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प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो

04:00 AM Feb 07, 2025 IST
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो
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मनोज वार्ष्णेय

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चुनाव के बाद सबसे अधिक चर्चा में रहने वाली ईवीएम समझ नहीं पाती कि उसमें आखिर ऐसी कौन-सी कमी है जिसके कारण उसे दो भागों में बांटा जाता है। एक वह जो कहता है- ईवीएम ने चुनावों की दुनिया में गड़बड़ी को खत्म कर दिया है और दूसरा है कि मानता ही नहीं कि ईवीएम सही है। वह हमेशा उसमें खोट देखता है। इसके विपरीत ईवीएम शांत है। वह तो बस चुनावों के समय ही हल्ला करती है, जब कोई मतदाता वोट करने आता है और उसके टेटूए को दबाता है तो वह ची...इइइइइ करके शांत हो जाती है। वह सब कुछ सहन कर सकती है, लेकिन कोई उसकी ईमानदारी पर उंगली उठाए तो वह मर्माहत हो जाती है, दुखी हो जाती है। पर वह करे क्या? करने वाले सिर्फ दो ही हैं एक वह जो उसका उपयोग लोकतंत्र के पर्व में मतदान करते हैं तथा दूसरे वह जो उसको इस पर्व में भागीदारी करने का अवसर देते हैं। इस सबके बाद भी उस पर जब उंगली उठती है तो वह भगवान से कह उठती है- प्रभुजी मेरे अवगुण चित ना धरो।
महाकवि सूरदास ने जब प्रभुजी मेरे अवगुण चित ना धरो, लिखा था तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि कलियुग में कलपुर्जों से चलित यंत्र उनकी रचना के माध्यम से भगवान से मदद मांगेगा। ईवीएम कहती है- प्रभुजी मेरे अवगुण चित ना धरो।
ईवीएम ने कितनी बड़ी बात कह दी। वह जो बात कह रही है वह बावन तोला, पाव रत्ती ठीक है। एक छोटी-सी मशीन कितना गजब ढा सकती है इसका अगर डिकंस्ट्रकशन करें तो पता चलता है कि यह तो गजब हुई गवा रे...।
ईवीएम एक ऐसी मशीन है जो घंटों का काम पलों में निपटा देती है। कितनी भी लंबी लाइन हो आपने उसका गला दबाया और वोट पड़ा, भीड़ खत्म। लेकिन जब लोहे का बॉक्स था तो कितनी मुसीबत होती थी मतदाता को। मतदाता ही क्यों? जो लोकतंत्र के पर्व में मत का दान कराते थे वह पहले मतपत्र को फाड़ते, मोड़ते, मतदाता को देते और फिर मतदाता वही प्रक्रिया अपनाता। उस पर अगर प्रत्याशी से लड़ाई है तो आप अपनी खींज निकाल सकते थे। मतपत्र में कोई पर्ची रख दी तथा लिख दिया भ्रष्ट, चोर या कुछ और भी। अगर यह नहीं किया तो इतनी बार मोहर लगाई कि सिर्फ स्याही नजर आती थी मत पाने वाले सिपाही का पहचान चिन्ह गायब। कई तो एक साथ सभी को मतदान कर देते थे। दारु किसी से ली वोट किसी दूसरे को दिया।
पहले बैलेट बॉक्स भी इतने भारी होते थे कि इन्हें उठाने के लिए कोई दमदार आदमी ही चाहिए होता था पर अब तो अटैची जैसा डब्बा। कोई भी नाजनीन उठाए और साड़ी का पल्ला उड़ाती हुई अपनी जुल्फे संवार लें। फिर दूसरे दिन उसकी फोटो पहले पेज पर, कैप्शन होता है- मतदान दल रवाना। पर फोकस उसी नाज़नीन पर। क्यों भाई? अरे साधारण-सी बात समझिए जैसे ईवीएम नाजुक वैसे ही नाजनीन। नाजनीन को तो कोई दोष नहीं देता, फिर बेचारी ईवीएम को क्यों दोष।

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