For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

फिर देश की जीवन रेखा बन जाएगा जल संचयन

04:00 AM May 23, 2025 IST
फिर देश की जीवन रेखा बन जाएगा जल संचयन
Advertisement

वर्षा जल संचयन एक पारंपरिक लेकिन अत्यंत प्रभावी तकनीक है, जो वर्षा के जल को इकट्ठा कर विभिन्न उपयोगों हेतु संग्रहीत करती है। भारत में बढ़ते जल संकट और शहरीकरण के चलते इसकी महत्ता और आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। यह एक पर्यावरण-संवेदनशील, कम लागत और टिकाऊ समाधान प्रदान करता है।

Advertisement

दीपक कुमार शर्मा

भारत में वर्षा जल संचयन बाजार का मूल्य वर्ष 2024 में लगभग 263 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया था। इसके 2030 तक 378 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। वर्षा जल संचयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वर्षा के जल को इकट्ठा करके, संगृहीत कर विभिन्न उपयोगों हेतु प्रयोग किया जाता है। जिससे यह जल व्यर्थ बहने के बजाय एक उपयोगी संसाधन बन जाता है। एक टिकाऊ तकनीक छतों, ज़मीन की सतहों अथवा अन्य संग्रहण क्षेत्रों से वर्षा जल को पाइपों या नालियों के माध्यम से टंकियों, हौदों अथवा जलाशयों में पहुंचाकर संचयित करती है। यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसे आज जल संकट और पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए पुनः अपनाया जा रहा है।
संगृहीत वर्षा जल का उपयोग सिंचाई, घरेलू जरूरतों, औद्योगिक प्रक्रियाओं और भूजल पुनर्भरण के लिए किया जा सकता है। यह न केवल नगरपालिका जल आपूर्ति पर निर्भरता को घटाता है, बल्कि मिट्टी के कटाव को रोकने और शहरी बाढ़ को कम करने में भी सहायक होता है। इसके अतिरिक्त, यह आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है और अनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों में एक स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराता है।
यह पर्यावरण-मित्र विधि विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अत्यंत लाभदायक है, जहां जल संसाधनों की भारी कमी है। यह एक कम लागत और सरल पद्धति है, जिसे व्यक्तिगत आवासों से लेकर सामुदायिक परियोजनाओं तक विभिन्न स्तरों पर अपनाया जा सकता है। यदि इसे शहरी और ग्रामीण योजना में समाहित किया जाए तो जल संकट का समाधान संभव है और टिकाऊ जल प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकता है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जल प्रबंधन को लेकर सख्त नीतियां लागू की गई हैं। जैसे कि ‘अमृत मिशन’ में वर्षा जल संचयन को शहरी जल संकट के समाधान का अभिन्न अंग बनाया गया है। तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सभी भवनों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य कर दिया है, जो अब देश के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जा रहा है। तमिलनाडु ने यह पहल 2001 में शुरू की गई थी। इसके अलावा, स्थानीय निकाय करों में छूट और वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं जिससे इन प्रणालियों की स्थापना को प्रोत्साहन मिलता है। 2023 में केंद्रीय भूजल बोर्ड के अध्ययन के अनुसार, तमिलनाडु में निगरानी किए गए 72 फीसदी कुओं में भूजल स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे अनियमित वर्षा और सूखे की घटनाओं ने वर्षा जल संचयन की आवश्यकता को बढ़ा दिया है। गैर-सरकारी संगठनों, स्कूलों और मीडिया द्वारा चलाए जा रही जागरूकता अभियानों ने लोगों को इस दिशा में प्रेरित किया है।
भारत का शहरीकरण तीव्र गति से हो रहा है—2021 में लगभग 500 मिलियन की शहरी आबादी 2031 तक 600 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है। शहरी क्षेत्र जहां कंक्रीट का वर्चस्व होता है, वहां वर्षा जल का प्राकृतिक भूजल पुनर्भरण बहुत कम हो पाता है। ऐसी स्थिति में वर्षा जल संचयन एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।
दरअसल, इस अभियान की एक प्रमुख चुनौती जनसामान्य में तकनीकी जानकारी और जागरूकता की कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। अनेक लोग इसे जटिल और महंगा मानते हैं, जिससे इसका व्यापक स्तर पर क्रियान्वयन प्रभावित होता है। तकनीकी विशेषज्ञता की कमी, गलत डिज़ाइन और रखरखाव में लापरवाही के कारण कई प्रणालियां विफल हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त, वित्तीय बाधाएं भी हैं। गरीब वर्ग और छोटे किसान इस प्रणाली की लागत वहन नहीं कर पाते, जबकि सरकारी सब्सिडी कई बार पर्याप्त नहीं होती या उन तक पहुंच नहीं पाती।
अब वर्षा जल संचयन में स्मार्ट तकनीक का प्रयोग होने लगा है। सेंसर-आधारित प्रणालियां, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और डेटा विश्लेषण की मदद से जल स्तर की निगरानी, गुणवत्ता परीक्षण और स्वचालित नियंत्रण संभव हो गया है। उदाहरण के लिए, टंकियों में लगे सेंसर पानी की मात्रा और स्वच्छता के स्तर की जानकारी देते हैं। शहरी क्षेत्रों में अब विकेंद्रीकृत वर्षा जल संचयन प्रणालियां लोकप्रिय हो रही हैं, जो एक-एक भवन या समाज स्तर पर काम करती हैं। यह प्रणाली नगरपालिका पर निर्भरता को घटाकर स्थानीय स्तर पर जल संकट का समाधान करती है। ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणीकरण और सरकारी प्रोत्साहनों ने इसे और बल दिया है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार के अनुसार, ‘मेरा पानी – मेरी विरासत’ जैसी पहल से 2023-24 में लगभग 24.87 खरब लीटर पानी की बचत की गई। सितंबर, 2024 में प्रधानमंत्री ने गुजरात के सूरत में ‘जल संचय जन भागीदारी’ अभियान की शुरुआत की, जो ‘जल शक्ति अभियान : कैच द रेन’ के तहत समुदाय-आधारित जल संरक्षण को बढ़ावा देती है। फरवरी, 2023 में स्ट्रोमसेवर ने दो नई घरेलू वर्षा जल संचयन प्रणालियां पेश कीं, जो विशेष रूप से गर्मियों में जल संकट और आवासीय मांग को ध्यान में रखकर डिज़ाइन की गई हैं।
यदि सही नीति, जागरूकता और तकनीकी सहायता जल संचयन को मिलती रहे तो यह देश के जल संकट का एक स्थायी समाधान बन सकता है। विशेषकर हरियाणा जैसे राज्यों में जहां भूजल स्तर खतरनाक रूप से नीचे जा रहा है, वहां इस प्रणाली को अनिवार्य रूप से अपनाना आवश्यक हो गया है। सरकार, समाज और उद्योगों के सम्मिलित प्रयासों से ही बात बनेगी।

Advertisement

Advertisement
Advertisement