाब हुई। कभी ये कव्वाली रही, कभी ग़ज़ल तो कभी शादी के गीत! लेकिन, ये दावे तब धराशायी हो जाते हैं, जब ऐसी फ़िल्में भी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ जाती है, जिनमें कोई गाना नहीं था। यानी फिल्मों की सफलता में गानों का योगदान होता भी है और नहीं भी!
बॉक्स ऑफिस पर एक गाने से सिक्कों की बरसात कराने में संगीतकार रवि सबसे ज्यादा चर्चित रहे। उनकी कई ऐसी फिल्में हैं, जो केवल एक गाने के कारण दर्शकों ने बार-बार देखी! ऐसी ही फिल्मों में एक है शम्मी कपूर की ‘चाइना टाउन’ जिसका गीत ‘बार बार देखो, हजार बार देखो’ तब जितना मशहूर हुआ था, आज भी उतना ही गुनगुनाया जाता है। शादी-पार्टी में थिरकना होता है तो इसी गीत की डिमांड होती है। रवि की दूसरी फिल्म है ‘आदमी सड़क का’ जिसका गीत ‘आज मेरे यार की शादी है’ बारात का जरूरी गीत बन गया। इसी तरह ‘नीलकमल’ का रचा गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ ने दर्शकों की आंखें नम तो की, फिल्म की सफलता में भी बहुत योगदान दिया। कभी फिल्में दर्जनों गानों के बावजूद हिट नहीं होती, तो कभी बिना गाने और महज एक गाने के दम पर कीर्तिमान तोड़ देती हैं।
एक ही संगीतकार के नाम कई यादगार गीत
रवि ने आरएटी रेट (दिल्ली का ठग), तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा (दस लाख), मेरी छम छम बाजे पायलिया (घूंघट), हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं (घराना), हम तो मोहब्बत करेगा (बाम्बे का चोर), ए मेरे दिले नादां तू गम से न घबराना (टावर हाउस), सौ बार जनम लेंगे सौ बार फना होंगे (उस्तादों के उस्ताद), छू लेने दो नाजुक होंठों को (काजल), मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी (आंखें), तुझे सूरज कहूं या चंदा (एक फूल दो माली), दिल के अरमां आंसुओं में बह गए (निकाह) जैसे एक गीत की बदौलत पूरी फिल्म को दर्शनीय बना दिया! फिल्मों को कामयाबी दिलवाने वाले अकेले गीतों में दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुराके चल दिए (दादा), आई एम ए डिस्को डांसर (डिस्को डांसर), बहारो फूल बरसाओ (सूरज), परदेसियों से न अखियां मिलाना (जब जब फूल खिले), चांदी की दीवार न तोड़ी (विश्वास) यादगार हैं। सत्तर के दशक में आई ‘धरती कहे पुकार के’ का गीत ‘हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से’ इतना हिट हुआ कि ये औसत फिल्म सिल्वर जुबली मना गई।
कव्वाली और गजलों से हिट हुई फ़िल्में
सिनेमा में एक दौर ऐसा भी आया, जब सी-ग्रेड फिल्म की एक कव्वाली ने दर्शकों में क्रेज बनाया था। ऐसी फिल्मों में ‘पुतलीबाई’ भी शामिल है जिसकी एक कव्वाली ‘ऐसे ऐसे बेशर्म आशिक हैं ये’ ने इतनी धूम मचाई थी, कि ‘पुतलीबाई’ ने सिल्वर जुबली मनाई। इसके बाद हर दूसरी फिल्म में कव्वाली रखी जाने लगी। इसके बाद आई नवीन निश्चल, रेखा और प्राण अभिनीत फिल्म ‘धर्मा’ में प्राण और बिंदू पर फिल्माई कव्वाली ‘इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो’ ने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता पाई। इस दौर के बाद फिल्मकारों ने गजलों पर ध्यान केंद्रित किया। एक गजल से सफल होने वाली फिल्मों में राज बब्बर, डिम्पल और सुरेश ओबेरॉय की फिल्म ‘एतबार’ (किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है) और ‘नाम’ (चिट्ठी आयी है) प्रमुख हैं।
फिल्म में कोई गीत नहीं, फिर भी हिट
हिंदी फिल्मों के इतिहास में बिना गीतों वाली फिल्मों की सफलता का भी जिक्र है। ऐसी पहली फिल्म ‘कानून’ (1960) को माना जाता है। बीआर चोपड़ा निर्देशित ये फिल्म कानूनी पेचीदगियों के बीच एक वकील के दांव-पेंच की कहानी थी, जो हत्यारे को बचा लेता है। फिल्म में अशोक कुमार ने वकील का किरदार निभाया था। बगैर गीतों वाली दूसरी फिल्म थी ‘इत्तेफ़ाक़’ जिसे 1969 में यश चोपड़ा ने निर्देशित किया था। राजेश खन्ना और नंदा ने इसमें मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। गीतों के बिना भी यह फिल्म पसंद की गई थी। यह फिल्म हत्या से जुड़े एक रहस्य पर आधारित थी।
कई नामचीन निर्देशकों ने भी यही प्रयोग किया
बरसों बाद श्याम बेनेगल ने 1981 में ‘कलयुग’ बनाकर इस परम्परा की याद दिलाई थी। इसमें शशि कपूर, राज बब्बर और रेखा मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म में दो व्यावसायिक घरानों की दुश्मनी को फिल्माया गया था। फिल्म में कोई गाना न होने के बावजूद इसे पसंद किया गया था। इसके बाद 1983 में बिना गानों वाली कुंदन शाह की कॉमेडी फिल्म आई ‘जाने भी दो यारो।’ इसमें नसीरुद्दीन शाह, रवि वासवानी, ओमपुरी और सतीश थे। ये एक मर्डर मिस्ट्री थी, जिसने व्यवस्था पर भी करारा व्यंग्य किया था। बिना गीतों की फिल्म की सबसे बड़ी खासियत होती है पटकथा की कसावट। यदि फिल्म की कहानी इतनी रोचक है कि वो दर्शकों को बांधकर रख सकती है, तो फिर गीतों का न होना कोई मायने नहीं रखता! इस तरह की अगली फिल्म 1999 में रामगोपाल वर्मा की ‘कौन है’ आई। इसमें मनोज बाजपेयी, सुशांत सिंह और उर्मिला मातोंडकर ने काम किया था। साल 2005 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ जिसने भी देखी, उसे पता भी नहीं चला होगा कि फिल्म में कोई गीत नहीं था।
बिना गानों की परंपरा अभी ख़त्म नहीं
इसके अलावा बिना गीतों वाली कुछ और उल्लेखनीय फिल्मों में 2003 में रिलीज हुई ‘भूत’ थी, जिसका निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया था। इस फिल्म में अजय देवगन, फरदीन खान, उर्मिला मातोंडकर और रेखा थे। ये डरावनी फ़िल्म थी और इसमें एक भी गीत नहीं था। इसी साल आई’डरना मना है’ में सैफ अली खान, शिल्पा शेट्टी, नाना पाटेकर और सोहेल खान थे। इस फिल्म में भी कोई गीत नहीं था, फिर भी यह हिट हुई। साल 2013 की फिल्म ‘द लंच बॉक्स’ दो अंजान अधेड़ प्रेमियों की कहानी थी, जो लंच बॉक्स जरिए प्रेम पत्रों का आदान-प्रदान करते हैं। इस फ़िल्म में इरफान खान ने बहुत अच्छी एक्टिंग की थी।

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