फसलों की विविधता को कम करेगी बढ़ती गर्मी
इन बदलती परिस्थितियों से दुनिया के मौजूदा खाद्य फसल उत्पादन का आधा हिस्सा प्रभावित हो सकता है। चावल, मक्का, गेहूं, आलू और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों को उपयुक्त कृषि भूमि में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे उन लोगों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं जो दैनिक पोषण के लिए इन फसलों पर निर्भर हैं।
मुकुल व्यास
ग्लोबल वार्मिंग दुनिया में फसलों की विविधता को कम कर सकती है। एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो विशाल क्षेत्र फसल विविधता खो सकते हैं, जिससे विश्वव्यापी खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि उच्च तापमान के कारण वैश्विक खाद्य उत्पादन का लगभग एक तिहाई हिस्सा खतरे में पड़ सकता है। फिनलैंड के आल्टो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नेचर फूड में प्रकाशित शोध में बताया कि तापमान,वर्षा पैटर्न और समग्र शुष्कता में परिवर्तन किस तरह दुनिया भर में 30 प्रमुख खाद्य फसलों के विकास को प्रभावित करेंगे।
शोध के परिणाम बताते हैं कि निम्न अक्षांश क्षेत्र, खास कर उष्णकटिबंधीय देशों के बड़े हिस्से सबसे अधिक नुकसान उठाने वाले हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, इन क्षेत्रों में कृषि के लिए बहुत अधिक भूमि अनुपयुक्त होती जाएगी। साथ ही उगाई जा सकने वाली फसलों की विविधता में भी भारी गिरावट आएगी। अध्ययन का नेतृत्व करने वाली शोधकर्ता सारा हेइकोनेन ने कहा कि विविधता के नुकसान का मतलब है कि कुछ क्षेत्रों में खेती के लिए उपलब्ध खाद्य फसलों के दायरे में काफी कमी आ सकती है। इससे खाद्य सुरक्षा कम होगी और पर्याप्त कैलोरी और प्रोटीन प्राप्त करना अधिक कठिन हो जाएगा।
इन बदलती परिस्थितियों से दुनिया के मौजूदा खाद्य फसल उत्पादन का आधा हिस्सा प्रभावित हो सकता है। चावल, मक्का, गेहूं, आलू और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों को उपयुक्त कृषि भूमि में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे उन लोगों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं जो दैनिक पोषण के लिए इन फसलों पर निर्भर हैं। कई अन्य फसलें भी असुरक्षित हैं जिनमें अनाज और दालों के अलावा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगने वाली जड़ वाली फसलें शामिल हैं। जिमीकंद जैसी जड़ वाली फसलें कम आय वाले क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
यदि ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाती है तो इन देशों में वर्तमान उत्पादन का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा खतरे में पड़ जाएगा। वैश्विक तापमान का असर सब जगह एक जैसा नहीं होगा। नया अध्ययन निम्न अक्षांश और मध्य से उच्च अक्षांश क्षेत्रों (भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच में गर्म और ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र) के बीच एक स्पष्ट अंतर को दर्शाता है। भूमध्य रेखा के नजदीकी देशों को जहां फसल की भारी क्षति और विविधता में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है, वही ठंडी जलवायु वाले देश अपने समग्र उत्पादन स्तर को बनाए रख सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने यह भी अनुमान लगाया है कि मध्य और उच्च अक्षांश वाले क्षेत्र गर्म होती दुनिया में फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला की खेती करने में सक्षम हो सकते हैं। अध्ययन के वरिष्ठ लेखक मैटी कुम्मू का कहना है कि जलवायु में अनुकूल बदलाव अधिक पैदावार की गारंटी नहीं देता है। जलवायु परिवर्तन से कुछ स्थानों पर उत्पादन बढ़ सकता है लेकिन वार्मिंग नए कीट पैदा कर सकती है और चरम मौसम की घटनाएं ला सकती है।
खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे देश, खास कर अफ्रीकी देश पहले से ही कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं क्योंकि बढ़ते तापमान अन्य सामाजिक और आर्थिक दबावों के साथ मेल खाते हैं। कई कम अक्षांश वाले क्षेत्रों में, खास तौर पर अफ्रीका में, दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पैदावार कम है। ये देश उर्वरकों और सिंचाई तक अपनी पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन और भंडारण श्रृंखला के माध्यम से खाद्य नुकसान को कम करके वे अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि वैश्विक गर्मी इन अनुमानों में बहुत अधिक अनिश्चितता जोड़ेगी और संभवतः और भी अधिक कार्रवाई की आवश्यकता होगी, जैसे कि अनुरूप फसल का चयन करना और प्रजनन के नए तरीके अपनाना। मॉडल के जरिए अध्ययन और विश्लेषण करना आसान लगता है लेकिन यह समझना सबसे कठिन है कि बदलाव कैसे किए जाएं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि कम अक्षांश वाले देशों में नीति-निर्माताओं को कृषि के इंफ्रास्ट्रक्चर में अंतर को पाटने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए। साथ ही अधिक प्रतिकूल बढ़ती परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। ऐसे प्रयासों के बिना स्थानीय समुदायों को, जो पहले से ही खाद्य कमी के खतरे में हैं, आने वाले वर्षों में और भी अधिक संघर्ष करना पड़ेगा। दुनिया की खाद्य फसलों को सुरक्षित करना मध्य और उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों के लिए किसानों और नीति निर्धारकों को लचीला बने रहना होगा। गर्मी नई फसलों के लिए द्वार खोल सकती है, लेकिन वैश्विक मांग और बाजार की ताकतों में बदलाव लोगों द्वारा खेती के लिए चुने जाने वाले तरीकों को और भी बदल सकते हैं। नई स्थितियों से निपटने के लिए किसानों द्वारा जो तरीके अपनाए जा सकते हैं, उनमें विभिन्न फसल किस्मों के साथ प्रयोग करना, रोपण के मौसमों को समायोजित करना तथा गर्म मौसम और कीटों से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश करना शामिल है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर हम भविष्य में अपनी खाद्य प्रणाली को सुरक्षित करना चाहते हैं, तो हमें जलवायु परिवर्तन को कम करना पड़ेगा और इसके प्रभावों के अनुकूल होना पड़ेगा। भले ही सबसे बड़े परिवर्तन भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में हों, हम सभी वैश्विक खाद्य प्रणाली के माध्यम से इन प्रभावों को महसूस करेंगे। अतः हमें इन समस्याओं को दूर करने के लिए मिलकर काम करना पड़ेगा। इस अंतर्संबंध का मतलब है कि दुनिया के एक हिस्से में जलवायु द्वारा संचालित फसल विफलताओं का असर समस्त सप्लाई चेन पर पड़ेगा, जिससे हर जगह खाद्य कीमतों और उपलब्धता पर असर पड़ सकता है। अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि जलवायु परिवर्तन को कम करना आवश्यक है, लेकिन एक गर्म और अधिक अप्रत्याशित ग्रह पर उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निपटने के लिए बेहतर योजना बनाना भी उतना ही जरूरी है।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।