प्रकृति प्रेम और समृद्धि का उत्सव
फूलदेई पर्व उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है, जो प्रकृति के प्रति प्रेम और समृद्धि की कामना का प्रतीक है। यह पर्व बच्चों के द्वारा मनाया जाता है, जिसमें वे फूलों से घरों की देहरी सजाते हैं और लोकगीत गाकर खुशहाली की कामना करते हैं।
पूनम पांडे
फूलों का संबंध कुदरत की मूल भावना से है। कुदरत इस मूल भावना का संबंध हर जीव-जंतु के प्रति समान भाव से अभिव्यक्त होना चाहिए। फूलों का स्वभाव और रूप सभी के लिए एक समान ही होता है। फूलों की महक हमारे इर्द-गिर्द स्पंदित होकर हमारे हृदय को भी पावन कर देती है।
फूलदेई पर्व का महत्व
फूलों के साथ उत्तराखंड में मनाया जाने वाला फूलदेई पर्व भी यही कहता है कि हम कुदरत जैसे समान और सहज बने रहें। फूलदेई पर्व प्रकृति प्रेम और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह त्योहार चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है, क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास से ही नववर्ष की शुरुआत होती है। खासकर बच्चों द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व में घरों की देहरी पर फूल बिखेरे जाते हैं, और लोकगीत गाकर समृद्धि की कामना की जाती है। इस बार यह फूलदेई पर्व 15 मार्च को मनाया जाएगा।
इस दिन पूजा और फूल अर्पण करके कुदरत को धन्यवाद किया जाता है। इस पर्व का इंतजार बच्चों और बड़े सभी को रहता है। आनंद और उल्लास का अविरल संवाद बन चुका फूलदेई पर्व एक मौन संवाद की तरह सभी को आपस में बांध लेता है। इस पर्व के दौरान, बच्चे घर-घर जाकर फूल चढ़ाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
पर्व से जुड़ी प्राचीन कथा
फूलदेई पर्व से जुड़ी एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार पहाड़ों में घोघाजीत नामक राजा का राज्य था। राजा की एक पुत्री थी, जिसका नाम था घोघा। घोघा बहुत ही सरल और प्रकृति प्रेमी थी, लेकिन एक दिन वह अचानक लापता हो गई। काफी खोजबीन के बाद भी वह नहीं मिली। दरअसल, घोघा वनदेवी की ही वास्तविक संतान थी, जो फूलों में समा गई थी। मगर, शुभचिंतकों और वैद्य के बेहद समझाने पर भी उसकी याद में राजा हर समय उदास रहने लगे। एक रात राजा को उनकी कुलदेवी ने सपने में दर्शन दिए और राजा को सुझाव दिया कि वह गांव के बच्चों को चैत्र की अष्टमी पर बुलाएं और उनसे इसी मौसम के फ्योंली और बुरांस के फूल घर की देहरी पर चढ़वाएं। ऐसा करने से राजा के मन में और राज्य में खुशहाली आएगी। राजा ने यही किया और उदासी मिटने लगी। तब से ही फूलदेई पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।
पर्व की परंपरा और उत्सव
फूलदेई त्योहार को उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व खासकर बच्चों के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि वे घर-घर जाकर फूल डालते हैं और इसके बदले में उन्हें गुड़, चावल और पैसे भेेंट स्वरूप मिलते हैं। घर की देहरी सजाना भी फूलदेई पर्व की विशिष्ट परंपरा है। इस दिन घरों की देहरी (द्वार) को फूलों से सजाया जाता है।
बच्चे समूह में लोकगीत गाते हैं –
‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार।’
कुछ स्थानों पर घोघा को देवी मानकर घोघा माता की पूजा भी की जाती है। उन्हें भी फूल अर्पित किए जाते हैं।
पर्व का विस्तार
कुमाऊं-गढ़वाल के कई क्षेत्रों में फूलदेई पूरे आठ दिन तक मनाई जाती है। कुछ गांवों में पूरे चैत्र महीने तक फूलदेई का पर्व चलता है। गीत, संगीत और भंडारे भी आयोजित होते हैं। फूलदेई केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक है।