प्राकृतिक खाद्यों में विश्व का नेतृत्व करे भारत
पश्चिमी देशों की तर्ज पर चीन द्वारा जीएम फसलों को अपनाया जा रहा है। आगामी वर्षों में दुनिया में स्वास्थ्य अनुकूल जीएम मुक्त प्राकृतिक खेती के उत्पादों की मांग सबसे अधिक होगी। इसी के लिए बेहतर कीमत भी मिलेगी। भारत को प्राकृतिक खाद्यों में विश्व का नेतृत्व करना चाहिए।
भारत डोगरा
विश्व की खाद्य व कृषि व्यवस्था पर चंद बहुराष्ट्रीय कंपनियाें का अधिक व बढ़ता नियंत्रण एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। एक समय अनेक किसान व सामाजिक आंदोलनों की उम्मीद थी कि इन विशालकाय कंपनियों के नियंत्रण से मुक्ति के प्रयासों में चीन से बड़ी सहायता मिलेगी। पर हाल के समय में चीन ने जो नीतियां अपनाई हैं उनसे तो लगता है कि वह स्वयं इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की राह पर ही चल निकला है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने खाद्य व्यवस्था पर अपने नियंत्रण के लिए प्रायः जेनेटिक स्तर पर संवर्धित फसलों की तकनीक का बहुत उपयोग किया है। कुछ समय तक तो चीन ने इन जीएम फसलों से अपनी दूरी बनाए रखी, पर हाल के समय में इसने तेजी से अनेक जीएम खाद्य फसलों को अपना लिया है। इसी तरह जीएम खाद्यों के आयात पर प्रतिबंध भी ढीले कर दिए गए। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि चीन की एक बहुत बड़ी सरकारी नियंत्रण की कंपनी ने 43 अरब डालर के एक सौदे में ऐसी एक बड़ी पश्चिमी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया जो जीएम फसलों के प्रसार के लिए जानी जाती है व विकासशील देशों के बीज पर अधिक नियंत्रण करने के जिसके प्रयासों की आलोचना होती रही है।
लगता है कि चीन की यह सरकारी कंपनी भी आज नहीं तो कल विकासशील देशों में जीएम फसलों का प्रचार ही करेगी। इस तरह विश्व स्तर के जन-आंदोलनों व किसान आंदोलनों में चीन की इस सरकारी नियंत्रण की कंपनी की भी वैसी ही निंदा होगी जैसी कि पहले पश्चिमी देशों में स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनियों की होती रही हैं।
यह आश्चर्य की बात है कि चीन के सामान्य लोगों व उपभोक्ताओं में जीएम फसलों के प्रति बहुत नकारात्मक सोच होने के बावजूद व जन-भावनाओं की उपेक्षा करते हुए वहां की सरकार जीएम फसलों के समर्थन की राह पर चली है। एक अध्ययन में तो यह पाया गया कि केवल 12 प्रतिशत चीनी उपभोक्ताओं की ही जीएम फसलों के प्रति सकारात्मक सोच है व अधिकांश लोग उन्हें हानिकारक ही मानते हैं। एक अन्य सर्वेक्षण में यह पता चला कि 60 प्रतिशत चीन के नागरिकों की जीएम वैज्ञानिकों के प्रति नकारात्मक सोच है।
इस विषय पर भारत के सबसे विख्यात वैज्ञानिक प्रो. पुष्प भार्गव आधिकारिक विशेषज्ञ थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर उन्हेंे अपने सलाहकार की तरह माना और उनका सहयोग प्राप्त किया। उन्होंने जीएम फसलों पर हुए लगभग सभी अनुसंधान पत्रों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला था कि जो स्वतंत्र व निष्पक्ष वैज्ञानिक हैं उनमें लगभग सभी ने जीएम फसलों को हानिकारक पाया है। हां, जो वैज्ञानिक जीएम फसलों का प्रसार करने वाले व्यावसायिक हितों से जुड़े रहे उनकी बात अलग है।
चीन की नीति में जो बदलाव आया है, वह वैज्ञानिक आधार पर नहीं आया है अपितु जीएम फसलों व खाद्यों से जुड़ी कंपनियों के नीति-निर्धारकों पर बढ़ते असर के कारण आया है। वहां के बीज व कृषि क्षेत्र में इन कंपनियों के पहले दबदबे व असर के कारण ही नीतिगत बदलाव हुए हैं।
जी.एम. फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि यह फसलें स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा यह असर जेनेटिक प्रदूषण के माध्यम से अन्य सामान्य फसलों व पौधों में फैल सकता है। इस विचार को इंडिपेंडेंट साइंस पैनल ने बहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है। इस पैनल में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जी.एम. फसलों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है- ‘जी.एम. फसलों के बारे में जिन लाभों का वादा किया गया था वे प्राप्त नहीं हुए हैं व ये फसलें खेतों में समस्याएं पैदा कर रहीं हैं। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रान्सजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है। अतः जी.एम. फसलों व गैर जी.एम. फसलों का सह अस्तित्व नहीं हो सकता है।’
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जी.एम. फसलों की सुरक्षा या सेफ्टी प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं जिनसे इन फसलों की सेफ्टी या सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है, जिसे फिर ठीक नहीं किया जा सकता है। जी.एम. फसलों को अब दृढ़ता से रिजेक्ट कर देना चाहिए, अस्वीकृत कर देना चाहिए।’
चीन द्वारा तथ्यों की अवहेलना करते हुए जीएम फसलों को अपना लेने का एक अर्थ यह भी है कि भारत के सामने एक बड़ी संभावना है और एक बड़ी चुनौती है। आगामी वर्षों में दुनिया में सबसे अधिक मांग उन खाद्यों की होगी जो स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे सुरक्षित व उत्तम है। विशेष तौर पर जीएम मुक्त प्राकृतिक खेती के उत्पादों की मांग सबसे अधिक होगी व इसी के लिए बेहतर कीमत भी मिलेगी। चीन स्वयं इस राह से हट रहा है। अब भारत को जीएम मुक्त प्राकृतिक खाद्यों में विश्व का नेतृत्व करना चाहिए व भारत जैसे छोटे किसानों के देश ही इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त भी हैं।