प्रभु की लीला
यह उस समय की बात है जब हनुमान जी अशोक वाटिका में माता सीता की खोज में पहुंचे थे और चुपचाप माता सीता और त्रिजटा की बातें सुन रहे थे। त्रिजटा ने कहा, ‘मैंने स्वप्न में देखा है कि लंका में एक बंदर आया है और वह लंका को जला देगा।’ त्रिजटा की यह बात सुनकर हनुमान जी को चिंता हुई कि प्रभु राम ने लंका जलाने के लिए ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया था, तो फिर त्रिजटा यह क्यों कह रही हैं?’ जब रावण के सैनिक हनुमान जी को मारने के लिए तलवार लेकर दौड़े, तब विभीषण ने आकर कहा, ‘दूत को मारना अनीति है।’ यह सुनकर हनुमान जी समझ गए कि प्रभु राम ने विभीषण को उनका रक्षक बना दिया है। यह आश्चर्यजनक था, लेकिन इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात तब हुई जब रावण ने आदेश दिया कि हनुमान जी की पूंछ में कपड़ा लपेटकर, उसमें घी डालकर आग लगाई जाए। हनुमान जी ने सोचा, 'यदि त्रिजटा की बात सच नहीं होती, तो मुझे लंका जलाने के लिए घी, तेल, कपड़ा और आग कहां से मिलता?’ आखिरकार हनुमान जी ने प्रभु राम से कहा, ‘हे प्रभु राम, आपने स्वयं ही रावण से यह प्रबंध करवा दिया। जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो यह मेरा मतिभ्रम था कि अगर मैं न होता, तो माता सीता को कौन बचाता?’
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा