प्रकृति के संरक्षण की भावनात्मक मुहिम
‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान पर्यावरण संरक्षण को मां के प्रति श्रद्धा से जोड़ता है, जिससे यह केवल वृक्षारोपण नहीं, बल्कि जनभागीदारी और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक बन गया है।
दीपक कुमार शर्मा
विश्व पर्यावरण दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी की याद दिलाने वाला प्रतीक है। पृथ्वी केवल रहने का स्थान नहीं, बल्कि जीवन का स्रोत है – ठीक वैसे ही जैसे मां होती है। इसी विचार को जीवंत करती है एक प्रेरक पहल– ‘एक पेड़ मां के नाम’। यह अभियान केवल पौधारोपण की सरकारी योजना नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज की संस्कृति, भावनाओं और प्रकृति के साथ रिश्ते की पुनर्परिभाषा है। पर्यावरण दिवस 2024 पर इस मुहिम की शुरुआत एक नई राष्ट्रीय जागरूकता का आरंभ थी।
आज जलवायु परिवर्तन, जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण और जल संकट देश के भविष्य पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। वर्ष 2021 की भारत राज्य वन रिपोर्ट के अनुसार देश का केवल 21.71 प्रतिशत भू-भाग वनाच्छादित है, जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार यह आंकड़ा कम से कम 33 प्रतिशत होना चाहिए। वर्ष 2001 से 2020 के बीच भारत ने 34 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र खोया, जिससे पारिस्थितिकी असंतुलन और भूजल संकट बढ़ा। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 600 से अधिक जिलों में भूजल स्तर खतरनाक रूप से गिर चुका है। ऐसे गंभीर संदर्भ में ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसी पहल जीवनदायी सिद्ध होती है।
प्रधानमंत्री द्वारा फरवरी, 2024 में गुजरात के द्वारका से प्रारंभ किया गया यह अभियान मात्र वृक्ष लगाने की अपील नहीं था, बल्कि यह एक आह्वान था कि मां, जो जीवन का आधार होती है, उसके नाम पर एक पौधा लगाया जाए। यह विचार जनता के हृदय से जुड़ गया और मां के प्रति भावनात्मक आस्था का प्रतिबिंब बना। मात्र पांच महीनों में करोड़ों पौधे लगाए जाने इसका प्रमाण है। इस अभियान में सबसे अधिक प्रेरणादायी रही लोगों की भागीदारी, जिसमें महिला स्वयं सहायता समूहों से लेकर स्कूली बच्चों तक सभी ने सक्रिय सहयोग दिया।
अमृत 2.0 मिशन के अंतर्गत ‘महिलाएं पेड़ों के लिए’ कार्यक्रम की शुरुआत की गई, जिसमें महिला स्वयं सहायता समूहों को पौधारोपण की योजना, कार्यान्वयन और देखरेख की जिम्मेदारी दी गई। इस कदम से महिलाओं को निर्णय लेने की भूमिका मिली और ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ। वृक्षों की सुरक्षा, उनके जीवित रहने की दर और पारिस्थितिकीय लाभ की दृष्टि से यह समावेशी मॉडल अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो रहा है।
‘एक पेड़ मां के नाम’ का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इसने पर्यावरण संरक्षण को केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अभियान बना दिया है। जब कोई व्यक्ति अपनी मां के नाम पर एक पौधा लगाता है, तो वह उस पौधे को केवल एक पर्यावरणीय तत्व नहीं, बल्कि एक स्मृति, एक कर्तव्य मानकर सींचता है। यह वही भाव है जो भारतीय संस्कृति में वृक्षों को पूजनीय बनाता है।
विश्व स्तर पर देखें तो चीन और इथियोपिया जैसे देशों ने पौधारोपण के क्षेत्र में उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। चीन ने 2000 से 2020 के बीच 3.5 करोड़ हेक्टेयर नया वन क्षेत्र विकसित किया, वहीं इथियोपिया ने 2019 में मात्र 12 घंटे में 35 करोड़ पौधे लगाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। भारत के लिए यह एक प्रेरणा हो सकती है, लेकिन ‘एक पेड़ मां के नाम’ के पीछे की भावना इन देशों से भिन्न है – यह आत्मा के स्तर पर जनचेतना को जगाने का प्रयास है।
भारत में यदि प्रत्येक नागरिक एक पौधा लगाकर उसका पालन करे तो देश में 140 करोड़ से अधिक वृक्षों की हरियाली विकसित की जा सकती है। यह विचार केवल गणितीय नहीं, व्यावहारिक भी है – बशर्ते इसमें जनसहभागिता, भावनात्मक लगाव और निरंतरता बनी रहे। पौधा लगाना पहला कदम है, उसे बचाना और बड़ा करना ही असली पर्यावरणीय सेवा है।
आज जब हम पर्यावरण दिवस के अवसर पर जैव विविधता की क्षति, वनों की अंधाधुंध कटाई, जल स्रोतों का सूखना और बढ़ती गर्मी की चर्चा करते हैं तो समाधान के रूप में केवल नीतियां या बजट नहीं, बल्कि जनआंदोलन ही कारगर उपाय है। ‘एक पेड़ मां के नाम’ इसी जनक्रांति का प्रारंभिक बिंदु है—जहां भावनाएं, संस्कृति और विज्ञान मिलकर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेते हैं।
यह आंदोलन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति कोई बाहरी वस्तु नहीं, वह हमारे भीतर की संवेदना का विस्तार है। जब हम धरती को मां मानते हैं तो उसका सम्मान करना, उसकी रक्षा करना और उसे पोषित करना हमाराधर्म बन जाता है। ‘एक पेड़ मां के नाम’ इसी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक सोच का सुंदर संगम है।
आज जब हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, तो यह अवसर एक संकल्प लेने का, एक पौधा अपनी मां के नाम पर लगाकर इस अभियान को एक व्यक्तिगत और राष्ट्रीय कर्तव्य बनाने का है। यह कार्य न तो कठिन है, न ही महंगा – पर इसके प्रभाव अनंत हैं। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ वायु, शुद्ध जल और जीवंत प्रकृति का उपहार बन सकता है।
मां हमें जीवन देती है, और एक पेड़ मां के नाम लगाना उस जीवन के प्रति हमारी कृतज्ञता है। यह संकल्प है कि हम भी जीवनदायिनी बनें, ठीक अपनी मां की तरह। यही ‘एक पेड़ मां के नाम’ की आत्मा है, और यही विश्व पर्यावरण दिवस का सबसे बड़ा संदेश भी।